“न्यासा दशकम्” एक अत्यंत पवित्र वैष्णव स्तोत्र है, जिसे श्रीवैष्णव परंपरा में पूर्ण आत्मसमर्पण (शरणागति) के रूप में माना गया है। “न्यास” शब्द का अर्थ है — समर्पण या आत्मनिवेदन।
यह स्तोत्र भगवान श्रीविष्णु (श्रीपति) के चरणों में अपनी आत्मा, शरीर और कर्मों को समर्पित करने का भाव व्यक्त करता है। इसमें भक्त अपने मन, वचन और कर्म से प्रभु को अपना एकमात्र रक्षक और स्वामी मानकर, स्वयं को पूर्णतः ईश्वर के अधीन कर देता है।
न्यासा दशकम् के दस श्लोकों में पूर्ण शरणागति के पाँच अंग (आत्मनिवेदन, रक्षण का भरोसा, दैन्य, अनुरूपता, और अनन्यता)* का सुंदर विवेचन मिलता है।
यह स्तोत्र भक्त को परम शांति, विश्वास और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
न्यासा दशकम् (Sri Nyaasa Dashakam)
अहं मद्रांक्षणभरो मद्रंक्षणफलं तथा।
न मम श्रीपतरेवेत्यात्मानं निक्षेपेद् बुध:।। 1।।
न्यस्याम्यकिंचन: श्रीमन्नुकूलोऽन्यवर्जित:।
विश्वासप्रार्थनापूर्वात्मारक्षाभरं त्वयि।। 2।।
स्वामी स्वशेषं स्ववशं स्वभरत्वेन स्थिरम्।
स्वदत्तस्वधिया हितैषी स्वस्मिन्नयस्यति मन स्वयम्।। 3।।
श्रीमन्नभीष्टवरद् त्वामस्मि शरणं गत:।
एतद्देहावसने मां त्वत्पादं प्रापय स्वयम्।। 4।।
त्वच्छेष्टवे स्थिरध्यायं त्वत्प्राप्त्येकप्रयोजनम्।
एलर्जीकाम्यरितं कुरु मां नित्यकिंकरम्।। 5।।
देवीभूषणहेत्यादिजुष्टस्य भगवानस्तव।
नित्यं निरपरधेषु कैंकरयेषु नियुंगक्ष्व माम्।। 6।।
मां मदीयं च निखिलं अनिचेतनात्मकम्।
स्वकैकंर्योपकरणं वरद स्विकुरु स्वयम्।। 7।।
त्वमेव रक्षकोऽसि मे त्वमेव करुणाकर:।
न प्रवर्तय पापानि प्रवृत्तानि निवारय।। 8।।
अकृत्यानां च कारणं कृत्यानां संस्करणं च मे।
क्षमस्व निखिलं देव प्रत्यन्तरिहर प्रभो।। 9।।
श्रीमन्नियतपंचांग मद्राक्षाभरार्पणम्।
अचिकर्त्सवैयं स्वस्मिन्नतोऽहमिह प्रतिबंधः।। 10।।
.. इति न्यासा दशकम् संपूर्णम्।।
लाभ (Benefits)
- आत्मिक शांति:
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से मन में स्थिरता, विश्वास और ईश्वर के प्रति निष्ठा उत्पन्न होती है। - भय और चिंता का नाश:
भगवान को अपना एकमात्र रक्षक मानने से सभी प्रकार के भय, चिंता और असुरक्षा की भावना समाप्त होती है। - पापों का क्षालन:
“अकृत्यानां च कारणं कृत्यानां संस्करणं च मे” — इस श्लोक के भाव से ज्ञात होता है कि यह स्तोत्र पापों को नष्ट करता है और आत्मा को पवित्र करता है। - भक्ति और समर्पण की वृद्धि:
यह स्तोत्र भक्त के भीतर पूर्ण surrender की भावना जगाता है, जिससे भगवान के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति विकसित होती है। - मोक्ष का मार्ग:
जो भक्त श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसे जीवनांत में भगवान श्रीविष्णु के चरणों की प्राप्ति होती है।
पाठ विधि (Vidhi)
- प्रातःकाल या सायंकाल शांत मन से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान श्रीविष्णु, लक्ष्मीजी या अपने आराध्य देव का स्मरण करें।
- दीपक जलाकर, हाथ जोड़कर संकल्प लें —
“आज मैं भगवान श्रीविष्णु के चरणों में अपने समर्पण का निवेदन करता हूँ।” - तत्पश्चात श्रद्धा और भक्ति से न्यासा दशकम् का पाठ करें।
- प्रत्येक श्लोक के बाद थोड़ी देर ध्यान करें कि आप अपने मन, शरीर और कर्मों को प्रभु के हवाले कर रहे हैं।
- अंत में प्रार्थना करें —
“हे प्रभु, मेरे सभी कर्म आपके चरणों में समर्पित हैं, आप ही मेरे रक्षक और स्वामी हैं।”
विशेष सुझाव:
- इसे विष्णु, राम, कृष्ण या लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति या चित्र के समक्ष पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
- शुक्लपक्ष की एकादशी, पूर्णिमा या गुरुवार को इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- मानसिक अशांति, भय, या जीवन में अस्थिरता के समय इसका पाठ अत्यंत लाभकारी है।





















































