
क्या आपने कभी सोचा है कि हनुमान जी, जो अपने बल, बुद्धि और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं, उन्होंने एक समय पाँच मुखों वाला दिव्य रूप क्यों धारण किया था?
यह कहानी साधारण नहीं — यह है पाताल लोक की सबसे रोमांचक गाथा, जहाँ अंधकार के बीच हनुमान जी ने रचा एक अद्भुत इतिहास।
आइए चलें उस रहस्यमयी यात्रा पर, जहाँ राम और लक्ष्मण बंधक थे, अहिरावण अमर था, और हनुमान जी ने धारण किया था अपना पंचमुखी रूप।
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रावण का षड्यंत्र और अहिरावण की मायाजाल

लंका युद्ध अपने चरम पर था। जब रावण को लगा कि उसका अंत निकट है, तो उसने पाताल लोक के तांत्रिक और मायावी राक्षस अहिरावण को बुलाया — जो काली साधना में पारंगत था और अपने जादू से किसी को भी वश में कर सकता था।
रावण ने कहा —
“अहिरावण! अगर राम और लक्ष्मण मेरे हाथ न आए, तो युद्ध व्यर्थ होगा।”
अहिरावण मुस्कुराया, अपनी माया से एक साधु का रूप धारण किया और आधी रात को राम के शिविर में पहुँचा।
उसने कहा — “हे रघुवर, यज्ञ की पूर्णाहुति के लिए आप दोनों का उपस्थित होना आवश्यक है।”
राम और लक्ष्मण ने विश्वास किया और जैसे ही वे बाहर आए, अहिरावण ने अपने तांत्रिक बल से उन्हें पाताल लोक में खींच लिया।
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हनुमान जी की शपथ – “राम मेरे प्राण हैं”
जब प्रभु राम और लक्ष्मण के गायब होने की खबर लंका पहुँची, सब सन्न रह गए। विभीषण ने कहा —
“यह अहिरावण की चाल है, जो पाताल लोक में रहता है। उसे कोई परास्त नहीं कर सकता… सिवाय हनुमान के।”
तब हनुमान जी ने गर्जना की —
“जहाँ मेरे प्रभु हैं, वहाँ पहुँचने से कोई मुझे रोक नहीं सकता!”
वह वायु के वेग से भी तेज़ गति से पाताल लोक की ओर चल पड़े।
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पाताल लोक का रहस्य और मकरध्वजा से मुठभेड़
पाताल का द्वार एक विशाल सर्प के फन के नीचे था। वहां द्वारपाल के रूप में खड़ी थी मकरध्वजा, जो हनुमान जी की ही संतान थी — उनके पसीने की एक बूंद से उत्पन्न!
उसने कहा, “रुक जाओ! मैं इस लोक की रक्षा करती हूँ। कोई भी बिना अनुमति प्रवेश नहीं कर सकता।”
हनुमान जी मुस्कुराए —
“बेटी, आज पिता का कर्तव्य है कि वह धर्म की रक्षा करे।”
एक तीव्र संघर्ष हुआ, जिसमें हनुमान जी ने उसे बाँधा और भीतर प्रवेश किया। पाताल लोक में हर ओर अंधकार, मायाजाल और काली शक्तियों का साम्राज्य था।
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पांच दीपकों का रहस्य और पंचमुखी रूप का जन्म
हनुमान जी ने देखा कि अहिरावण ने भगवान राम और लक्ष्मण को काली माता की बलि के लिए तैयार किया था।
जब वे युद्ध करने बढ़े, तब उन्हें पता चला कि अहिरावण को वरदान था —
“जब तक पाँचों दिशाओं में जलते पाँच दीपक एक साथ न बुझाए जाएँ, तब तक कोई उसका वध नहीं कर सकता।”
अब यह असंभव कार्य कौन कर सकता था?
यहीं प्रकट हुई हनुमान जी की दिव्य शक्ति। उन्होंने एक क्षण में ही धारण किया पंचमुखी रूप —
- पूर्व दिशा – हनुमान मुख: बल, भक्ति और विजय का प्रतीक।
- दक्षिण दिशा – नरसिंह मुख: अधर्म का नाश करने वाला।
- पश्चिम दिशा – गरुड़ मुख: विष, नाग और तंत्र-मंत्र से रक्षा करने वाला।
- उत्तर दिशा – वराह मुख: पृथ्वी और धर्म की रक्षा का स्वरूप।
- ऊर्ध्व मुख – हयग्रीव मुख: ज्ञान और दिव्य प्रकाश का स्रोत।
इन पाँच मुखों से हनुमान जी ने एक साथ पाँचों दीपक बुझाए — और उसी क्षण अहिरावण का तेज़ बुझ गया।
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अहिरावण का अंत – अंधकार पर विजय
अहिरावण की सारी माया समाप्त हो गई। वह क्रोध में हनुमान जी पर झपटा, परंतु वज्र समान गदा के एक प्रहार से वह धराशायी हो गया।
हनुमान जी ने उसके महल के द्वार तोड़े, राम और लक्ष्मण को मुक्त किया, और उन्हें अपने कंधों पर बैठाकर पाताल लोक से बाहर ले आए।
जब वे ऊपर पहुँचे, तो सारा लंका और देवलोक “जय हनुमान!” के नारे से गूंज उठा।
पंचमुखी हनुमान की पूजा और उसका चमत्कारिक प्रभाव
पंचमुखी हनुमान जी का यह स्वरूप आज भी रक्षक देवता के रूप में पूजित है।
इनकी आराधना से
- भूत-प्रेत, नकारात्मक शक्तियाँ और तंत्र-मंत्र का प्रभाव समाप्त होता है।
- जीवन में साहस, बुद्धि और आत्मविश्वास का संचार होता है।
- घर और परिवार पर आने वाले संकट टल जाते हैं।
जो व्यक्ति “पंचमुखी हनुमान कवच” या “पंचमुखी हनुमान स्तोत्र” का नित्य पाठ करता है, उसके जीवन में भय नाम की चीज़ नहीं रहती।
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रहस्यमयी संदेश
हनुमान जी का पंचमुखी रूप केवल एक कथा नहीं — यह जीवन दर्शन है।
“जब अंधकार चारों दिशाओं में हो, तब भीतर की पाँच शक्तियों — विश्वास, साहस, बुद्धि, भक्ति और निष्ठा — को जाग्रत करो। तभी जीवन में विजय निश्चित है।”
समापन
पाताल लोक की वह रात आज भी ब्रह्मांड की सबसे महान घटनाओं में गिनी जाती है, जब एक भक्त ने अपने आराध्य की रक्षा के लिए देवताओं को भी विस्मित कर दिया।
हनुमान जी का पंचमुखी रूप यह सिखाता है कि जब धर्म संकट में हो, तब भक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति बन जाती है।
जय पंचमुखी हनुमान!
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