संतिकरं स्तोत्र जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना पूज्य मुनिसुंदर सूरीजी ने की थी। यह स्तोत्र मन को गहन शांति प्रदान करने वाला, और जीवन से समस्त कष्ट, दुख तथा नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने वाला माना जाता है।
इस स्तोत्र में अनेक बीज मंत्रों और देवी-देवताओं के आह्वान का सुंदर संयोजन है, जो साधक के मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक संतुलन को स्थापित करता है। इसका नियमित पाठ मन को स्थिर, शांत और प्रसन्न बनाता है।
संतिकरं स्तोत्र (Santikaram Stotra)
संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जय-सिरीइ दायारं।
समरामि भत्तपालग-निव्वाणी-गरुड-कयसेवं….1.
ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संति-सामि-पायाणं।
झ्रौ स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिव-दुरिअ-हरणाणं….2.
ॐ संति-नमुक्कारो, खेलोसहि-माइ-लद्धि-पत्ताणं।
सौँ ह्रीँ नमो सव्वो-सहि-पत्ताणं च देइ सिरिं….3.
वाणी तिहुअण-सामिणी, सिरिदेवी जक्खराय गणिपिडगा।
गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिण-भत्ते….4.
रक्खंतु मम रोहिणी, पन्नत्ती वज्ज-सिंखला य सया।
वज्जंकुसी चक्केसरी,नरदत्ता काली महाकाली. .5.
गोरी तह गंधारी, महजाला-माणवी अ वइरुट्टा।
अच्छुत्ता माणसिआ, महा-माणसिआ उ देवीओ 6.
जक्खा गोमुह-महजक्ख, तिमुह-जक्खेस तुंबरू कुसुमो।
मायंग-विजय-अजिया, बंभो मणुओ सुरकुमारो 7.
छम्मुह पयाल किन्नर, गरुलो गंधव्व तह य जक्खिंदो।
कूबर वरुणो भिउडी, गोमेहो पास-मायंगा। 8.
देवीओ चक्केसरी, अजिआ दुरिआरि काली महाकाली।
अच्चुअ संता जाला, सुतारया-सोअ सिरिवच्छा 9.
चंडा विजयंकुसी पन्नइत्ति निव्वाणी अच्चुआ धरणी।
वइरुट्ट-च्छुत्त-गंधारी, अंब पउमावई सिद्धा 10.
इअ तित्थ-रक्खण-रया, अन्नेवि सुरासुरी य चउहा वि।
वंतर-जोइणी-पमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं..11.
एवं सुदिट्ठि-सुरगण-सहिओ संघस्स संति जिणचंदो।
मज्झ वि करेउ रक्खं, मुणिसुंदर-सूरि-थुअ-महिमा 12.
इअ संतिनाह-सम्म-दिट्ठि-रक्खं सरइ तिकालं जो।
सव्वोवद्दव-रहिओ, स लहइ सुह संपयं परमं 13.
तवगच्छ गयण-दिणयर-जुगवर-सिरि-सोमसुंदर-गुरूणं।
सुपसाय-लद्ध-गणहर-विज्जा-सिद्धी भणइ सीसो। 14.
संतिकरं स्तोत्र के लाभ (Benefits)
- मानसिक शांति और स्थिरता:
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से मन की चंचलता समाप्त होती है और भीतर गहरी शांति का अनुभव होता है। - रोग-शोक से मुक्ति:
यह “संतिकर” (शांति देने वाला) स्तोत्र नकारात्मक शक्तियों, भय, रोग, और अशांति से रक्षा करता है। - सुरक्षा और रक्षण कवच:
इसमें अनेक देवी-देवताओं, यक्षिणियों और रक्षकों का आवाहन किया गया है जो साधक के चारों ओर दिव्य सुरक्षा कवच रचते हैं। - कर्म-शुद्धि और आंतरिक शक्ति:
पाठ से पाप कर्मों का क्षय होता है और आत्मिक बल बढ़ता है। - शुभ फल और समृद्धि:
घर, परिवार या समाज में शांति, सौहार्द और शुभता का वास होता है। - मोक्षमार्ग की प्राप्ति:
यह स्तोत्र साधक को धर्ममार्ग पर स्थिर रखकर अन्ततः मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है।
पाठ-विधि (Vidhi / Method of Recitation)
- शुद्धता:
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शांत और पवित्र स्थान चुनें। - दीपक व आसन:
सामने दीपक या ज्योति जलाकर भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा या चित्र रखें। - संकल्प:
मन में संकल्प करें — “मैं शांति, सुरक्षा और सद्भाव के लिए संतिकरं स्तोत्र का पाठ कर रहा/रही हूँ।” - पाठ समय:
- सर्वोत्तम समय — प्रातःकाल या संध्या समय।
- विशेष रूप से अशांति, रोग, भय या ग्रहबाधा के समय इसका पाठ शुभ होता है।
- पाठ विधि:
- पहले “णमो अरिहंताणं” का जाप करें।
- तत्पश्चात पूरे स्तोत्र का शुद्ध उच्चारण से पाठ करें।
- अंत में “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का संकल्प लें।
- संख्या:
- दैनिक 1 बार या विशेष अवसरों पर 3 या 9 बार पाठ करना उत्तम है।





















































