
हिंदू धर्म में हर पेड़-पौधे का कोई न कोई आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व होता है। इनमें से एक है कंदली वृक्ष, जिसे हम आज केले का पेड़ कहते हैं।
केला न केवल हमारे भोजन का हिस्सा है, बल्कि यह पूजा, व्रत और यज्ञ का भी एक अविभाज्य अंग है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र वृक्ष की उत्पत्ति के पीछे एक भावनात्मक और रहस्यमयी कथा जुड़ी हुई है?
आइए जानते हैं — वह कहानी जिसने “कंदली” को “अमर वृक्ष” बना दिया।
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ऋषि दुर्वासा और कंदली की कथा
बहुत समय पहले, महान तपस्वी ऋषि दुर्वासा अपनी पत्नी कंदली के साथ एक शांत वन में आश्रम बनाकर रहते थे।
ऋषि दुर्वासा अपने तेज, योगबल और क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे। उनके शाप से देवता भी डरते थे।
एक रात, जब वे सोने जा रहे थे, उन्होंने अपनी पत्नी से कहा —
“हे कंदली! मुझे कल प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में अवश्य जगा देना। मुझे एक विशेष यज्ञ और पूजा करनी है, जो उसी समय सिद्ध होगी।”
कंदली ने आदरपूर्वक कहा —
“स्वामी, आप निश्चिंत रहें। मैं आपको सही समय पर अवश्य उठा दूँगी।”
रात बीती।
चारों ओर गहरी निस्तब्धता छा गई।
धीरे-धीरे कंदली की आँख लग गई और वह नींद में डूब गईं।
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क्रोध और शाप का क्षण

जब सूर्य की पहली किरणें धरती पर पड़ीं, तब ऋषि दुर्वासा की नींद खुली।
उन्होंने देखा कि ब्रह्ममुहूर्त निकल चुका है और उनका यज्ञ का समय बीत गया।
उनका मुख तेजस्वी हो उठा, और उन्होंने क्रोध में कहा —
“हे कंदली! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इस अपराध के लिए तुम्हें अपने शरीर से हाथ धोना पड़ेगा!”
यह कहते ही उन्होंने कंदली को शाप दिया, और देखते ही देखते कंदली राख में बदल गईं।
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पश्चाताप और वरदान
कुछ क्षण बाद जब ऋषि का क्रोध शांत हुआ, तो उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ।
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा —
“हे कंदली! तुमने केवल भूलवश त्रुटि की, परंतु मेरे शाप से तुम्हारा विनाश हो गया।
अब मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ — तुम्हारी राख से एक पवित्र वृक्ष उत्पन्न होगा।
वह सदा हरा-भरा रहेगा, फल देगा, और मानव समाज के लिए कल्याणकारी बनेगा।
लोग उसे तुम्हारे नाम से ‘कंदली वृक्ष’ कहेंगे।”
कुछ समय बाद, जहाँ कंदली की राख पड़ी थी, वहाँ एक नया पौधा उगा।
वह पौधा था केला — कंदली वृक्ष।
और इस प्रकार, केले का पेड़ एक स्त्री के समर्पण, पश्चाताप और अमरता का प्रतीक बन गया।
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कंदली वृक्ष का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
- भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते और फल अनिवार्य माने जाते हैं।
- विवाह, व्रत और यज्ञ में केले के पौधों से मंडप सजाने की परंपरा है।
- दक्षिण भारत और बंगाल में इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- ब्रह्मा, विष्णु और शिव – तीनों देवताओं की पूजा में कंदली वृक्ष को शुभ फलदायी कहा गया है।
- केले का पौधा सदा हराभरा रहता है, इसलिए इसे “अविनाशी जीवन का प्रतीक” भी कहा गया है।
आध्यात्मिक अर्थ
कंदली की कथा केवल एक पौराणिक घटना नहीं है, बल्कि एक जीवन शिक्षा भी देती है —
“भूल हर किसी से होती है, लेकिन सच्चे पश्चाताप से जीवन में नई शुरुआत संभव है।”
केले का पौधा इस बात का प्रतीक है कि त्याग और निष्ठा कभी व्यर्थ नहीं जाते।
निष्कर्ष
कंदली वृक्ष की यह कथा हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के हर जीव और पौधे में दैवीय शक्ति छिपी होती है।
केला सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रतीक है —
जो हमें सिखाता है कि प्रेम, समर्पण और क्षमा से हर शाप भी वरदान बन सकता है।













































