
बिहार के नालंदा जिले में स्थित कुण्डलपुर जैन मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिकता, इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। इसे जैन धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में गिना जाता है, क्योंकि यही वह भूमि है जहाँ भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, का जन्म हुआ था। यह स्थान जैन धर्मावलम्बियों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बौद्ध धर्मियों के लिए बोधगया। यहाँ आने वाले हर यात्री को लगता है जैसे वह समय में पीछे, 2600 साल पहले, महावीर के युग में पहुँच गया हो।
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कुण्डलपुर का वातावरण शांत, निर्मल और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है। दूर से ही सुनहरी और सफेद पत्थरों से बने मंदिर के शिखर, आसमान को छूते हुए, श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं। यहाँ हर सुबह घंटियों की मधुर ध्वनि, धूप की सुगंध, और मंत्रों की गूंज मिलकर एक दिव्य माहौल रच देती है।
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इतिहास (History)

कुण्डलपुर का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना स्वयं जैन धर्म का। प्राचीन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान कभी लिच्छवी राज्य का हिस्सा था। लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के यहाँ भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ था। इतना ही नहीं, महावीर के चार मुख्य शिष्यों—जिन्हें गणधर कहा जाता है—में प्रमुख गौतम स्वामी का भी जन्म इसी भूमि पर हुआ था।
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कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहाँ एक भव्य नंद्यावर्त महल था, जहाँ से लिच्छवी शासक अपने राज्य का संचालन करते थे। बाद में यह महल धार्मिक केंद्र में बदल गया और यहाँ त्रिकाल चौबीसी मंदिर का निर्माण हुआ, जिसमें तीन अलग-अलग काल के 24-24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ थीं। इतिहासकार मानते हैं कि यहाँ के कुछ प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों की उम्र एक हज़ार साल से भी अधिक हो सकती है, जिन पर उस समय की कला, संस्कृति और आस्था की छाप आज भी साफ दिखाई देती है।
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मध्यकाल में, यह स्थल कई बार आक्रमणों का शिकार हुआ और बहुत सी मूर्तियाँ व संरचनाएँ क्षतिग्रस्त हो गईं। लेकिन जैन समुदाय के प्रयासों और स्थानीय श्रद्धालुओं की भक्ति के कारण मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ और आज यह परिसर एक जीवंत तीर्थस्थल के रूप में पुनः जगमगा रहा है।
वास्तुकला (Architecture)

कुण्डलपुर जैन मंदिर परिसर में पुरातन और आधुनिक स्थापत्य का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यहाँ कुल छह मुख्य मंदिर हैं—एक प्राचीन मंदिर जिसे सिंहमुखी टीला कहा जाता है, और पाँच भव्य नए मंदिर जिनका निर्माण 2003 में हुआ था।
निर्माण सामग्री: मंदिरों के शिखर और दीवारें मुख्य रूप से जैसलमेर पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी हैं, जो सूर्य की रोशनी में सुनहरी आभा बिखेरते हैं।
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मुख्य मंदिर: इसमें भगवान महावीर की पाद्मासन मुद्रा में विराजमान प्रतिमा है, जिसकी ऊँचाई लगभग 4.5 फीट है। इस प्रतिमा के चारों ओर कलात्मक नक्काशी वाले स्तंभ हैं, जिन पर जैन धर्म की महत्वपूर्ण घटनाएँ चित्रित हैं।
72 तीर्थंकर मंदिर: यह मंदिर 72 अलग-अलग तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक प्रतिमा का चेहरा शांत और करुणामय है, जो साधना और त्याग का संदेश देता है।
शिखर और गुंबद: मंदिरों के शिखर पर कलश और ध्वज लहराते हैं, जो आस्था और विजय के प्रतीक हैं। गुंबदों पर बारीक नक्काशी, फूल-पत्तियों के डिज़ाइन और ज्यामितीय आकृतियाँ बनी हैं, जो राजस्थानी और मगही स्थापत्य शैली का सुंदर मिश्रण पेश करती हैं।
प्रांगण: मंदिर का प्रांगण विशाल है, चारों ओर हरे-भरे बगीचे और धर्मशाला स्थित है। यहाँ चलते हुए आपको लगेगा कि यह सिर्फ एक तीर्थ नहीं बल्कि एक कलात्मक विरासत भी है।
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मंदिर के अंदर की मूर्तियाँ (Statues inside the temple)
मुख्य देवता भगवान महावीर पाद्मासन मुद्रा में।
ऋषभनाथ और गौतम स्वामी की सुन्दर प्रतिमाएँ।
72 तीर्थंकरों का एक अलग मंदिर, जिनकी मूर्तियाँ समान आकार की और पूर्ण शांति के भाव से युक्त हैं।
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विशेषताएँ (Features)
भगवान महावीर की जन्मस्थली।
प्राचीन और आधुनिक कला का संगम।
विशाल परिसर में श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला और भोजनालय।
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देखने लायक स्थान (Places worth visiting)
सिंहमुखी टीला का प्राचीन मंदिर।
72 तीर्थंकर मंदिर।
नंद्यावर्त महल और त्रिकाल चौबीसी मंदिर।
कीर्ति स्तंभ।
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आरती और पूजा समय (Aarti and Puja Timings)
सुबह की आरती: लगभग 7:30 AM
शाम की आरती: सूर्यास्त के समय
विशेष अवसर: महावीर जन्मकल्याणक पर भव्य समारोह
मंदिर खुलने का समय (Temple opening hours)
सामान्य दिन: सुबह 6:00 AM से शाम 6:00 PM
त्योहारों पर समय बढ़ सकता है।
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आसपास के पर्यटन स्थल (Nearby tourist places)
नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर – 1.6 किमी
राजगीर – लगभग 15 किमी
पावापुरी – लगभग 20 किमी
कब जाए (Best Time to Visit)
मार्च–अप्रैल (महावीर जन्मोत्सव)
अक्टूबर–फरवरी (ठंड का मौसम)
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कैसे पहुँचें? (How to reach?)
रेल: नालंदा रेलवे स्टेशन (4-5 किमी)
सड़क: बिहारशरीफ या राजगीर से बस/टैक्सी द्वारा।
पता (Address)
Shri Kundalpur Digambar Jain Atishaya Kshetra (Prachin Mandir),
Post – Kundalpur, District – Nalanda,
Bihar – 803111
कुण्डलपुर जैन मंदिर, बिहार की फोटो (Photo of Kundalpur Jain Temple, Bihar)
निष्कर्ष (Conclusion)
कुण्डलपुर जैन मंदिर सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो आपको प्राचीन आध्यात्मिक इतिहास, भव्य स्थापत्य और दिव्यता का अद्वितीय संगम दिखाता है। यहाँ आकर आप महसूस करेंगे कि यह केवल ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि श्रद्धा, तपस्या और शांति की जीवंत मूर्ति है।