यह “एकात्मता स्तोत्रम्” भारत माता की अखंडता, गौरव और संस्कृति को समर्पित एक अद्भुत वंदना है। इसमें भारतीय भूमि, नदियाँ, पर्वत, तीर्थ, महापुरुष, संत, ऋषि, कवि, वीर, वैज्ञानिक और राष्ट्रनायकों का भावपूर्ण स्मरण किया गया है। यह स्तोत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष की विविधता में एकता, “एकात्मता” के दिव्य संदेश को प्रकट करता है।
प्रत्येक श्लोक भारत की आत्मा के किसी न किसी स्वरूप का गुणगान करता है — कहीं हिमालय की महिमा है, कहीं गंगा-यमुना की पवित्रता; कहीं मीरा, गार्गी, जानकी जैसी नारी-शक्ति का वंदन है तो कहीं राम, कृष्ण, भीष्म, विवेकानंद, गांधी, सुभाष जैसे महापुरुषों का गौरवगान।
यह स्तोत्र हमें स्मरण कराता है कि भारत केवल एक भूभाग नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति और चेतना है, जिसमें सब धर्म, दर्शन, और ज्ञानधाराएँ एक ही अखंड आत्मा में समाहित हैं।
नित्य श्रद्धा और भाव से इस “एकात्मता स्तोत्र” का पाठ करने से राष्ट्रप्रेम, सद्भाव, एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना दृढ़ होती है।
एकात्मता स्तोत्रम् (Ekatmata Stotram)
ॐ नमः सच्चिदानंदरूपाय नमोस्तु परमात्मने
ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमांगल्यमूर्तये॥१॥
प्रकृतिः पंचभूतानि ग्रहलोकस्वरास्तथा
दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वंतु मंगलम्॥२॥
रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्
ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ्याम् वन्दे भारतमातरम् ॥३॥
महेंद्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः
ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिश्चारावलिस्तथा ॥४॥
गंगा सरस्वती सिंधु ब्रह्मपुत्राश्च गंदकी
कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ॥५॥
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका
वैशाली द्वारका ध्येया पुरी तक्शशिला गया ॥६॥
प्रयागः पाटलीपुत्रं विजयानगरं महत्
इंद्रप्रस्थं सोमनाथस्तथामृतसरः प्रियम्॥७॥
चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा
रामायणं भारतं च गीता षड्दर्शनानि च ॥८॥
जैनागमास्त्रिपिटकः गुरुग्रन्थः सतां गिरः
एष ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा॥९॥
अरुन्धत्यनसूय च सावित्री जानकी सती
द्रौपदी कन्नगे गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥१०॥
लक्ष्मी अहल्या चन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा
निवेदिता सारदा च प्रणम्य मातृ देवताः ॥११॥
श्री रामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः
मार्कंडेयो हरिश्चन्द्र प्रह्लादो नारदो ध्रुवः ॥१२॥
हनुमान् जनको व्यासो वसिष्ठश्च शुको बलिः
दधीचि विश्वकर्माणौ पृथु वाल्मीकि भार्गवः ॥१३॥
भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा
शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥१४॥
बुद्ध जिनेन्द्र गोरक्शः पाणिनिश्च पतंजलिः
शंकरो मध्व निंबार्कौ श्री रामानुज वल्लभौ ॥१५॥
झूलेलालोथ चैतन्यः तिरुवल्लुवरस्तथा
नायन्मारालवाराश्च कंबश्च बसवेश्वरः ॥१६॥
देवलो रविदासश्च कबीरो गुरु नानकः
नरसी तुलसीदासो दशमेषो दृढव्रतः ॥१७॥
श्रीमच्छङ्करदेवश्च बंधू सायन माधवौ
ज्ञानेश्वरस्तुकाराम रामदासः पुरन्दरः ॥१८॥
बिरसा सहजानन्दो रमानन्दस्तथा महान्
वितरन्तु सदैवैते दैवीं षड्गुणसंपदम् ॥१९॥
रविवर्मा भातखंडे भाग्यचन्द्रः स भोपतिः
कलावंतश्च विख्याताः स्मरणीया निरंतरम् ॥२०॥
भरतर्षिः कालिदासः श्रीभोजो जनकस्तथा
सूरदासस्त्यागराजो रसखानश्च सत्कविः ॥२१॥
अगस्त्यः कंबु कौन्डिण्यौ राजेन्द्रश्चोल वंशजः
अशोकः पुश्य मित्रश्च खारवेलः सुनीतिमान् ॥२२॥
चाणक्य चन्द्रगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहनः
समुद्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेंद्रो बप्परावलः ॥२३॥
लाचिद्भास्कर वर्मा च यशोधर्मा च हूणजित्
श्रीकृष्णदेवरायश्च ललितादित्य उद्बलः ॥२४॥
मुसुनूरिनायकौ तौ प्रतापः शिव भूपतिः
रणजितसिंह इत्येते वीरा विख्यात विक्रमाः ॥२५॥
वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः शुश्रुतस्तथा
चरको भास्कराचार्यो वराहमिहिर सुधीः ॥२६॥
नागार्जुन भरद्वाज आर्यभट्टो वसुर्बुधः
ध्येयो वेंकट रामश्च विज्ञा रामानुजायः ॥२७॥
रामकृष्णो दयानंदो रवींद्रो राममोहनः
रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानंद उद्यशः ॥२८॥
दादाभाई गोपबंधुः टिळको गांधी रादृताः
रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रमण्य भारती ॥२९॥
सुभाषः प्रणवानंदः क्रांतिवीरो विनायकः
ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरुः ॥३०॥
संघशक्ति प्रणेतारौ केशवो माधवस्तथा
स्मरणीय सदैवैते नवचैतन्यदायकाः ॥३१॥
अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरण संसक्तहृदयाः
अविज्ञाता वीरा अधिसमरमुद्ध्वस्तरि पवः
समाजोद्धर्तारः सुहितकर विज्ञान निपुणाः
नमस्तेभ्यो भूयात्सकल सुजनेभ्यः प्रतिदिनम् ॥ ३२॥
इदमेकात्मता स्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत्
स राष्ट्रधर्म निष्ठावानखंडं भारतं स्मरेत् ॥३३॥
पाठ की विधि (Vidhi):
- शुद्धता और संकल्प:
प्रातःकाल स्नान आदि से शुद्ध होकर शांत मन से भगवान की उपासना करें।
दीप प्रज्वलित करें और भारत माता या अपने इष्टदेव के समक्ष बैठें। - संकल्प लें:
“मैं भारत माता की अखंडता, एकता और कल्याण के लिए श्रद्धा पूर्वक ‘एकात्मता स्तोत्र’ का पाठ कर रहा/रही हूँ।” - पाठ का नियम:
- इसे प्रति दिन, सप्ताह में एक बार (विशेषकर रविवार को) या राष्ट्रीय पर्वों (15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर आदि) पर पाठ करें।
- पाठ के समय मन में राष्ट्रभक्ति, एकता और करुणा का भाव रखें।
- प्रत्येक श्लोक के बाद “जयतु भारतमातरम्” या “वन्दे मातरम्” का उच्चारण करना शुभ माना गया है।
- समापन:
पाठ पूर्ण होने पर भारत माता, देवगण, गुरुजनों और सभी महापुरुषों को नमन करें।
अंत में शांति मंत्र या “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” का उच्चारण करें।
लाभ (Benefits):
- यह स्तोत्र व्यक्ति में मातृभूमि के प्रति प्रेम, श्रद्धा और अखंडता की भावना को जागृत करता है।
- शुद्ध भाव से पाठ करने पर मन में सकारात्मकता, साहस और आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।
- भारत के महान संतों, ऋषियों, वीरों और विद्वानों के स्मरण से सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव गहरा होता है।
- यह स्तोत्र धर्म, जाति या क्षेत्र से परे, सबको “एक आत्मा” के रूप में देखने की दृष्टि देता है।
- जब कभी व्यक्ति या समाज निराशा में हो, तब इस स्तोत्र का पाठ मानसिक बल और प्रेरणा प्रदान करता है।
- यदि विद्यालयों, संस्थानों या परिवारों में सामूहिक रूप से इसका पाठ किया जाए तो वातावरण में आध्यात्मिक और राष्ट्रभक्ति की ऊर्जा फैलती है।





















































