श्री नवग्रह मंडलवासिनि लक्ष्मी स्तवन नवग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु) में स्थित विभिन्न प्रकार की लक्ष्मी-देवियों की स्तुति है। प्रत्येक ग्रह की लक्ष्मी का स्वरूप, रंग, शक्ति और गुण अलग-अलग होते हैं। यह स्तवन उन सभी लक्ष्मियों का पूजन और ध्यान कर हमारी जीवन में संपत्ति, बुद्धि, सौभाग्य, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
नवग्रह लक्ष्मी स्तवन में सूर्य-लक्ष्मी, चंद्र-लक्ष्मी, मंगल-लक्ष्मी, बुध-लक्ष्मी, गुरु-लक्ष्मी, शुक्र-लक्ष्मी, शनि-लक्ष्मी, राहु-लक्ष्मी और केतु-लक्ष्मी का वर्णन है। प्रत्येक ग्रह लक्ष्मी विशेष गुण, सौभाग्य और संकट निवारण देने वाली मानी जाती हैं।
सूर्य-लक्ष्मी स्तुति (Surya-Lakshmi Stuti)
आदित्यगर्भसंस्थानां तेजोमण्डलमध्यगाम्।
स्वर्णवर्णां च दैवीं तां सूर्यलक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥१॥
भाव:
जो सूर्य के तेजस्वी मंडल में स्थित हैं, स्वर्णवत् दीप्तिमान हैं — वे सूर्यलक्ष्मी, हमें प्रकाश और पथ प्रदान करें।
स्वर्णलक्ष्मीः सदा देव्याः तेजोलक्ष्मीः समुन्नता।
यशोलक्ष्मीः किर्तीशक्तिः आत्मलक्ष्मीः प्रतिष्ठिता॥२॥
भाव:
स्वर्णलक्ष्मी – तेजस्विता और उज्ज्वल भाग्य की देवी
तेजोलक्ष्मी – जीवनी शक्ति की आदिशक्ति
यशोलक्ष्मी – यश व सम्मान की प्रदात्री
आत्मलक्ष्मी – आत्मबल, आत्मगौरव की जननी
स्निग्धांशुं विमलं तेजः रोगहर्त्रीं शुभप्रदाम्।
दिव्यनेत्रप्रभां देवीं आदित्यलक्ष्मीमाश्रये॥३॥
भाव:
जो रोगों को हरनेवाली, दृष्टि व दीप्ति देनेवाली हैं — वे दिव्य आदित्यलक्ष्मी हमें समग्र आरोग्य व जागृति दें।
नमस्ते सूर्यसङ्गम्ये स्वर्णवर्णे महाशुभे।
दीप्तये मे प्रदेहि त्वं जीवने वै दिशां प्रभाम्॥४॥
भाव:
हे सूर्यसंगमिनी स्वर्णवर्णा देवी! हमें जीवन में दिशा व दीप्ति दो, तेजस्विता से युक्त करो।
स्वर्णलक्ष्मी नमस्तुभ्यं तेजोमयी नमो नमः॥
चंद्र-लक्ष्मी स्तुति (Chandra-Lakshmi Stuti)
शशिधवलवपुर्बाला सौम्यचेतससंगिता।
श्वेतलक्ष्मी मनश्शुद्ध्यै चन्द्रगर्भे विराजते॥१॥
भाव:
जो चंद्रमा के भीतर सौम्य शीतल रूप में स्थित हैं, मन की शुद्धि और शांति देनेवाली श्वेतलक्ष्मी — हृदय को निर्मल करें।
रजतलक्ष्मीर्मनोमोहा कलालक्ष्मीः सुखप्रदा।
शान्तिलक्ष्मीर्मृदुला देवी सौन्दर्यविभवेश्वरी॥२॥
भाव:
रजतलक्ष्मी – चंद्र की रजतमयी भावनाओं की अधिष्ठात्री
कलालक्ष्मी – संगीत, नृत्य, काव्य आदि कलाओं की प्रदायिनी
शान्तिलक्ष्मी – चित्त को शीतल करनेवाली
सौन्दर्यलक्ष्मी – रूप, माधुर्य और सौंदर्य की जननी
मृगनयना शुभा स्नेहा मातृस्वरूपधारिणी।
चन्द्रलक्ष्मीः करोतु मे मनसः स्थैर्यमङ्गलम्॥३॥
भाव:
जो मृदु स्वभाव, प्रेममयी, मातृ-भाव से पूर्ण हैं, वे चन्द्रलक्ष्मी मेरे मन को स्थिरता, कोमलता व शुभता प्रदान करें।
चन्द्रदीप्तिसमायुक्ते सौम्यतेजोविकासिनि।
त्वं मे प्रदेहि सौभाग्यं शीतलां शुभवृत्तिताम्॥४॥
भाव:
हे चंद्रतेजयुक्ति सौम्य लक्ष्मी! मुझे मानसिक सौंदर्य, सौभाग्य और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करें।
रजतवर्णालक्ष्मी नमस्तुभ्यं सौम्यतेजो नमोऽस्तु ते॥५॥
मंगल-लक्ष्मी स्तुति (Mangal-Lakshmi Stuti)
अङ्गारकाग्निसदृशां दीप्तिमन्तीं पराक्रमीम्।
रक्तवर्णां शुचिं देवीं लोहितलक्ष्मीं नमाम्यहम्॥१॥
भाव:
जो अङ्गारक (मंगल) की भांति दीप्तिमान हैं, लाल वर्ण की, शुद्ध तेजस्विनी हैं — वे लोहितलक्ष्मी मेरी ऊर्जा को प्रज्वलित करें।
शौर्यलक्ष्मीः पराक्रान्ता क्रियालक्ष्मीः द्रुतप्रदा।
विजयलक्ष्मीः रणे देवी रक्तलक्ष्मीः स्थिता शुभा॥२॥
भाव:
शौर्यलक्ष्मी – साहस की अधिष्ठात्री
क्रियालक्ष्मी – कर्म, पहल और तत्परता देनेवाली
विजयलक्ष्मी – सफलता व विजयी भावना की देवी
रक्तलक्ष्मी – रक्तिम शक्ति, जीवनशक्ति की धारिणी
धैर्यबलप्रदा देवी रक्षा तेजोविभाविनी।
मङ्गललक्ष्मी मां पातु संकषे शत्रुनाशिनी॥३॥
भाव:
जो रक्षा करती हैं, बल व तेज प्रदान करती हैं, वे मंगललक्ष्मी संकटों में मेरी रक्षा करें, शत्रुओं को विनष्ट करें।
रक्तमाल्याम्बरधरा रक्तपुष्पार्चिता सदा।
लोहिता देवि मां पातु क्रोधेऽपि कृपया सदा॥४॥
भाव:
जो लाल पुष्पों से अर्चित, रक्तवस्त्रधारिणी हैं, वो देवी क्रोध के समय भी करुणा से रक्षा करें।
लोहितलक्ष्मी नमस्तुभ्यं पराक्रम्यै नमो नमः॥५॥
बुध-लक्ष्मी स्तुति (Budh-Lakshmi Stuti)
सौम्यरूपां सदा शान्तां हरितवर्णां मनस्विनीम्।
बुद्ध्यै वाच्यै सदा पूज्यां हरितलक्ष्मीं नमाम्यहम्॥१॥
भाव:
जो सौम्य, शांत स्वभाव की, हरितवर्णा और बुद्धि-वाणी की देवी हैं, उन हरितलक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।
बुद्धिलक्ष्मीः स्मृतिदात्री वाक्प्रसादविनोदिनी।
विवेकलक्ष्मीः शुद्धात्मा ज्ञानलक्ष्मीः प्रकाशिता॥२॥
भाव:
बुद्धिलक्ष्मी – सूक्ष्म ज्ञान, युक्ति और तार्किकता की देवी
वाक्-लक्ष्मी – मधुर एवं प्रभावशाली वाणी की जननी
विवेकलक्ष्मी – सही निर्णय की शक्ति प्रदान करनेवाली
ज्ञानलक्ष्मी – आत्मप्रकाश और सच्चा बोध देनेवाली
व्यवहारे सफलां देवीं सौम्यभावसमन्विताम्।
बुधलक्ष्मीं नमस्यामि त्वां प्रकाशय मे मतिम्॥३॥
भाव:
हे सौम्य स्वभाव की बुधलक्ष्मी, जो व्यवहार, संवाद और बुद्धिमत्ता की पूंजी हैं — आप मेरी बुद्धि प्रकाशित करें।
हरिताम्बरधारिणीं हरिद्राच्छायसम्युताम्।
वाक्ये च व्यापारयुते लक्ष्मीं मां पालयातु सा॥४॥
भाव:
जो हरे वस्त्र धारण करती हैं, व्यापार और वाणी में सिद्धि देनेवाली हैं — वो देवी मेरी रक्षा करें।
हरितलक्ष्मी नमस्तुभ्यं बुधशक्त्यै नमो नमः॥५॥
गुरु-लक्ष्मी स्तुति (Guru-Lakshmi Stuti)
बृहस्पतेर्जगद्गुरोर्ब्रह्मविद्याप्रकाशिनीम्।
पीतलक्ष्मीं सदा वन्दे धर्मसारस्वतीं शुभाम्॥१॥
भाव:
जो बृहस्पति की तरह ज्ञानमयी, ब्रह्मविद्या की प्रकाशिका हैं, धर्ममयी सौम्यता की अधिष्ठात्री पीतलक्ष्मी हैं — उन्हें नमन।
धर्मलक्ष्मीः श्रद्धायुक्ता गुरुतेजःप्रकाशिनी।
सद्गतिदा सुधावाणी सत्त्वलक्ष्मीर्नमोऽस्तु ते॥२॥
भाव:
धर्मलक्ष्मी – नीति व शुद्ध जीवन की देवी
श्रद्धालक्ष्मी – आस्था व विश्वास की प्रदायिनी
सत्त्वलक्ष्मी – सत्वगुण व निर्मलता देनेवाली
सुधालक्ष्मी – अमृत वाणी की शक्ति
बृहतीं ज्ञानदात्रीं च वाग्देवीं च शुभप्रदाम्।
गुरुलक्ष्मीं प्रसीद त्वं विद्यां मे देहि शाश्वतीम्॥३॥
भाव:
हे ज्ञान और वाणी की स्वरूपा गुरुलक्ष्मी, मेरे जीवन में शाश्वत विद्या और ब्रह्मबोध दें।
पीतमाल्यविभूषां तां सुवर्णाम्बरधारिणीम्।
बृहस्पतिनिवासां तां नमामि शुभकामिनीम्॥४॥
भाव:
जो पीले वस्त्र, सुवर्ण आभूषणों से शोभिता हैं, बृहस्पति ग्रह की अधिष्ठात्री हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
पीतलक्ष्मी नमस्तुभ्यं गुरुभावाय ते नमः॥५॥
शुक्र-लक्ष्मी स्तुति (Shukra-Lakshmi Stuti)
शुभ्रगौरां सदा शांतां रतिमङ्गलदायिनीम्।
शुक्रलक्ष्मीं नमस्यामि प्रेममाधुर्यरूपिणीम्॥१॥
भाव:
जो शुभ्र और गौर वर्ण की हैं, रति और सौम्य प्रेम की दात्री हैं, उन शुक्रलक्ष्मी को मैं नमन करता हूँ।
कामलक्ष्मीः करालिङ्ग्या सौंदर्यलक्ष्मीः मनोहरा।
रतिलक्ष्मीः सुखप्रदा प्रेमलक्ष्मीः सदा शुभा॥२॥
भाव:
कामलक्ष्मी – गहन कामभावना व सौंदर्य आकर्षण देनेवाली
सौंदर्यलक्ष्मी – शरीर, मन व आत्मा की शोभा बढ़ानेवाली
रतिलक्ष्मी – मधुर रति-सुख की अधिष्ठात्री
प्रेमलक्ष्मी – आत्मीय भाव और बंधन देनेवाली
प्रीतिलक्ष्मीः सहर्षं च दम्पत्यैक्यप्रदायिनी।
भोगवरदा शुभां देवीं सौख्यसंपत्करीं भजे॥३॥
भाव:
प्रीतिलक्ष्मी – वैवाहिक जीवन में स्नेह और समझ लानेवाली
भोगवरदा लक्ष्मी – भोगविलास और इन्द्रियसुख की पूर्णता देनेवाली
मैं उन सौख्यदायिनी लक्ष्मी का स्तवन करता हूँ।
कौमुदीप्रभया युक्तां शशिशुभ्रविलोचनाम्।
कान्तिदां कल्यदां देवीं शुक्रलक्ष्मीं नमोऽस्तु मे॥४॥
भाव:
जो चन्द्रिकासम तेजस्विनी, शुभ्र नेत्रों वाली, कान्ति और कल्याण देनेवाली देवी हैं — उन शुक्रलक्ष्मी को मेरा प्रणाम।
कामलक्ष्मी नमस्तुभ्यं शुक्रमंडलवासिनि।
प्रेमप्रीतिस्वरूपायै नमो लक्ष्म्यै मनोहरि॥५॥
शनि-लक्ष्मी स्तुति (Shani-Lakshmi praise)
नीलांजनाभां स्थिरां सुमेधां
शन्यधिदेवीं धृतिशालिनीम्।
नीहारकान्तिं वरदां प्रसन्नां
शनि लक्ष्मिं मनोहराम्॥१॥
भाव:
जो नीलांजन के समान गहरे नीलवर्ण की हैं, स्थिर बुद्धियुक्त, धैर्यशालिनी और कृपादृष्टि वाली — उन शनि लक्ष्मी को मैं नमन करता हूँ।
धैर्यलक्ष्मीः स्थैर्यलक्ष्मीः तपोलक्ष्मीः कृतात्मिका।
वैराग्यप्रदया नित्यं संसारदाहशान्तिकृ॥२॥
भाव:
धैर्यलक्ष्मी – कठिन समय में धैर्य देती हैं
स्थैर्यलक्ष्मी – जीवन में अडिगता
तपोलक्ष्मी – आत्मसंयम और साधना की प्रेरणा
वैराग्यलक्ष्मी – मोह और माया से विमुक्त करती हैं
न्यायलक्ष्मीः सत्कर्मदात्री धर्मसंरक्षणप्रिया।
कर्मलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु शुभदृष्टिं प्रदेहि मे॥३॥
भाव:
न्यायलक्ष्मी – न्याय और सत्य की अधिष्ठात्री
कर्मलक्ष्मी – सत्कर्मों के अनुरूप फल देनेवाली
कालसंहर्त्री करालवक्त्रा मौनप्रिया मन्दगतिः सदा।
शान्तस्वभावा विमलप्रभा च नीलांजना शनिलक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥४॥
भाव:
जो कालसंहर्त्री, मौनप्रिय, मन्दगतिवाली और शांत स्वभाव की हैं — उन शनिलक्ष्मी को नमस्कार।
शनि लक्ष्मी नमस्तुभ्यं शनि सौम्यभावप्रदायिनी।
सर्वदुःखनिवारिण्यै नमो धर्मपथेश्वरी॥५॥
राहु-लक्ष्मी स्तुति (Rahu-Lakshmi Stuti)
धूम्रवर्णां रहस्यानां तामसीं चिरसंस्थिताम्।
राहोः सन्निहितां देवीं धूम्रलक्ष्मीं नमाम्यहम्॥१॥
भाव:
जो धूम्रवर्णयुक्त, रहस्यमयी और राहु में स्थित हैं — उन धूम्रलक्ष्मी को नमस्कार।
मायालक्ष्मीः छायालक्ष्मीः विघ्नसंधारणेश्वरी।
राहुदोषहरां देवीं सदा भक्त्या नमाम्यहम्॥२॥
भाव:
जो माया और छाया की अधिष्ठात्री हैं, विघ्नों को रोकती हैं और राहु दोष को दूर करती हैं — उन देवी को नमन।
रक्षकां संकटहरां योगदात्रीं महाबलाम्।
आकस्मिकसंपदां दात्रीं लक्ष्मीं दिव्यामनूपमाम्॥३॥
भाव:
जो आकस्मिक संकटों से रक्षा करती हैं और दिव्य सौभाग्य प्रदान करती हैं — उन राहु लक्ष्मी को नमस्कार।
नमस्ते धूम्ररूपिण्यै मायाच्छन्ने शुभे शुभे।
त्वमेव राहुदोषघ्नी सत्यलक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥४॥
भाव:
हे धूम्ररूपिणी, जो माया से आवृत हैं, राहुदोष से मुक्ति देनेवाली — आपको नमस्कार।
धूम्रलक्ष्मि नमस्तुभ्यं मन्दस्मेराननप्रिये।
राहुस्थिता रहस्यात्मे त्वं मम रक्षां कुरुष्व नः॥५॥
केतु-लक्ष्मी स्तुति (Ketu-Lakshmi Stuti)
उज्ज्वलवर्णां विमलां स्वप्रकाशां
केतौ प्रतिष्ठां तपसः स्वरूपाम्।
मुक्तिप्रदां मोहमाया-विनाशां
वन्दे सदा उज्ज्वलालक्ष्मिरूपाम्॥१॥
अर्थ:
उज्ज्वलवर्णा, स्वप्रकाशमयी, निर्मल, केतु में प्रतिष्ठित, तपस्वरूपा और मोक्षप्रद लक्ष्मी को वंदन।
तपोलक्ष्मीरधिका ध्यानमग्ना
योगप्रदा ब्रह्मविद्या निधानम्।
वैराग्यगम्या विमलान्तचिन्ता
केतुस्थितां शुद्धलक्ष्मीं नमामि॥२॥
अर्थ:
जो ध्यानमग्न, योगप्रदा, ब्रह्मविद्या की निधि हैं, वैराग्य से प्राप्त होती हैं — उन शुद्ध लक्ष्मी को नमस्कार।
निर्मलप्रज्ञा नित्यता च सौम्या
ज्ञानप्रदा निर्विकल्पस्वभावा।
चिन्मात्रवृत्तिर्मुनिहृत्तमस्था
मुक्त्यै सदा केतुलक्ष्मी स्मरन्ते॥३॥
अर्थ:
जो निर्मल प्रज्ञा और चैतन्यस्वरूपा हैं — मोक्ष के लिए मुनि जिनका ध्यान करते हैं, उन केतु लक्ष्मी को प्रणाम।
ब्रह्मस्वरूपा च सदैव शान्ता
मायातिगा मोक्षदायिन्यनन्या।
ध्यानस्थितां तां परमार्थलक्ष्मीं
केतौ समासीनमभीष्टयेऽहम्॥४॥
अर्थ:
जो ब्रह्मस्वरूपा, शांत, मायातीत और मोक्षदायिनी हैं — उन परमार्थलक्ष्मी को प्रणाम।
नमोऽस्तु केतुस्थित-शुद्धलक्ष्म्यै
नमोऽस्तु उज्ज्वलवर्णायै नमः।
नमो मुमुक्षूणां प्रियंकारिणी
नमो नमस्ते विमलप्रदायै॥५॥
अर्थ:
केतुस्थित शुद्ध लक्ष्मी को, उज्ज्वलवर्णा, मुमुक्षुओं की प्रिय और निर्मलता प्रदान करनेवाली देवी को नमस्कार।
महत्त्व (Importance)
- सौभाग्य और समृद्धि – नवग्रह लक्ष्मी स्तवन का पाठ करने से जीवन में धन, वैभव और सफलता आती है।
- सर्वसंकट निवारण – प्रत्येक ग्रह की लक्ष्मी संकट, रोग, वैराग्य, मानसिक अशांति और जीवन के बाधाओं को दूर करती हैं।
- बुद्धि और विवेक की वृद्धि – बुध और गुरु लक्ष्मी के जाप से ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि में सुधार होता है।
- सौंदर्य और प्रेम – शुक्र लक्ष्मी से वैवाहिक और प्रेम संबंधों में सौहार्द, प्रेम और सुख प्राप्त होता है।
- धैर्य और स्थिरता – शनि और मंगल लक्ष्मी से जीवन में धैर्य, साहस और कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
- मोक्ष की प्राप्ति – केतु लक्ष्मी ध्यान और स्तवन से वैराग्य, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लाभ (Benefits)
- आर्थिक समृद्धि और वैभव – प्रत्येक ग्रह लक्ष्मी धन और समृद्धि प्रदान करती हैं।
- रोगों से मुक्ति – सूर्य और चंद्र लक्ष्मी आरोग्य और दीप्ति प्रदान करती हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा – घर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- संकटों का नाश – मंगल, शनि और राहु लक्ष्मी विपत्ति और शत्रु से रक्षा करती हैं।
- संपूर्ण मानसिक शांति – चंद्र और बुध लक्ष्मी से मन और बुद्धि शांत एवं स्थिर रहती है।
- धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ – गुरु और केतु लक्ष्मी ध्यान से ज्ञान, मोक्ष और धर्म मार्ग में सहायता मिलती है।
विधि (Method of Worship / Vidhi)
- स्थान – घर में पूजा स्थान साफ, स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
- सामग्री –
- लाल, पीला, हरा, सफ़ेद और धूम्रवर्ण का कपड़ा (ग्रह लक्ष्मी के रंग अनुसार)
- फूल (सूर्य – लाल/स्वर्ण, चंद्र – सफ़ेद, मंगल – लाल, बुध – हरा, गुरु – पीला, शुक्र – सफ़ेद/गुलाबी, शनि – नीला, राहु – धूसर, केतु – उज्ज्वल)
- दीपक, धूप, नैवेद्य (फल, मिठाई)
- समय – नवग्रह लक्ष्मी स्तवन स्नान एवं शुद्ध मन से प्रातःकाल करें।
- उच्चारण – प्रत्येक ग्रह लक्ष्मी स्तुति का सुमंगल, स्पष्ट और सही उच्चारण से पाठ करें।
- ध्यान और भक्ति – स्तवन के दौरान लक्ष्मी की कल्पना करें, उनकी दिव्यता और गुणों को महसूस करें।
- नियत फल – ध्यान और मंत्र के बाद प्रार्थना करें कि प्रत्येक ग्रह लक्ष्मी हमारे जीवन में संपत्ति, स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख और मोक्ष दें।
- वार्षिक या मासिक पूजन – विशेष रूप से नवग्रहों के दिन या ग्रह दोष निवारण के लिए नियमित रूप से पढ़ना लाभदायक होता है।
























































