यह स्तोत्र “मीनाक्षी स्तोत्रम्” कहलाता है, जिसे आदि शंकराचार्य (श्रीमच्छङ्करभगवत्पाद) ने रचा था। यह देवी मीनाक्षी अंबा — जो भगवान शिव की अर्धांगिनी और मदुरै की अधिष्ठात्री देवी हैं — की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। इसमें देवी की दिव्य लीलाओं, स्वरूप, करुणा और कल्याणकारी शक्तियों का वर्णन किया गया है।
मीनाक्षी स्तोत्रम् एक भक्तिपूर्ण रचना है जिसमें श्रीमद् शंकराचार्य ने देवी मीनाक्षी की आराधना करते हुए उनके रूप, गुण और कृपा का वर्णन किया है।
मीनाक्षी देवी को ‘श्रीविद्या’, ‘शिववामभागनिलया’, ‘राजराजार्चिता’ आदि नामों से संबोधित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि वे परम शक्ति — आदि पराशक्ति — का मूर्त स्वरूप हैं।
यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक देवी की एक विशेष लीला, रूप और आशीर्वाद का वर्णन करता है।
मीनाक्षी स्तोत्रम् (Meenakshi Stotram)
श्रीविद्ये शिववामभागनिलये श्रीराजराजार्चिते
श्रीनाथादिगुरुस्वरूपविभवे चिन्तामणीपीठिके ।
श्रीवाणीगिरिजानुताङ्घ्रिकमले श्रीशाम्भवि श्रीशिवे
मध्याह्ने मलयध्वजाधिपसुते मां पाहि मीनाम्बिके ॥ १ ॥
चक्रस्थेऽचपले चराचरजगन्नाथे जगत्पूजिते
आर्तालीवरदे नताभयकरे वक्षोजभारान्विते ।
विद्ये वेदकलापमौलिविदिते विद्युल्लताविग्रहे
मातः पूर्णसुधारसार्द्रहृदये मां पाहि मीनाम्बिके ॥ २ ॥
कोटीराङ्गदरत्नकुण्डलधरे कोदण्डबाणाञ्चिते
कोकाकारकुचद्वयोपरिलसत्प्रालम्बहाराञ्चिते ।
शिञ्जन्नूपुरपादसारसमणीश्रीपादुकालङ्कृते
मद्दारिद्र्यभुजङ्गगारुडखगे मां पाहि मीनाम्बिके ॥ ३ ॥
ब्रह्मेशाच्युतगीयमानचरिते प्रेतासनान्तस्थिते
पाशोदङ्कुशचापबाणकलिते बालेन्दुचूडाञ्चिते ।
बाले बालकुरङ्गलोलनयने बालार्ककोट्युज्ज्वले
मुद्राराधितदैवते मुनिसुते मां पाहि मीनाम्बिके ॥ ४ ॥
गन्धर्वामरयक्षपन्नगनुते गङ्गाधरालिङ्गिते
गायत्रीगरुडासने कमलजे सुश्यामले सुस्थिते ।
खातीते खलदारुपावकशिखे खद्योतकोट्युज्ज्वले
मन्त्राराधितदैवते मुनिसुते मां पाही मीनाम्बिके ॥ ५ ॥
नादे नारदतुम्बुराद्यविनुते नादान्तनादात्मिके
नित्ये नीललतात्मिके निरुपमे नीवारशूकोपमे ।
कान्ते कामकले कदम्बनिलये कामेश्वराङ्कस्थिते
मद्विद्ये मदभीष्टकल्पलतिके मां पाहि मीनाम्बिके ॥ ६ ॥
वीणानादनिमीलितार्धनयने विस्रस्तचूलीभरे
ताम्बूलारुणपल्लवाधरयुते ताटङ्कहारान्विते ।
श्यामे चन्द्रकलावतंसकलिते कस्तूरिकाफालिके
पूर्णे पूर्णकलाभिरामवदने मां पाहि मीनाम्बिके ॥ ७ ॥
शब्दब्रह्ममयी चराचरमयी ज्योतिर्मयी वाङ्मयी
नित्यानन्दमयी निरञ्जनमयी तत्त्वंमयी चिन्मयी ।
तत्त्वातीतमयी परात्परमयी मायामयी श्रीमयी
सर्वैश्वर्यमयी सदाशिवमयी मां पाहि मीनाम्बिके ॥ ८ ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ मीनाक्षी स्तोत्रम् ।
पाठ के लाभ (Benefits of Reciting Meenakshi Stotram)
- भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं — विशेषकर विवाह, संतान एवं समृद्धि की इच्छाएँ।
- मीनाक्षी देवी की कृपा से दरिद्रता, भय और रोगों का नाश होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति और ज्ञान की प्राप्ति होती है, क्योंकि देवी को वेद एवं विद्या की अधिष्ठात्री माना गया है।
- गृहस्थ जीवन में सुख और सौहार्द बढ़ता है, क्योंकि देवी गृहलक्ष्मी रूप में भी पूजनीय हैं।
- शांति, सौंदर्य और तेज की वृद्धि होती है, क्योंकि देवी सौंदर्य और करुणा की मूर्ति हैं।
पाठ की विधि (Vidhi / Method of Recitation)
- प्रातःकाल या संध्या समय स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अपने पूजा स्थान पर मीनाक्षी माता या पार्वती माता की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाएँ, फूल, कुंकुम, चावल, और जल अर्पित करें।
- पहले “ॐ श्री मीनाक्ष्यै नमः” मंत्र का 11 बार जप करें।
- तत्पश्चात पूरे स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- अंत में देवी से अपनी मनोकामना प्रकट करें और नमन करें।
- यदि संभव हो तो शुक्रवार या पूर्णिमा के दिन पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
विशेष महत्व
- यह स्तोत्र मदुरै की देवी मीनाक्षी के मंदिर में भी विशेष रूप से गाया जाता है।
- यह न केवल भौतिक सुख-संपदा देता है बल्कि साधक को आध्यात्मिक संतोष और माँ की साक्षात कृपा का अनुभव कराता है।


















































