नवरत्न स्तोत्र का अर्थ है “नौ रत्नों के समान अमूल्य श्लोकों वाला स्तोत्र”। यह स्तोत्र श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा रचित माना जाता है और यह पुष्टिमार्ग (भक्ति मार्ग) का अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें कुल नौ श्लोक हैं — प्रत्येक श्लोक भक्ति, समर्पण और विश्वास का एक रत्न है।
यह स्तोत्र सिखाता है कि जब भक्त अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर देता है — तब उसे संसार की किसी भी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। भगवान स्वयं उसके रक्षक, कर्ता और नियंता बन जाते हैं।
नवरत्न स्तोत्र (Navratna Stotra)
चिन्ता कापि न कार्या निवेदितात्मभिः कदापीति |
भगवानपि पुष्टिस्यो न करिष्यति लौकिकीं च गतिम् ||१||
निवेदनंतुस्मर्तव्यं सर्वथा तादृशैर्जनेः |
सर्वेश्वरश्चसर्वात्मा निजेच्छातः करिष्यति ||२||
सर्वेषां प्रभुसम्बन्धो न प्रत्येकमितिस्थितिः |
अतोन्यविनियोगेऽपि चिन्ताकास्वस्यसोऽपिचेत् ||३||
अज्ञानादथवा ज्ञानात् कृतमात्मनिवेदनम् |
यैः कृष्णसात्कृतप्राणैस्तेषां का परिदेवना ||४||
तथा निवेदने चिन्ता त्याज्या श्रीपुरुषोत्तमे |
विनियोगेऽपि सा त्याज्या समर्थो हि हरिःस्वतः ||५||
लोके स्वास्थ्यं तथा वेदे हरिस्तु न करिष्यति |
पुष्टिमार्गस्थितो यस्मात्साक्षिणो भवताखिलाः ||६||
सेवाकृतिर्गुरोराज्ञा बाधनं वा हरीच्छया |
अतः सेवापरंचित्तं विधायस्थीयतां सुखम् ||७||
चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत्करिष्यति |
तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत् ||८||
तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम |
वदद्भिरेव सततं स्थेयमित्येव मे मतिः ||९||
नवरत्न स्तोत्र (Navratna Stotra) हिंदी अर्थ
जो भक्त अपने आप को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित कर देता है, उसे किसी भी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए। भगवान अपने ऐसे भक्तों को सांसारिक सुखों में नहीं उलझाते, बल्कि उन्हें दिव्य मार्ग पर चलाते हैं।
जो भक्त सच्चे मन से भगवान को सब कुछ अर्पित करता है, उसे हमेशा यह याद रखना चाहिए कि प्रभु सर्वेश्वर हैं — वे अपनी इच्छा से अपने भक्त का कल्याण करते हैं।
हर जीव का सीधा संबंध भगवान से है। इसलिए चाहे कोई भी परिस्थिति हो, भक्त को चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो कुछ होता है, वह भगवान की इच्छा से ही होता है।
जो भक्त ज्ञान या अज्ञान में, किसी भी रूप में अपने जीवन को श्रीकृष्ण को समर्पित कर देता है, उसके लिए फिर दुख या चिंता का कोई कारण नहीं रह जाता — उसके प्राण अब भगवान के अधीन हो चुके हैं।
जब सब कुछ भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया गया है, तब चिंता करना व्यर्थ है। हरि स्वयं समर्थ हैं — वे जो करेंगे, वही भक्त के लिए सर्वोत्तम होगा।
संसार में चाहे कोई भी नियम या स्थिति क्यों न हो, जो भक्त पुष्टिमार्ग में स्थिर है, उसके लिए स्वयं भगवान ही साक्षी और रक्षक हैं।
सेवा करना गुरु की आज्ञा से होता है, और उसमें आने वाली बाधाएँ भी हरि की इच्छा से ही होती हैं। इसलिए सेवा करते समय मन को स्थिर और प्रसन्न रखना चाहिए।
यदि कभी मन विचलित हो जाए या कोई विपरीत परिस्थिति आए, तो यह समझना चाहिए कि यह भी भगवान की लीला है। ऐसा सोचकर चिंता तुरंत छोड़ देनी चाहिए।
इसलिए मैं सम्पूर्ण भाव से सदा श्रीकृष्ण को ही अपनी शरण मानता हूँ। “श्रीकृष्ण मेरी शरण हैं” — यही मेरा दृढ़ विश्वास और नित्य संकल्प है।
नवरत्न स्तोत्र का महत्त्व (Importance of Navratna Stotra)
- पूर्ण समर्पण का संदेश:
यह स्तोत्र हमें सिखाता है कि भगवान को समर्पित जीवन में कोई भय या चिंता नहीं होती। - भक्त-भगवान का संबंध:
इसमें बताया गया है कि हर जीव का सीधा संबंध भगवान से है; वह किसी मध्यस्थ के बिना भी उनसे जुड़ा रह सकता है। - विश्वास की दृढ़ता:
भक्त को हर परिस्थिति में यह विश्वास रखना चाहिए कि जो कुछ होता है, वह भगवान की इच्छा से ही होता है। - मन की शांति:
इस स्तोत्र का नियमित पाठ मन की अशांति, भय और चिंता को दूर कर आत्मिक शांति देता है। - पुष्टिमार्ग की व्याख्या:
इसमें पुष्टिमार्ग के मूल सिद्धांत — “समर्पण, सेवा और कृपा पर विश्वास” — को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया गया है।
नवरत्न स्तोत्र के पाठ के लाभ (Benefits of Reciting Navratna Stotra)
- जीवन की सभी चिंताएँ और भय दूर होते हैं।
- मन में अडिग विश्वास और स्थिरता आती है।
- सेवा भाव और समर्पण शक्ति बढ़ती है।
- हर कार्य में भगवान की इच्छा का अनुभव होता है।
- व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से परिपक्व और शांत बनता है।











































