“श्री चण्डी ध्वज स्तोत्र” अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है, जो देवी महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती — त्रिदेवी की संयुक्त उपासना का रूप है।
इस स्तोत्र का वर्णन मार्कण्डेय ऋषि ने किया है, और इसमें चण्डी स्वरूपा देवी को सर्वब्रह्ममयी, त्रिगुणात्मक और सर्वशक्ति की अधिष्ठात्री बताया गया है।
इसका मुख्य उद्देश्य साधक को राज्य, धन, ऐश्वर्य, विजय और सर्वकाम-सिद्धि प्रदान करना है।
“राज्यं देहि, धनं देहि, साम्राज्यं देहि मे सदा” — यह बारंबार दोहराया गया मंत्र साधक के भीतर सामर्थ्य, सौभाग्य और आत्मविश्वास भर देता है।
जो व्यक्ति नियमित रूप से इसका पाठ करता है, वह देवी की कृपा से राजसिक तेज, सौंदर्य, धन, यश और सम्मान प्राप्त करता है।
श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् (Shri Chandi Dhwaj Stotram)
॥ विनियोग ॥
अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः.
॥ अंगन्यास ॥
श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः ।
॥ मूल पाठ ॥
ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः॥१॥
नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥२॥
रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥३॥
नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥४॥
नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥५॥
नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥६॥
नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥७॥
नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥८॥
नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥९॥
नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१०॥
नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥११॥
नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१२॥
नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१३॥
नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१४॥
नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१५॥
रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१६॥
नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१७॥
शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१८॥
शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१९॥
नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२०॥
नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२१॥
नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२२॥
स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२३॥
श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२४॥
नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२५॥
दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२६॥
नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२७॥
नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२८॥
जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२९॥
मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३०॥
चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ॥३१॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
श्री चण्डी ध्वज स्तोत्र के लाभ
- राज्य और अधिकार की प्राप्ति – यह स्तोत्र राजा, नेता, या उच्च पद की आकांक्षा रखने वाले लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी है।
- धन-धान्य और समृद्धि – महालक्ष्मी की कृपा से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और घर में धन-संपत्ति का आगमन होता है।
- विजय और सुरक्षा – देवी चण्डी साधक की रक्षा करती हैं और शत्रु, भय, या दुष्प्रभावों से मुक्ति देती हैं।
- सर्वकामफल सिद्धि – इच्छित कार्य सिद्ध होते हैं, चाहे वह भौतिक, आध्यात्मिक, या सामाजिक हो।
- आत्मबल और तेज की वृद्धि – साधक के व्यक्तित्व में आकर्षण, आत्मविश्वास और निर्णय शक्ति का विकास होता है।
- गृहस्थ जीवन में शांति – इस स्तोत्र का पाठ घर में सौहार्द, प्रेम और लक्ष्मी स्थायित्व लाता है।
पाठ की विधि (Vidhi of Recitation)
- समय –
 प्रातःकाल या संध्याकाल में स्नान के बाद, शुद्ध वस्त्र धारण करें।
 शुक्रवार, अष्टमी, नवमी या पूर्णिमा तिथि विशेष फलदायी मानी जाती है।
- स्थान –
 स्वच्छ स्थान पर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके देवी का चित्र या यंत्र स्थापित करें।
- संकल्प –
 अपने मन में देवी से अपनी इच्छा के अनुसार संकल्प करें, जैसे धन, राज्य, प्रतिष्ठा या समृद्धि की प्राप्ति।
- पूजन क्रम –- दीपक जलाएँ (घी या तिल के तेल का)।
- देवी को पुष्प, अक्षत, फल और नैवेद्य अर्पित करें।
- “ॐ श्रीं नमः” या “श्रीं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र का जप करें।
 
- स्तोत्र पाठ –
 चण्डी ध्वज स्तोत्र का एकाग्र होकर पाठ करें।
 आरंभ में “॥ विनियोग ॥” और अंत में “सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये…” श्लोक के साथ समाप्त करें।
- नियमितता –
 9 दिन, 21 दिन, या 41 दिन तक निरंतर पाठ अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
- भोग और आरती –
 पाठ के बाद देवी की आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।



 
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  
 











































