
भारत की प्राचीन पौराणिक कथाएँ रहस्यों, चमत्कारों और अलौकिक घटनाओं से भरी हैं। इन्हीं में से एक है पंख वाले पर्वतों की अविश्वसनीय गाथा और उनमें से एकमात्र जीवित पर्वत मैनाक की कथा। यह कहानी न केवल अद्भुत है, बल्कि देवी पार्वती, पर्वतराज हिमालय और हनुमान जी से भी गहराई से जुड़ी हुई है।
जब पर्वत उड़ते थे आकाश में — पंख वाले पर्वतों का प्रचंड युग और इंद्र के वज्र का दिव्य प्रहार
जब पर्वत उड़ते थे — धरती पर विनाश!
प्राचीन काल में सभी पर्वतों के पंख होते थे। वे आकाश में पक्षियों की तरह उड़ते थे और जहां मन करता, वहीं जा उतरते थे। लेकिन उनके उड़ने से पृथ्वी पर भयानक विनाश मचता था।
पर्वतों की उड़ान से भूकंप जैसा कंपन होता था। जंगलों में पेड़-पौधे उखड़ जाते थे। गुफाओं में रहने वाले जीव-जंतु दबकर मर जाते थे। जिन गुफाओं में ऋषि-मुनि तपस्या करते थे, वह तपस्या भंग हो जाती थी। पर्वत जहां गिरते, वहां बसे गांव और जीव-जंतु पल भर में मिट जाते थे। पर्वतों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
इस विनाश से परेशान होकर देवताओं, ऋषियों और मानवों ने इंद्र से प्रार्थना की कि वह इस संकट का अंत करें।
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इंद्र का निर्णय — पंखों का अंत
इंद्र ने पर्वतों को समझाया, पर जब वे नहीं माने, तो इंद्र ने अपना दिव्य हथियार वज्र उठाया और सभी पर्वतों के पंख काट दिए।
धरती पर शांति लौट आई। पर्वत एक स्थान पर स्थिर हो गए और मानव जीवन सुरक्षित हुआ।
लेकिन एक पर्वत बच गया…
मैनाक — पंख वाला आख़िरी पर्वत
जब इंद्र पर्वतों के पंख काट रहे थे, तभी पवन देव ने अपने मित्र हिमवान के पुत्र मैनाक पर्वत को समुद्र में छिपा दिया।
समुद्र देव ने भी उसकी रक्षा की। इस तरह मैनाक एकमात्र पर्वत बना जिसके पंख आज भी सुरक्षित हैं।
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मैनाक पर्वत का परिवार
मैनाक का जन्म एक दिव्य परिवार में हुआ था।
पिता – पर्वतराज हिमवान / हिमाचल
देवी पार्वती के पिता, हिमालय पर्वतों के अधिपति।
माता – मैनादेवी (मेना)
पवित्र और सात्विक माता, हिमवान की धर्मपत्नी।
बहन – देवी पार्वती (सती, उमा, दुर्गा)
भगवान शिव की पत्नी।
इस प्रकार मैनाक पर्वत देवी पार्वती के सगे भाई हैं।
बहन – गंगा नदी
कई पुराणों में इन्हें भी हिमवान की पुत्री कहा गया है।
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जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे, तो समुद्र देव और वायु देव ने मिलकर मैनाक से कहा कि वह हनुमान जी को विश्राम दे।
मैनाक समुद्र से ऊपर उठा और बोला—
“हे पवनपुत्र! आपके पिता ने मेरी रक्षा की थी। मैं आपका स्वागत करना चाहता हूँ।”
हनुमान जी ने प्रेम से उसके शिखर को स्पर्श किया और कहा—
“मैं रुक नहीं सकता, मुझे रामकाज के लिए आगे बढ़ना है।”
यह क्षण कृतज्ञता, प्रेम और धर्म का सुंदर उदाहरण है।
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मैनाक पर्वत आज कहाँ है?
पुराणों के अनुसार वह आज भी हिंद महासागर की गहराइयों में मौजूद है।
वैज्ञानिकों ने भारत–श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र के नीचे एक विशाल समुद्री पर्वत-श्रृंखला खोजी है, जिसे पौराणिक मैनाक पर्वत से जोड़ा जाता है।
मैनाक पर्वत का संदेश
मैनाक पर्वत कृतज्ञता, साहस, भाई-बहन के प्रेम और सेवा का प्रतीक है।
वह उस युग का अंतिम जीवित साक्षी है जब पर्वतों के पंख हुआ करते थे।
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