“सर्प सूक्त स्तोत्र” एक प्राचीन वैदिक स्तुति है जो सम्पूर्ण सर्प जाति को समर्पित है। यह स्तोत्र विभिन्न लोकों — जैसे ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, सत्यलोक, मलय पर्वत, पृथ्वी, समुद्र, ग्राम, वन एवं रसातल आदि में निवास करने वाले सर्पों की वंदना करता है। इसमें विशेष रूप से शेषनाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक और अनन्त जैसे दिव्य नागों का उल्लेख कर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की गई है।
इस स्तोत्र का मूल उद्देश्य सर्पों के प्रति सम्मान भाव प्रकट करना और उनसे सुरक्षा, कृपा तथा प्रसन्नता की प्रार्थना करना है। यह स्तोत्र यह भी दर्शाता है कि सर्प केवल भय के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे दिव्यता, शक्ति, तपस्या और ब्रह्मांडीय संतुलन के रक्षक भी हैं।
सर्प सूक्त स्तोत्र का नियमित पाठ विशेष रूप से नाग पंचमी, श्रावण मास, अथवा नाग दोष से पीड़ित जातकों के लिए शुभ और फलदायक माना गया है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक रक्षा प्रदान करता है, बल्कि सर्पों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण को भी दर्शाता है।
सर्प सूक्त स्तोत्र
Sarpa Suktam Stotra
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः वासुकि प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
कद्रवेयाश्च ये सर्पाः मातृभक्ति परायणाः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः तक्षक प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
सत्यलोकेषु ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिताः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
मलये चैव ये सर्पाः कर्कोटक प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
पृथिव्यां चैव ये सर्पाः ये साकेत वासिताः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
सर्वग्रामेषु ये सर्पाः वसन्तिषु संच्छिताः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
समुद्रतीरे ये सर्पाः ये सर्पाः जलवासिनः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
रसातलेषु या सर्पाः अनन्तादि महाबलाः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा॥
।। इति सर्प सूक्त स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।
सर्प सूक्त स्तोत्र (हिंदी अनुवाद)
Sarpa Suktam Stotra Hindi Meaning
जो सर्प ब्रह्मलोक में निवास करते हैं और जिनमें शेषनाग प्रमुख हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प इन्द्रलोक में निवास करते हैं और जिनमें वासुकि प्रमुख हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प कद्रू के वंशज हैं और मातृभक्ति में लीन रहते हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प इन्द्रलोक में हैं और जिनमें तक्षक आदि प्रमुख हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प सत्यलोक में रहते हैं और जिन्हें वासुकि ने संरक्षित किया है,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प मलय पर्वत पर रहते हैं और जिनमें कर्कोटक प्रमुख हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प पृथ्वी पर तथा साकेत धाम में निवास करते हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प समस्त ग्रामों में विभिन्न स्थानों पर वास करते हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प गाँवों में या वनों में विचरण करते हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प समुद्र के किनारे या जल में रहते हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
जो सर्प पाताल लोक में हैं और जिनमें अनन्त आदि अत्यंत बलशाली हैं,
उन सर्पों को मेरा बारम्बार नमस्कार हो, वे सदा मुझसे प्रसन्न रहें॥
।। इस प्रकार सर्प सूक्त स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।।
सर्प सूक्त स्तोत्र के लाभ (Benefits of Sarpa Sukta Stotra):
- नाग दोष निवारण:
कुंडली में कालसर्प दोष या नाग दोष होने पर इस स्तोत्र का नियमित पाठ बहुत प्रभावी माना गया है। - सर्प भय से रक्षा:
जिन व्यक्तियों को सर्पदंश (साँप काटने) का भय होता है या बार-बार स्वप्न में साँप दिखाई देते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र सुरक्षा कवच का कार्य करता है। - संतान सुख और स्वास्थ्य:
मान्यता है कि यह स्तोत्र संतान प्राप्ति व उनके अच्छे स्वास्थ्य हेतु भी शुभ होता है। - सर्प देवताओं की कृपा:
शेषनाग, वासुकि, तक्षक, अनन्त आदि दिव्य नागों की कृपा प्राप्त होती है। - सर्पों के प्रति शांति और अहिंसा की भावना:
यह स्तोत्र व्यक्ति में करुणा और पर्यावरण संतुलन के प्रति जागरूकता उत्पन्न करता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्नान व शुद्धता:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। - पवित्र स्थान:
घर के पूजा स्थल में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। - दीपक व धूप:
एक दीपक और धूप जलाकर सर्प देवताओं को नमस्कार करें। - नाग चित्र या प्रतिमा:
यदि संभव हो, तो सर्प देवता (विशेषकर शेषनाग या वासुकि) की प्रतिमा या चित्र के सामने पाठ करें। - अर्पण व आहुति:
कच्चा दूध, कुशा, दूब घास, नागकेसर, सफेद पुष्प अर्पित करना शुभ होता है। - शुद्ध उच्चारण:
स्तोत्र का उच्चारण स्पष्ट और श्रद्धा से करें। - संख्या:
एक बार में सम्पूर्ण स्तोत्र का पाठ करें। विशेष अनुष्ठान हेतु 11, 21, या 108 बार जप भी किया जा सकता है।
जप का श्रेष्ठ समय (Jaap Time):
- प्रातः काल (सुबह 4:30 – 6:30):
ब्रह्ममुहूर्त में जप करना सर्वश्रेष्ठ फल देता है। - नाग पंचमी, श्रावण मास, व अमावस्या:
ये विशेष तिथियाँ सर्प देवताओं को प्रसन्न करने हेतु अति उपयुक्त मानी जाती हैं। - सोमवार व शनिवार:
चंद्र तथा शनि ग्रहों से संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए भी यह दिन शुभ होते हैं।