“जिव्हा स्तोत्र” एक अत्यंत पवित्र और शिक्षाप्रद स्तोत्र है,
जो हमारी वाणी (जिह्वा) की शुद्धता और सदुपयोग का संदेश देता है।
जैसे मन के विचार हमारे कर्मों का आधार बनते हैं,
वैसे ही जिह्वा से निकले शब्द हमारे जीवन का स्वरूप तय करते हैं।
जिव्हा स्तोत्र (Jivha Stotra) – जिव्हा प्रार्थना (Jivha Prathna)
मत्प्रिय सखी मत्जिव्हे मयप्नुकंपां कुरुष्व नौमि त्वाम|
अन्यापवादरहिता भज सततमों नमः शिवायेति||१||
वाणी गुणानुनिलये त्वां वंदे मा कुरुष्व परनिंदाम|
त्यज सकललोकवार्ता भज सततमों नमः शिवायेति||२||
कट्वम्ललवाणतिक्तस्वादुकषायादिसर्वरसवांछाम|
जिव्हे विहाय भक्त्या भज सततमों नमः शिवायेति||३||
रसने रचितोयमंजलिस्ते परनिंदापरुषैलरं वचोभि: ||
दुरितापहं नमः शिवायेत्यमुमादिप्रवणं भजस्व मंत्रम||४||
इति श्रीमत आद्यशंकराचार्य विरचितं जिव्हा प्रार्थना संपूर्ण
जिव्हा स्तोत्र – भावार्थ (हिन्दी रूप)
हे जिह्वा! तुम मेरी सच्ची और अत्यंत प्रिय सखी हो।
मैं तुम्हें हृदय से नमस्कार करता हूँ।
मुझ पर कृपा करो और मेरी एक प्रार्थना सुनो —
कभी भी किसी की निंदा, चुगली या कटु वचन मत बोलो।
तुम्हारे हर शब्द में प्रेम और सद्भावना झलके।
तुम सदा “ॐ नमः शिवाय” इस पवित्र मंत्र का जप करती रहो,
जो मन को शांति और आत्मा को प्रकाश प्रदान करता है। (१)
हे जिह्वा! वाणी का तेज, मधुरता, सत्य और प्रसाद — ये सभी गुण तुममें निहित हैं।
तुम ईश्वर का वरदान हो, इसलिए मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।
कभी किसी की निंदा मत करो,
दूसरों के दोषों या व्यवहारों में मत उलझो।
तुम्हारे शब्दों से केवल प्रेम, सत्य और सदाचार प्रवाहित हो।
सदा “ॐ नमः शिवाय” इस मंत्र का जप करते हुए
अपनी वाणी को दिव्य बनाओ। (२)
हे जिह्वा! तीखा, मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, कसैला —
इन सब स्वादों की मोहिनी छोड़ दो।
सच्चा आनंद भक्तिभाव और ईश्वर के नाम में ही है।
इसलिए तुम प्रेम और श्रद्धा के साथ
सदैव “ॐ नमः शिवाय” इस मंत्र का जप करती रहो।
इससे तुम्हें शांति, संतोष और परम सुख प्राप्त होगा। (३)
हे जिह्वा! मैं तुम्हें folded hands से नमस्कार करता हूँ।
मेरी यह विनम्र प्रार्थना सुनो —
कभी भी किसी के विरुद्ध कठोर या अपमानजनक शब्द मत बोलो।
प्रणवपूर्वक “ॐ नमः शिवाय” इस पवित्र मंत्र का जप करो,
जो सभी पापों का नाश करने वाला और आत्मा को पवित्र करने वाला है।
तुम्हारे मुख से केवल भक्ति, प्रेम और सत्य की सुगंध फैले। (४)
भावसार:
यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि जिह्वा अर्थात वाणी स्वयं एक देवी के समान है।
यदि इसका उपयोग भक्ति, प्रेम और सत्य के लिए किया जाए,
तो यह मुक्ति का द्वार खोल देती है;
परंतु यदि इसका दुरुपयोग हो,
तो यह पाप का कारण बन जाती है।
इसलिए प्रत्येक शब्द ईश्वरमय, सत्यपूर्ण और प्रेमपूर्ण होना चाहिए —
यही जिव्हा स्तोत्र की सच्ची साधना है।






















































