
‘सहस्त्रबाहु’ नाम से विख्यात राजा श्री कार्तवीर्य अर्जुन का नाम हिन्दू पुराणों में वीरता, अद्भुत शक्ति, अहंकार और अंततः धर्मपथ पर लौटने की कथा के रूप में मिलता है। वे नर्मदा नदी के किनारे स्थित महिष्मती नगरी के हैहय वंश के राजा थे।
राजकथा व महायुद्ध – कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु) और परशुराम
जन्म व वरदान
राजा कृतवीर्य के पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ। उनके पिता ने कठोर तपस्या कर भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया, जिन्होंने उन्हें वरदान दिया कि उनका पुत्र अतुलनीय पराक्रमी और अपराजेय होगा। इसी वरदान से अर्जुन को सहस्त्र अर्थात “हजार भुजाएँ” प्राप्त हुईं, जिसके कारण वे “सहस्त्रबाहु अर्जुन” कहलाए।
शासन और पराक्रम
कार्तवीर्य अर्जुन एक शक्तिशाली, धर्मप्रिय और न्यायप्रिय राजा थे। उनके शासनकाल में राज्य में सुख-शांति और समृद्धि थी। उन्होंने अनेक असुरों, नागों और शत्रु राजाओं को परास्त किया।
कथाओं के अनुसार, एक बार जब वे नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे, तब उनकी हजार भुजाओं से नदी का प्रवाह रुक गया। उसी समय रावण वहाँ से गुजर रहे थे और वे उनकी शक्ति देखकर चकित रह गए।
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पतन की शुरुआत — अहंकार और अन्याय
धीरे-धीरे शक्ति का अहंकार उनके भीतर बढ़ने लगा। एक समय वे ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुँचे, जहाँ उन्होंने कामधेनु गाय को देखा। उस गाय की सहायता से आश्रम में यज्ञ-भोजन और अतिथियों की सेवा होती थी। राजा ने जब उस गाय को माँगा और ऋषि ने देने से मना किया, तो उन्होंने बलपूर्वक उसे ले लिया। यही उनके पतन की शुरुआत थी।
परशुराम और सहस्त्रबाहु का महायुद्ध
ऋषि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम ने जब यह अन्याय देखा, तो उन्होंने अपने परशु (कुल्हाड़ी) से युद्ध का संकल्प लिया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हजारों भुजाएँ काट दीं और अंततः उनका वध किया। यह युद्ध केवल शक्ति का नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई थी।
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भगवान सहस्त्रबाहु जयंती की तिथि
भगवान सहस्त्रबाहु की जयंती कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी या एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन विभिन्न समाजों में विशेष पूजा-अर्चना, कथा-श्रवण और दान-पुण्य का आयोजन किया जाता है।
साल 2025 में सहस्त्रबाहु जयंती 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
जयंती का महत्व
- यह दिन शक्ति का सही उपयोग करने की प्रेरणा देता है।
- सहस्त्रबाहु भगवान की स्तुति-मंत्र और आरती का पाठ किया जाता है।
- हैहयवंशी और क्षत्रिय समाज में इस दिन विशेष आराधना की जाती है।
- इस अवसर पर लोग संकल्प लेते हैं कि शक्ति और बुद्धि का प्रयोग सदैव धर्म और न्याय के पक्ष में किया जाएगा।
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निष्कर्ष
सहस्त्रबाहु अर्जुन का जीवन एक अमूल्य संदेश देता है कि —
शक्ति तभी सार्थक है जब उसका प्रयोग धर्म और न्याय के मार्ग पर किया जाए।
उनकी जयंती हमें यह याद दिलाती है कि —
“धर्म की रक्षा ही सच्ची शक्ति है।”
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