विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् एक दिव्य और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के पाँच पवित्र आयुधों — सुदर्शन चक्र, पंचजन्य शंख, कौमोधकी गदा, नंदक तलवार और सारंग धनुष — की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भक्त को भय, दुख, पाप और संकटों से मुक्त करके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
शास्त्रों के अनुसार, जो साधक प्रतिदिन प्रातःकाल श्रद्धा और भक्ति के साथ इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह हर प्रकार के भय से सुरक्षित रहता है। चाहे वह युद्धभूमि में हो, जल या अग्नि के बीच फँसा हो, या किसी भी कठिन परिस्थिति में — यह स्तोत्र उसे भगवान विष्णु की दिव्य कृपा और सुरक्षा का कवच प्रदान करता है।
पंचायुध स्तोत्रम् न केवल एक प्रार्थना है, बल्कि यह भगवान विष्णु की अपार शक्ति, दया और रक्षा का प्रतीक भी है। यह मन, तन और आत्मा को पवित्र करने वाला एक आध्यात्मिक कवच है, जो भक्त को हर दिशा से दिव्य ऊर्जा से आवृत कर देता है।
पंचायुध स्तोत्रम (Panchayudha Stotram)
स्फूरद् सहस्रार शिखाधि थेवराम,
सुदर्शनं भास्कर कोटि तुल्यम,
सुरद्विषां प्राण विनाशि विष्णो,
चक्रम् सदाहं शरणं प्रपद्ये।
विष्णोर् मखोथोनिलपूरितस्य,
यस्य द्वानिर्दनुजधरपा हन्ता,
तं पंचजन्यं शशिकोटिशुभ्रं,
शंखं सदाहं शरणं प्रपद्ये।
हिरण्मयीं मेरुसमानसारं,
कौमोधकीं दैत्यकुलैकहन्त्रीम्,
वैकुण्ठवामाङ्करगाभिमृद्यम्,
गदां सदाहं शरणं प्रपद्ये।
रक्षोऽराणां कटिनोन्नतकाय-,
च्छेदाक्षरस्योन्नतधारयुग्मा,
तं नन्दकं नाम हरेः प्रदीप्तं,
खड्गं सदाहं शरणं प्रपद्ये।
या जज्वलान्यनाधश्रवणान् सुराणां,
चेतसि निर्मुक्तभयानि साध्या,
भवन्ति दैत्यासनि बाणवर्षैः,
सारंगमाहं शरणं प्रपद्ये।
फलश्रुति (पाठ के लाभ):
इमं हरेः पंचायुधनाम स्तवं,
पठेद् यो अनुदिनं प्रभाते,
समस्तदुःखानि भयानि नश्यंति,
पापानि नश्यंति सुखानि शान्तिः।
वने, रणने, शत्रुजलाग्निमध्ये,
यदृच्छया आपत्सु महावातेषु,
इदं पठन् स्तोत्रमनन्यचित्तः,
सुखी भवेत् तत्र कृतस्सर्वरक्षा।
विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् का हिंदी अर्थ
मैं भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को नमन करता हूँ। यह चक्र हजारों अग्निशिखाओं की तरह चमकता है, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान है, और असुरों के जीवन का अंत करने वाला है। (1)
मैं भगवान विष्णु के पंचजन्य शंख की शरण लेता हूँ। यह शंख भगवान के मुख से निकलने वाली वायु से गूँजता है, इसकी गूंज राक्षसों के अहंकार को नष्ट कर देती है, और इसका तेज करोड़ों चाँद के समान उज्जवल है। (2)
मैं भगवान विष्णु की गदा (कौमोधकी) की वंदना करता हूँ। यह स्वर्ण जैसी चमक वाली और मेरु पर्वत जितनी भव्य है, यह दैत्यों का नाश करने वाली है, और भगवान के बाएँ हाथ में विराजमान रहकर पवित्रता प्रदान करती है। (3)
मैं भगवान विष्णु की तलवार (नंदक) को प्रणाम करता हूँ। यह शक्तिशाली और कठोर है, राक्षसों के सिर काटते समय रक्त से लाल हो जाती है, और भगवान के हाथ में ज्वलंत प्रकाश की तरह चमकती है। (4)
मैं भगवान विष्णु के सारंग धनुष को नमन करता हूँ। इसकी गूंज देवताओं के मन में विजय की भावना जगाती है, यह असुरों पर बाणों की वर्षा करता है, और भय और अंधकार को दूर भगाता है। (5)
जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल इस पंचायुध स्तोत्र का पाठ करता है, उसके सारे दुख, भय और पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। (6)
और जब कोई व्यक्ति इस स्तोत्र का स्मरण करता है — चाहे वह वन में हो, युद्धभूमि में, शत्रुओं से घिरा हो, जल या अग्नि के बीच फँसा हो, या किसी भी बड़े संकट में क्यों न हो — तो यह स्तोत्र उसे भय से मुक्ति और पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है। (7)
विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् के लाभ
- भय से मुक्ति:
इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भय — चाहे शत्रु, रोग, दुर्घटना या अदृश्य भय — से मुक्ति मिलती है। - सुरक्षा कवच के समान:
यह स्तोत्र भगवान विष्णु के पाँच आयुधों का स्मरण कर भक्त के चारों ओर दिव्य सुरक्षा कवच बनाता है। - पापों का क्षय:
नियमित रूप से पाठ करने से जाने-अनजाने में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं और मन शुद्ध होता है। - धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति:
भगवान विष्णु की कृपा से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, घर में शांति और सुख का वातावरण बना रहता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
यह स्तोत्र साधक के अंदर भक्ति, श्रद्धा और विश्वास को गहराई देता है तथा मन को स्थिर और निर्मल बनाता है। - युद्ध या संकट में सुरक्षा:
कहा गया है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का स्मरण युद्ध, जल, अग्नि या किसी भी संकट में करता है, उसे निश्चित रूप से रक्षा प्राप्त होती है।
विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् पाठ विधि
- शुभ समय:
प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके इस स्तोत्र का पाठ करें। - स्थान:
स्वच्छ और शांत वातावरण में भगवान विष्णु के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएँ। - संकल्प:
भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए अपने मन में संकल्प लें —
“मैं श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्ति और सर्वरक्षा के लिए पंचायुध स्तोत्र का पाठ कर रहा/रही हूँ।” - पाठ विधि:
स्तोत्र का पाठ कम से कम एक बार पूर्ण रूप से करें। चाहें तो 3, 5 या 11 बार पाठ कर सकते हैं। - समापन:
पाठ के बाद भगवान विष्णु के नाम का जप करें —
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” 108 बार। - भोग और आरती:
तुलसीदल, फल या पंचामृत का भोग लगाएँ और “ॐ जय जगदीश हरे” आरती करें।
विशेष सुझाव
- अमावस्या, एकादशी और गुरुवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- इसे घर, कार्यस्थल या यात्रा से पहले पढ़ने से अदृश्य शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
- रात्रि में सोने से पूर्व मानसिक रूप से इसका स्मरण करने से स्वप्न दोष और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।





















































