
भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक मां नर्मदा के तट पर की जाने वाली नर्मदा परिक्रमा एक ऐसी अद्भुत यात्रा है, जिसे शब्दों में समेटना लगभग असंभव है। यह कोई साधारण यात्रा नहीं बल्कि आत्मा को जागृत करने वाली 3000 किलोमीटर लंबी तपस्या है। यह यात्रा अमरकंटक से नर्मदा के उद्गम से उसके संगम (भरूच) तक, फिर विपरीत दिशा में वापस अमरकंटक तक की होती है।
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नर्मदा परिक्रमा क्यों अद्भुत मानी जाती है?
नर्मदा नदी को हिंदू धर्म में एकमात्र ऐसी नदी माना गया है जिसकी स्वयं परिक्रमा करने से पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है:
“गंगा स्नान, यमुना दर्शन और नर्मदा परिक्रमा।”
नर्मदा परिक्रमा मां के साक्षात दर्शन जैसा अनुभव देती है।
परिक्रमा कितने दिनों में पूरी होती है?
यह यात्रा सामान्यतः:
- 90 दिन (तेज गति)
- 5 से 6 महीने (सामान्य गति)
- 9 से 12 महीने (पारंपरिक गति)
कुछ साधु इसे 1 से 3 वर्ष तक में भी पूरी करते हैं।
परिक्रमा कैसे की जाती है?
1. पैदल यात्रा
परिक्रमा अधिकतर पैदल की जाती है। दक्षिण तट से अमरकंटक से भरूच जाते हैं और उत्तरी तट से वापस लौटते हैं।
2. नर्मदा पार करना वर्जित
परिक्रमा में नर्मदा नदी को पार करना वर्जित है, आवश्यकता पड़ने पर ही अनुमति है।
3. भीख मांगना वर्जित
परिक्रमावासी धन नहीं मांगते, न ही धन को छूते हैं। केवल जरूरत का भोजन स्वीकार करते हैं।
4. रात नदी तट पर रुकना
यात्री सामान्यतः हर दिन नदी तट पर ही विश्राम करते हैं।
परिक्रमा का मार्ग (वास्तविक और प्रचलित)
1. अमरकंटक (नर्मदा उद्गम)
यहां से यात्रा प्रारंभ होती है। जंगलों और पहाड़ों के बीच दिव्य वातावरण मिलता है।
2. डिंडोरी — जबलपुर — भेड़ाघाट
भेड़ाघाट के संगमरमरी पहाड़ नर्मदा की सुंदरता को अद्भुत बनाते हैं।
3. बरमान घाट — नरसिंहपुर — होशंगाबाद
घाट, मंदिर और शांत प्रवाह यात्रियों को आकर्षित करते हैं।
4. ओंकारेश्वर — महेश्वर
यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग है और महेश्वर के घाट अत्यंत सुन्दर हैं।
5. भरूच
यह नर्मदा का सागर से संगम है। यहां तक पहुंचने को प्रथम चरण मानते हैं। यहां से उत्तरी तट से वापसी आरंभ होती है।
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6. चोरल — मंडलेश्वर — झाबुआ — अलीराजपुर
यह हिस्सा जंगलों और आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुजरता है, जो रोमांचक है।
7. बार्डा — संकड़ा — राजघाट
शांत और निर्जन मार्ग, जहां यात्रियों को गहराई से आध्यात्मिक अनुभूति होती है।
8. अमरकंटक वापसी
लंबी यात्रा के बाद मां की गोद में लौटने का अनुभव अत्यंत अद्भुत होता है।
परिक्रमा के दौरान यात्रियों के अनुभव
यात्रियों के अनुसार:
- ऐसा लगता है जैसे नदी स्वयं मार्गदर्शन कर रही हो।
- अनजान लोग बिना कहे भोजन-पानी दे देते हैं।
- रात में नदी की धारा की आवाज़ मन को शांत करती है।
- शरीर थकता है पर मन हल्का होता जाता है।
- कई यात्रियों को स्वप्न में मार्गदर्शन मिलता है।
कहा जाता है:
“नर्मदा चलाती है, हम केवल कदम रखते हैं।”
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परिक्रमा के नियम
- मन शुद्ध रखना
- क्रोध न करना
- सात्त्विक भोजन
- मांस, शराब, तंबाकू वर्जित
- बहते जल में ही नर्मदा का जल ग्रहण
- पेड़ों को नुकसान न पहुंचाना
- सूर्यास्त के बाद लंबी यात्रा न करना
परिक्रमा कब करनी चाहिए?
अक्टूबर से मार्च परिक्रमा के लिए सबसे उत्तम मौसम माना जाता है। गर्मियों में यात्रा कठिन होती है।
कौन परिक्रमा करता है?
साधु, गृहस्थ, युवा, वृद्ध, महिलाएं — यह यात्रा हर उस व्यक्ति की है जो श्रद्धा और धैर्य रखता है।
परिक्रमा के वास्तविक चैलेंज
- जंगलों में रात बिताना
- गर्मी और पथरीला मार्ग
- जंगली जानवरों का भय
- रोज 15 से 25 किमी पैदल चलना
- कम साधनों में रहना
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परिक्रमा के लाभ
- मन को शांति
- नकारात्मकता दूर होती है
- शरीर स्वस्थ होता है
- आत्मविश्वास बढ़ता है
- प्रकृति से गहरा जुड़ाव होता है
- जीवन का अर्थ समझ आता है
कई लोग कहते हैं कि परिक्रमा पूरी होते-होते नया जन्म मिलता है।
निष्कर्ष
नर्मदा परिक्रमा एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा का जागरण है। यह यात्रा तभी होती है जब मां नर्मदा स्वयं बुलाती हैं।
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