
भारतीय संस्कृति रहस्यों से भरी हुई है। यहाँ हर प्रतीक, हर चिन्ह और हर संख्या का अपना आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय अर्थ छुपा होता है। इन्हीं में से 108 और 1008 दो ऐसी पावन संख्याएँ हैं जो बार-बार हमारे सामने आती हैं – चाहे वह मंदिरों में मंत्रजप हो, किसी संत या महात्मा के नाम के आगे हो, या फिर प्राचीन शास्त्रों की गहराई में। आखिर इन संख्याओं के पीछे क्या रहस्य है? आइए जानते हैं।
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108 का रहस्य और महत्व (The Mystery and Significance of 108)
संख्या 108 को हिन्दू धर्म में “पूर्णता” और “ब्रह्मांड का संतुलन” कहा गया है।
- जब भी हम किसी मंत्र का जप करते हैं तो माला में 108 मनके होते हैं। यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि विश्वास है कि 108 बार जपने से मंत्र की पूरी शक्ति सक्रिय हो जाती है।
- वैदिक ज्योतिष के अनुसार, 12 राशियाँ और 9 ग्रह – इनका गुणनफल 108 होता है। इसलिए यह अंक ब्रह्मांड के संतुलन और ग्रह-नक्षत्रों की शक्ति से सीधे जुड़ा है।
- 108 उपनिषद – वेदों का गूढ़ ज्ञान 108 उपनिषदों में ही समाया हुआ है।
- योगशास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में 108 प्रमुख नाड़ियाँ होती हैं, जिनसे प्राण ऊर्जा प्रवाहित होती है।
- यहाँ तक कि विज्ञान भी इसे रहस्यमय मानता है – सूर्य का व्यास पृथ्वी से लगभग 108 गुना बड़ा है और पृथ्वी से सूर्य की दूरी भी लगभग सूर्य के व्यास की 108 गुना है।
यानी 108 केवल एक संख्या नहीं, बल्कि ब्रह्मांड और आत्मा के बीच सेतु है।
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1008 की दिव्यता (The Divinity of 1008)

यदि 108 को ब्रह्मांड का संतुलन माना गया है तो 1008 उसकी अनंत शक्ति का प्रतीक है।
- जब हम विष्णु सहस्रनाम, शिव सहस्रनाम या लक्ष्मी सहस्रनाम पढ़ते हैं, तो वहाँ 1008 नामों का वर्णन मिलता है। यह भगवान के असंख्य गुणों और शक्तियों का प्रतीक है।
- मंदिरों में अक्सर देवताओं के नाम के साथ “श्री 1008” अंकित होता है, जिससे उनकी दिव्यता और सहस्र शक्तियाँ प्रकट होती हैं।
- किसी महात्मा या संत के नाम के आगे 1008 लिखना केवल आदर नहीं, बल्कि उन्हें “सहस्रनाम के समान पूजनीय” घोषित करने का तरीका है।
- शास्त्रों में 1008 को “अनंत ज्ञान, अनंत शक्ति और अनंत करुणा” का संकेत माना गया है।
ऋषि-मुनियों और संतों के नाम के आगे 108 या 1008 क्यों? (Why Saints and Sages Have 108 or 1008 Before Their Names?)
कभी आपने गौर किया है कि कई बार किसी महात्मा या बाबा के नाम के आगे “श्री 108” या “श्री 1008” लिखा होता है? यह सिर्फ सम्मानजनक संबोधन नहीं है। यह उस संत की आध्यात्मिक ऊँचाई और दिव्यता का परिचायक है।
- 108 उनके आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान को दर्शाता है।
- 1008 उन्हें एक सहस्रनाम के समान पूजनीय और अनंत गुणों से युक्त बताता है।
- यही कारण है कि अखाड़ों, मठों और पीठों के संत-महात्माओं के नाम के आगे यह परंपरा आज भी जीवित है।
अद्भुत उदाहरण (Fascinating Examples)
- शंकराचार्य परंपरा में पीठाधीश्वरों को “श्री 1008” कहा जाता है।
- कई मंदिरों की मूर्तियों और शिलालेखों पर “श्री 1008 भगवान” लिखा हुआ मिलता है।
- महंतों और महामंडलेश्वरों को समाज में सर्वोच्च सम्मान देने के लिए उनके नाम से पहले “श्री 108” या “श्री 1008” लगाया जाता है।
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निष्कर्ष (Conclusion)
हिन्दू धर्म में 108 और 1008 केवल अंक नहीं हैं, ये आत्मा और ब्रह्मांड को जोड़ने वाले रहस्यमयी सूत्र हैं। 108 हमें ब्रह्मांडीय संतुलन और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है, जबकि 1008 हमें भगवान के सहस्र गुणों और अनंत शक्ति की याद दिलाता है। यही कारण है कि इन संख्याओं का प्रयोग आज भी मंत्रजप, मंदिरों और संतों के नामों में किया जाता है।
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