
भारतीय संस्कृति केवल देवताओं की पूजा तक सीमित नहीं है, यहाँ पूर्वजों को भी देवतुल्य मानकर उनकी आराधना की जाती है। पितृ पक्ष उन्हीं पूर्वजों के लिए समर्पित एक पावन काल है। मान्यता है कि इन 15 दिनों में हमारे पितर धरती पर आते हैं और संतान द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान को स्वीकार करते हैं।
यह केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि अपने वंशजों की जड़ों से जुड़ने और अपनी परंपराओं को जीवित रखने का अनोखा पर्व है।
पितृ पक्ष क्या है? (What is the paternal side?)
हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलने वाले इन 15 दिनों को श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष कहते हैं।
- इसे “श्राद्ध” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कर्म श्रद्धा से किया जाता है।
- शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान किया गया श्राद्ध सीधा पितरों तक पहुँचता है।
- माना जाता है कि जब पितर प्रसन्न होते हैं तो वे आशीर्वाद देकर संतान की सभी बाधाएँ दूर करते हैं।
पितृ पक्ष का महत्व (Importance of Pitru Paksha)
- पितृ ऋण से मुक्ति
हमारे शास्त्र कहते हैं –
“ऋणत्रयं प्रवदन्त्येति देवर्षिपितृसम्भवम्।”
अर्थात हर मनुष्य देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण लेकर जन्म लेता है। इनमें से पितृ ऋण चुकाना सबसे आवश्यक माना गया है, और यह श्राद्ध से पूरा होता है। - सुख-समृद्धि की प्राप्ति
गरुड़ पुराण के अनुसार, जो संतान श्रद्धा से श्राद्ध करती है, उसके घर में लक्ष्मी का वास होता है और परिवार में शांति बनी रहती है। - पूर्वजों का आशीर्वाद
पितरों के तृप्त होने पर न केवल परिवार तरक्की करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भी समृद्ध होती हैं।
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पितृ पक्ष की रोचक कथाएँ (Interesting stories of Pitru Paksha)
कर्ण की कथा
दानवीर कर्ण ने जीवन भर दान किया, पर भोजन कभी नहीं कराया। जब वे स्वर्ग गए, तो उन्हें स्वर्ण और रत्न खाने को मिले, लेकिन अन्न नहीं।
उन्होंने भगवान से कारण पूछा, तो जवाब मिला – “तुमने जीवन में धन तो खूब बाँटा, पर भोजन कभी नहीं कराया।”
तब कर्ण ने प्रार्थना की और उन्हें 15 दिन का समय दिया गया, जब वे धरती पर आकर अपने पितरों का श्राद्ध कर सकें। यही काल पितृ पक्ष कहलाया।
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महाभारत का प्रसंग
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को धर्मशास्त्रों का उपदेश देते हुए कहा था कि –
“श्राद्धेन पितरः तृप्ताः, तृप्ताः स्युः सर्वदेवताः।”
अर्थात जब पितर संतुष्ट होते हैं, तो समस्त देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं।
गरुड़ पुराण का उल्लेख
गरुड़ पुराण कहता है कि श्राद्ध से पितरों की आत्मा को पितृलोक में उच्च स्थान मिलता है। यदि श्राद्ध न किया जाए तो आत्माएँ अशांत रहती हैं और वंशजों को जीवन में बाधाएँ आती हैं।
पितृ पक्ष में किए जाने वाले कार्य (Activities to be done during Pitru Paksha)
- श्राद्ध
- पूर्वजों के नाम से अन्न और पकवान बनाकर ब्राह्मण को अर्पण करना।
- गाय, कौआ, कुत्ता और चींटी तक को भोजन देना क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।
- तर्पण
- कुश, तिल, जौ और जल से पितरों को तृप्त करना।
- यह दक्षिण की ओर मुख करके करना चाहिए क्योंकि पितृ लोक दक्षिण दिशा में माना जाता है।
- पिंडदान
- चावल, जौ, तिल और घी से बने पिंड को अर्पित करना।
- गया (बिहार), प्रयागराज और काशी जैसे तीर्थों पर इसका विशेष महत्व है।
- दान और सेवा
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न और धन का दान करना चाहिए।
- यह पितरों के नाम से किया जाता है।
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पितृ पक्ष में क्या करें और क्या न करें (What to do and what not to do during Pitru Paksha)
क्या करें ✅
- सात्त्विक भोजन करें।
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और पूर्वजों का स्मरण करें।
- यथाशक्ति ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराएँ।
- पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करना शुभ माना जाता है।
क्या न करें ❌
- मांस, शराब और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित हैं।
- बाल कटवाना और नाखून काटना अशुभ माना जाता है।
- क्रोध, झगड़ा और अपशब्द का प्रयोग न करें।
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सर्वपितृ अमावस्या : पितरों का सामूहिक श्राद्ध (Sarvapitre Amavasya: Collective Shraddha of ancestors)
पितृ पक्ष का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या कहलाता है।
- इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है।
- इसे महालय अमावस्या भी कहते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध सभी पितरों तक पहुँचता है और वे प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
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पितृ पक्ष के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल (Famous Pilgrimage Sites of Pitru Paksha)
- गया (बिहार) – यहाँ फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।
- प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – त्रिवेणी संगम पर तर्पण करने का विशेष महत्व है।
- उज्जैन (मध्य प्रदेश) – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है।
- काशी (वाराणसी) – मोक्ष नगरी मानी जाने वाली काशी में किया गया श्राद्ध विशेष फलदायी माना जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
पितृ पक्ष हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने पूर्वजों के आशीर्वाद और संस्कारों की वजह से ही आज अस्तित्व में हैं।
इन 15 दिनों में श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध न केवल पितरों की आत्मा को शांति देता है, बल्कि हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और उन्नति के द्वार भी खोलता है।