
हिंदू धर्म के रहस्यमयी लोक में एक ऐसा देवता हैं, जिनके नाम से ही दुष्ट कांप उठते हैं —
वो हैं भगवान काल भैरव, जो समय, मृत्यु और न्याय के स्वामी माने जाते हैं।
उनकी भक्ति से भय समाप्त होता है और अधर्मियों का विनाश होता है।
उनकी जयंती, जिसे कालाष्टमी या काल भैरव जयंती कहा जाता है, रहस्य और आध्यात्मिक शक्ति से भरी होती है।
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काल भैरव का जन्म: जब अहंकार से जन्मा विनाश
कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माता होने का गर्व करने लगे। उन्होंने भगवान शिव को भी अपने से निम्न बताना शुरू कर दिया।
शिव जी का यह अपमान सहा नहीं गया और उनके भौंहों से एक भयंकर ज्योति निकली —
वह ज्योति थी काल भैरव।
जन्म लेते ही काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पाँचवें सिर को काट दिया।
इस कारण उन्हें “ब्रह्म-हत्या” का दोष लगा और वे पृथ्वी पर भटकने लगे।
लेकिन जहाँ-जहाँ वे गए, वहाँ की भूमि पवित्र हो गई।
अंत में काशी में उनका पाप समाप्त हुआ, और तबसे वे काशी के रक्षक — “काशी के कोतवाल” कहलाए।
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काल भैरव का स्वरूप: भय का नहीं, न्याय का प्रतीक
काल भैरव का स्वरूप अत्यंत उग्र है —
वे काले वर्ण के हैं, गले में सर्पमाला धारण करते हैं, हाथों में त्रिशूल, डमरू, खड्ग और कपाल रखते हैं।
उनका वाहन है श्वान (कुत्ता), जो उनकी निष्ठा और जागरूकता का प्रतीक है।
भैरव का हर रूप न्याय और धर्म की रक्षा के लिए है।
उनकी उपस्थिति का अर्थ है —
“समय किसी के लिए नहीं रुकता। जो अधर्म करेगा, उसे काल भैरव अवश्य दंड देंगे।”
काल भैरव का रहस्य: शिव के आठ रूपों में एक
भगवान शिव के आठ उग्र रूपों में एक हैं काल भैरव।
इन आठ रूपों को “अष्ट भैरव” कहा जाता है, जिनमें सबसे प्रमुख हैं महाकाल भैरव।
यह आठ दिशाओं की रक्षा करते हैं और भक्तों को भय, शत्रु और मृत्यु से मुक्ति देते हैं।
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काल भैरव की उपासना: भय को भक्ति में बदलने की साधना
काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति अपने जीवन के सबसे कठिन संकटों पर विजय पा सकता है।
उनकी उपासना प्रायः रात्रि में, विशेष रूप से अष्टमी तिथि को की जाती है।
भक्त सरसों के तेल का दीपक जलाकर उनका ध्यान करते हैं और यह मंत्र जपते हैं —
“ॐ कालभैरवाय नमः”
या
“ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ”
कहा जाता है कि जो व्यक्ति भैरव अष्टक या भैरव चालीसा का पाठ करता है,
उसे किसी भी प्रकार की तंत्र, भूत या नकारात्मक शक्ति हानि नहीं पहुँचा सकती।
काल भैरव और समय का रहस्य
“काल” का अर्थ ही समय है, और “भैरव” का अर्थ है भय का नाश करने वाला।
अर्थात् काल भैरव वह हैं जो समय को भी नियंत्रित करते हैं।
जो उनके शरण में आता है, उसके जीवन से अंधकार मिट जाता है।
कहा जाता है —
“जो काल भैरव का भक्त होता है, समय भी उसका सेवक बन जाता है।”
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प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर
भारत में कई स्थानों पर काल भैरव की अद्भुत उपासना की जाती है।
- काल भैरव मंदिर, उज्जैन (मध्य प्रदेश): यहाँ भगवान को मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
- काल भैरव मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश): यहाँ वे काशी के कोतवाल कहलाते हैं।
- ओंकारेश्वर भैरव मंदिर, मध्य प्रदेश
- काल भैरव मंदिर, तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु)
इन मंदिरों में भैरव भक्त विशेष रूप से कालाष्टमी की रात को दीपक जलाकर जागरण करते हैं।
काल भैरव जयंती: रहस्यमयी रात्रि का पर्व
काल भैरव जयंती हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है।
यह वह रात्रि होती है जब साधक भैरव की कृपा पाने के लिए साधना करते हैं।
कहा जाता है कि इस रात भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके भय का अंत करते हैं।
2025 में यह तिथि 23 नवंबर (रविवार) को मनाई जाएगी।
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निष्कर्ष: भैरव की भक्ति – भय से परे एक चेतना
काल भैरव केवल भय के देवता नहीं, बल्कि समय, अनुशासन और न्याय के प्रतीक हैं।
उनकी आराधना हमें यह सिखाती है कि जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर अडिग रहता है,
उसे कोई भय स्पर्श नहीं कर सकता।
उनके एक ही नाम का स्मरण भी —
“जय काल भैरव!” —
भय को भस्म करने और जीवन में शक्ति, साहस और सफलता भरने की शक्ति रखता है।
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