“श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्” आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अद्भुत दार्शनिक और आध्यात्मिक स्तोत्र है।
यह स्तोत्र भगवान शिव के दक्षिणामूर्ति रूप की स्तुति में समर्पित है — जो मौन रूप से ज्ञान का उपदेश देने वाले गुरु हैं।
भगवान दक्षिणामूर्ति “गुरुतत्त्व” के मूर्त स्वरूप हैं। वे वटवृक्ष (बड़ के पेड़) के नीचे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे हैं, और उनके चारों ओर वृद्ध ऋषि शिष्य रूप में बैठे हैं।
गुरु कुछ नहीं बोलते, फिर भी उनके मौन से शिष्य आत्मबोध प्राप्त कर लेते हैं।
यह स्तोत्र अद्वैत वेदांत का सार है — यह बताता है कि गुरु, ईश्वर और आत्मा — तीनों एक ही हैं।
श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् (Dakshinamurthy Stotram)
मौनव्याख्या प्रकटित परब्रह्मतत्त्वं युवानं
वर्षिष्ठांते वसद् ऋषिगणैः आवृतं ब्रह्मनिष्ठैः ।
आचार्येन्द्रं करकलित चिन्मुद्रमानंदमूर्तिं
स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥१॥
वटविटपिसमीपेभूमिभागे निषण्णं
सकलमुनिजनानां ज्ञानदातारमारात् ।
त्रिभुवनगुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं
जननमरणदुःखच्छेद दक्षं नमामि ॥२॥
चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धाः शिष्या गुरुर्युवा ।
गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तुच्छिन्नसंशयाः ॥३॥
निधये सर्वविद्यानां भिषजे भवरोगिणाम् ।
गुरवे सर्वलोकानां दक्षिणामूर्तये नमः ॥४॥
ॐ नमः प्रणवार्थाय शुद्धज्ञानैकमूर्तये ।
निर्मलाय प्रशान्ताय दक्षिणामूर्तये नमः ॥५॥
चिद्घनाय महेशाय वटमूलनिवासिने ।
सच्चिदानन्दरूपाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥६॥
ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने ।
व्योमवद् व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥७॥
श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् (Dakshinamurthy Stotram) — हिन्दी अनुवाद सहित
जो मौन रूप में ही परम ब्रह्म का तत्त्व प्रकट करते हैं, जो सदैव यौवनयुक्त हैं,
जिनके चारों ओर ब्रह्मनिष्ठ ऋषिगण बैठे हैं,
जो ज्ञानमुद्रा धारण किए आनंदस्वरूप हैं,
जो अपने आत्मस्वरूप में स्थित होकर प्रसन्न मुख हैं —
ऐसे आचार्यश्रेष्ठ भगवान् दक्षिणामूर्ति की मैं वंदना करता हूँ। ॥१॥
जो वटवृक्ष के नीचे भूमि पर विराजमान हैं,
जो सभी मुनियों को ज्ञान प्रदान करने वाले हैं,
जो तीनों लोकों के गुरु और ईश्वर हैं,
जो जन्म और मृत्यु के दुःखों को नष्ट करने में समर्थ हैं —
ऐसे दक्ष दक्षिणामूर्ति देव को मैं नमस्कार करता हूँ। ॥२॥
यह एक अद्भुत दृश्य है — वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य बैठे हैं और गुरु तो युवा हैं।
गुरु मौन रहते हुए भी उपदेश करते हैं और शिष्यों के सभी संशय मिट जाते हैं। ॥३॥
जो सभी विद्याओं के भंडार हैं,
जो संसार रूपी रोग के रोगियों के वैद्य हैं,
जो सभी लोकों के गुरु हैं —
ऐसे भगवान् दक्षिणामूर्ति को नमस्कार है। ॥४॥
ॐ प्रणव के अर्थस्वरूप,
शुद्ध ज्ञान के एकमात्र स्वरूप,
निर्मल और परम शांत भगवान् दक्षिणामूर्ति को नमस्कार है। ॥५॥
जो पूर्ण चैतन्यस्वरूप हैं, जो महेश हैं,
जो वटवृक्ष के नीचे निवास करते हैं,
जो सच्चिदानंदरूप (सत्-चित्-आनंद स्वरूप) हैं —
ऐसे भगवान् दक्षिणामूर्ति को नमस्कार है। ॥६॥
जो ईश्वर, गुरु और आत्मा — इन तीनों के रूप में प्रकट होते हैं,
जो आकाश की भाँति सर्वव्यापक हैं —
ऐसे भगवान् दक्षिणामूर्ति को नमस्कार है। ॥७॥
पाठ के लाभ (Benefits)
- आत्मज्ञान की प्राप्ति — यह स्तोत्र साधक को आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव कराता है।
- अज्ञान और भ्रम का नाश — इसके नियमित पाठ से मन में स्पष्टता, विवेक और ज्ञान का प्रकाश होता है।
- मन की शांति और स्थिरता — यह ध्यान और साधना में एकाग्रता लाता है।
- विद्या, बुद्धि और स्मरणशक्ति में वृद्धि — विद्यार्थी और साधक दोनों के लिए अत्यंत लाभकारी।
- गुरु कृपा की प्राप्ति — यह स्तोत्र गुरु-तत्त्व को जागृत करता है और आत्मिक मार्गदर्शन देता है।
- भवसागर से मुक्ति — दक्षिणामूर्ति को ‘भव रोग के वैद्य’ कहा गया है, अतः इसका पाठ मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- प्रातःकाल या सायंकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- किसी शांत स्थान पर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठें।
- अपने सामने भगवान शिव या दक्षिणामूर्ति की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
- दीप, धूप और जल अर्पित करें।
- पहले “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः…” मंत्र से गुरु का स्मरण करें।
- फिर एकाग्र मन से “श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्” का पाठ करें।
- पाठ के बाद “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ दक्षिणामूर्तये नमः” का जप करें।
- अंत में शांत मन से गुरु और ईश्वर का ध्यान करें।



















































