
हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता, बुद्धि के देवता और सफलता के आरंभकर्ता के रूप में पूजा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की दो पत्नियाँ हैं — रिद्धि और सिद्धि? इन दोनों के विवाह से जुड़ी दो अद्भुत और रहस्यमयी कथाएँ प्रचलित हैं, जो न केवल रोमांचक हैं बल्कि गहरी आध्यात्मिक सीख भी देती हैं।
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पहली कथा: तुलसी जी का श्राप और गणेश जी का दोहरा विवाह (Story 1: Tulsi’s curse and Ganesha’s double marriage)
कहा जाता है कि एक बार भगवान गणेश कठोर तपस्या में लीन थे। उसी समय देवी तुलसी जी वहाँ से गुज़रीं। गणेश जी के तेजस्वी रूप को देखकर तुलसी जी उनके प्रेम में पड़ गईं और उनसे विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
गणेश जी मुस्कुराते हुए बोले —
“देवी, मैं ब्रह्मचारी हूँ। विवाह मेरे व्रत के विरुद्ध है।”
यह सुनकर तुलसी जी क्रोधित हो गईं और बोलीं —
“तुम्हारा विवाह दो बार होगा!”
गणेश जी भी क्रोधित हुए और उन्होंने तुलसी जी को श्राप दिया —
“तुम विवाह तो करोगी, परंतु शाप के कारण वृक्ष का रूप धारण कर लोगी।”
श्राप के प्रभाव से ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने इस स्थिति का समाधान किया। उन्होंने अपनी मानस पुत्रियाँ — रिद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (सफलता) — गणेश जी के साथ विवाह हेतु प्रस्तुत कीं। इस प्रकार गणेश जी के दो विवाह संपन्न हुए, और तुलसी जी का श्राप भी सत्य हुआ।
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दूसरी कथा: गज-रूप और देवताओं के विवाहों में विघ्न (Second Story: Gaja-rup and the Interruption in the Marriages of the Gods)
एक अन्य कथा के अनुसार, जब गणेश जी का सिर गज (हाथी) का हुआ, तो कोई भी कन्या उनसे विवाह करने को तैयार नहीं थी। इससे गणेश जी अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने देवताओं के विवाहों में बाधा डालनी शुरू कर दी — कभी वर्षा रोक दी, कभी अग्नि शांत कर दी।
देवता परेशान होकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और बोले —
“हे ब्रह्मदेव, गणेश जी के बिना कोई विवाह सफल नहीं हो रहा!”
ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा —
“इस समस्या का समाधान विवाह ही करेगा।”
उन्होंने अपनी दो मानस पुत्रियाँ — रिद्धि और सिद्धि — को गणेश जी के पास भेजा। जब दोनों ने गणेश जी की भक्ति, ज्ञान और विनम्रता देखी, तो वे उनसे विवाह के लिए सहमत हो गईं। विवाह के बाद गणेश जी शांत और प्रसन्न हो गए।
समय बीतने के साथ रिद्धि और सिद्धि ने दो पुत्रों को जन्म दिया —
- रिद्धि से क्षेम,
- सिद्धि से लाभ।
इसी कारण आज भी हर शुभ कार्य की शुरुआत में लोग कहते हैं —
“शुभ-लाभ” — जो गणेश जी के ही पुत्र हैं।
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आध्यात्मिक अर्थ: ज्ञान, समृद्धि और सफलता का संगम (Spiritual meaning: Confluence of knowledge, prosperity and success)
गणेश जी का रिद्धि और सिद्धि से विवाह कोई साधारण कथा नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। यह बताता है कि —
“जहाँ ज्ञान (गणेश) होता है, वहाँ समृद्धि (रिद्धि) और सफलता (सिद्धि) स्वतः आती हैं।”
रिद्धि-सिद्धि केवल गणेश जी की पत्नियाँ नहीं, बल्कि उनकी शक्तियाँ हैं — एक भौतिक सुख और वैभव की प्रतीक है, दूसरी आत्मिक ज्ञान और सफलता की प्रतीक है।
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निष्कर्ष: गणेश विवाह की प्रेरणा (Conclusion: The Inspiration of Ganesha Marriage)
भगवान गणेश के दो विवाह हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में बुद्धि, समृद्धि और सफलता का संतुलन आवश्यक है। सिर्फ धन या ज्ञान नहीं, बल्कि दोनों का मेल ही व्यक्ति को पूर्ण बनाता है। इसलिए हर शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है — ताकि जीवन में रिद्धि (समृद्धि), सिद्धि (सफलता) और शुभ-लाभ (संतान एवं प्रगति) का आशीर्वाद प्राप्त हो।
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