“आद्या स्तोत्र” एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली देवी स्तोत्र है, जो ब्रह्मयामल तंत्र में वर्णित है। यह स्तोत्र स्वयं भगवान ब्रह्मा और नारद जी के संवाद में प्रकट हुआ है। इसमें आद्या शक्ति (मूल आदिशक्ति, जिसे दुर्गा, महाकाली, पार्वती या विष्णुवल्लभा भी कहा गया है) की महिमा का वर्णन किया गया है।
आद्या देवी को समस्त सृष्टि की जननी, जगदम्बा और परम ब्रह्म की स्वरूपिणी कहा गया है। इस स्तोत्र के पाठ से साधक को सभी प्रकार की भय, रोग, मृत्यु और बंधनों से मुक्ति मिलती है।
आद्यास्तोत्रम् (Adya Stotram)
ॐ नमः आद्यायै ।
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि आद्या स्तोत्रं महाफलम् ।
यः पठेत् सततं भक्त्या स स्व विष्णुवल्लभः ॥१॥
मृत्युर्व्याधिभयं तस्य नास्ति किञ्चित कलौ युगे ।
अपुत्रा लभते पुत्रं त्रिपक्षं श्रवणं यदि ॥२॥
द्वौ मासौ बन्धनान्मुक्ति विप्रवक्तात् श्रुतं यदि ।
मृतवत्सा जीववत्सा षण्मासं श्रवणं यदि ॥३॥
नौकायां सङ्कटे युद्धे पठनाज्जयमाप्नुयात् ।
लिखित्वा स्थापयेद्गेहे नाग्निचौरभयं क्कचित् ॥४॥
राजस्थाने जयी नित्यं प्रसन्नाः सर्वदेवता ।
ॐ ह्रीं ब्रह्माणी ब्रह्मलोके च वैकुण्ठे सर्वमङ्गला ॥५॥
इन्द्राणी अमरावत्यामंबिका वरुणालये ।
यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा ॥६॥
महानन्दाग्निकोने च वायव्यां मृगवाहिनी ।
नैऋत्यां रक्तदन्ता च ऐशाण्यां शूलधारिणी ॥७॥
पाताले वैष्णवीरूपा सिंहले देवमोहिनी ।
सुरसा च मणीद्विपे लङ्कायां भद्रकालिका ॥८॥
रामेश्वरी सेतुबन्धे विमला पुरुषोत्तमे ।
विरजा औड्रदेशे च कामाक्ष्या नीलपर्वते ॥९॥
कालिका वङ्गदेशे च अयोध्यायां महेश्वरी ।
वाराणस्यामन्नपूर्णा गयाक्षेत्रे गयेश्वरी ॥१०॥
कुरुक्षेत्रे भद्रकाली व्रजे कात्यायनी परा ।
द्वारकायां महामाया मथुरायां माहेश्वरी ॥११॥
क्षुधा त्वं सर्वभूतानां वेला त्वं सागरस्य च ।
नवमी शुक्लपक्षस्य कृष्णस्यैकादशी परा ॥१२॥
दक्षसा दुहिता देवी दक्षयज्ञ विनाशिनी ।
रामस्य जानकी त्वं हि रावणध्वंसकारिणी ॥१३॥
चण्डमुण्डवधे देवी रक्तबीजविनाशिनी ।
निशुम्भशुम्भमथिनी मधुकैटभघातिनी ॥१४॥
विष्णुभक्तिप्रदा दुर्गा सुखदा मोक्षदा सदा ।
आद्यास्तवमिमं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ॥१५॥
सर्वज्वरभयं न स्यात् सर्वव्याधिविनाशनम् ।
कोटितीर्थफलं तस्य लभते नात्र संशय ॥१६॥
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।
नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्गे सिंहवाहिनी ॥१७॥
शिवदूती उग्रचण्डा प्रत्यङ्गे परमेश्वरी ।
विशालाक्षी महामाया कौमारी सङ्खिनी शिवा ॥१८॥
चक्रिणी जयधात्री च रणमत्ता रणप्रिया ।
दुर्गा जयन्ती काली च भद्रकाली महोदरी ॥१९॥
नारसिंही च वाराही सिद्धिदात्री सुखप्रदा ।
भयङ्करी महारौद्री महाभयविनाशिनी ॥२०॥
इति ब्रह्मयामले ब्रह्मानारदसंवादे आद्या स्तोत्रं समाप्तम् ॥
स्तोत्र का महत्त्व (Mahatva)
आद्या स्तोत्र का पाठ कलियुग में विशेष रूप से फलदायी माना गया है। यह व्यक्ति को अदृश्य दैवी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है और देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
लाभ (Benefits)
- सर्वरोग नाशक – इस स्तोत्र के पाठ से मृत्यु, रोग, ज्वर, एवं व्याधियों का नाश होता है।
- संतान प्राप्ति – जो निःसंतान हैं, वे श्रद्धा से इसका पाठ करें, उन्हें पुत्रप्राप्ति होती है।
- बंधनमुक्ति – दो माह तक सुनने या पढ़ने से बंधन से मुक्ति प्राप्त होती है।
- युद्ध या संकट में विजय – युद्ध, जलयान, या जीवन के किसी भी संकट में पाठ करने से विजय होती है।
- घर की रक्षा – घर में लिखकर रखने से अग्नि, चोरी या आपदा का भय नहीं रहता।
- राज्य व पद की प्राप्ति – शासन, कार्यक्षेत्र या प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति – देवी की कृपा से भक्ति, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पाठ विधि (Vidhi)
- तैयारी:
- प्रातःकाल स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें।
- देवी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
- आवाहन:
- “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र से देवी का ध्यान करें।
- तत्पश्चात “ॐ नमः आद्यायै” बोलकर स्तोत्र का आरंभ करें।
- पाठ समय:
- प्रतिदिन या नवमी, एकादशी, या शुक्रवार को पाठ शुभ होता है।
- पाठ शुद्ध मन, भक्ति और विश्वास से करें।
- समापन:
- अंत में देवी को पुष्प अर्पण करें।
- “जय आद्या जगदम्बिके नमः” कहकर प्रणाम करें।
विशेष अनुशंसा (Special Note)
- यदि स्तोत्र का श्रवण मात्र भी श्रद्धापूर्वक किया जाए, तो भी पुण्य मिलता है।
- इसे लिखकर घर में दक्षिण दिशा में रखने से रक्षणशक्ति बढ़ती है।
- यह स्तोत्र देवी के सर्वरूपों का आवाहन करता है — ब्रह्माणी, इन्द्राणी, वैष्णवी, काली, दुर्गा, महालक्ष्मी, आदि सभी शक्तियाँ एक साथ इसमें समाहित हैं।



















































