
हिन्दू धर्म का दर्शन संसार के सबसे प्राचीन और गहन विचारों में से एक है। इसके अनुसार यह सृष्टि केवल शरीरों की नहीं, बल्कि आत्माओं की यात्रा है। आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है — वह केवल योनि परिवर्तन करती है, यानी बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरती है। कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्त करने से पहले आत्मा को 84 लाख योनियों से गुजरना पड़ता है।
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84 लाख योनियां क्या हैं (What are 84 lakh vaginas?)
विभिन्न पुराणों — जैसे पद्म पुराण, गरुड़ पुराण और शिव पुराण — में इन 84 लाख योनियों का वर्णन मिलता है। यद्यपि गिनती या विवरण थोड़ा अलग बताया गया है, पर सभी का सार एक ही है — आत्मा इन विविध रूपों में जन्म लेकर अपने कर्मों के अनुसार आगे बढ़ती या नीचे गिरती है।
योनियों के दो प्रमुख प्रकार (Two main types of vaginas)
आचार्यों ने योनियों को दो भागों में बाँटा है:
- योनिज (Yonij) – जो दो जीवों के संयोग से उत्पन्न होते हैं, जैसे मनुष्य, पशु आदि।
- आयोनिज (Ayonij) – जो अपने आप उत्पन्न होते हैं, जैसे अमीबा या कुछ सूक्ष्म जीव।
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प्राणियों का तीन वर्गों में विभाजन (Division of animals into three classes)
शास्त्रों के अनुसार सभी जीवों को उनके निवास और गति के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है:
- जलचर – जल में रहने वाले जीव-जंतु
- थलचर – पृथ्वी पर विचरण करने वाले जीव
- नभचर – आकाश में उड़ने वाले पक्षी और जीव
चार प्रमुख उत्पत्ति वर्ग (चार प्रकार की योनियाँ) (Four main classes of origin (four types of yonis))
प्राचीन ग्रंथों में 84 लाख योनियों को मुख्यतः चार प्रकार की उत्पत्ति में वर्गीकृत किया गया है:
- जरायुज (Jarayuj) – माता के गर्भ से उत्पन्न (जैसे मनुष्य, गाय, हाथी आदि)
- अंडज (Andaj) – अंडे से उत्पन्न (जैसे पक्षी, सर्प, मछली आदि)
- स्वेदज (Swedaj) – पसीने, मल-मूत्र आदि से उत्पन्न सूक्ष्म जीव
- उद्भिज (Udbhij) – भूमि से उत्पन्न (जैसे पेड़-पौधे, बेलें आदि)
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पद्मपुराण का उल्लेख (Mention of Padmapurana)
पद्मपुराण (78:5) में लिखा गया है:
“जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिंशल्लक्षाणि पशव:, चतुर् लक्षाणि मानव:।।”
अर्थ:
- जलचर (मछलियाँ आदि) – 9 लाख
- स्थावर (पेड़-पौधे) – 20 लाख
- कृमि (कीड़े-मकोड़े) – 11 लाख
- पक्षी – 10 लाख
- पशु – 30 लाख
- मनुष्य, देव, दैत्य आदि – 4 लाख
कुल: 84 लाख योनि
प्राचीन भारत का जीवविज्ञान (biology of ancient india)
‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प’ ग्रंथ के अनुसार शरीर रचना के आधार पर भी प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है:
- एक शफ (एक खुर वाले) – घोड़ा, गधा, हिरण आदि
- द्विशफ (दो खुर वाले) – गाय, बकरी, भैंस आदि
- पंच अंगुल (पंजे वाले) – सिंह, व्याघ्र, भालू, कुत्ता आदि
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यह दिखाता है कि प्राचीन भारत में केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी जीवों का वर्गीकरण किया गया था।
आत्मा की यात्रा : मनुष्य जन्म तक का सफर (The journey of the soul: The journey to human birth)
शास्त्रों में कहा गया है कि एक आत्मा कर्मानुसार निम्न प्रकार से विभिन्न योनियों से गुजरती है:
- वृक्ष योनि (पेड़-पौधे) – लगभग 30 लाख बार
- जलचर योनि (मछलियाँ आदि) – 9 लाख बार
- कृमि योनि (कीट-पतंग) – 10 लाख बार
- पक्षी योनि – 11 लाख बार
- पशु योनि – 20 लाख बार
- फिर मानव योनि – 4 लाख बार
यह लंबी यात्रा कर्म और इच्छाओं पर आधारित होती है। अंत में आत्मा को मनुष्य शरीर मिलता है — जो मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र अवसर है।
कर्म और पुनर्जन्म का रहस्य (The Mystery of Karma and Reincarnation)
कठोपनिषद (अध्याय 2, वल्ली 2, मंत्र 7) में यमराज कहते हैं —
जो जीव अपने कर्मों के अनुसार मरने के बाद नई देह धारण करते हैं, जिनके पुण्य अधिक हैं वे ऊँची योनियाँ (देव या मानव) प्राप्त करते हैं, और जिनके पाप अधिक हैं, वे नीच योनियों (पशु, पक्षी, वृक्ष आदि) में जन्म लेते हैं।
अर्थात – आत्मा अपने पुण्य-पाप के तराजू पर आगे या पीछे बढ़ती है।
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अंतिम इच्छा और जीन्स का रहस्य (The Last Will and the Secret of Jeans)
प्राचीन ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि मरते समय की अंतिम इच्छा और मनोभाव आत्मा के अगले जन्म की दिशा तय करते हैं। आधुनिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक प्रकार की आध्यात्मिक जेनेटिक्स है — आत्मा उन्हीं जीवों के जीन (ऊर्जा-संरचना) से जुड़ती है जिनसे उसकी भावना या कर्म समान होते हैं।
निष्कर्ष : मोक्ष की ओर यात्रा (Conclusion: The Journey Towards Moksha)
84 लाख योनियों का यह सिद्धांत केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि कर्म और चेतना के विकास का प्रतीकात्मक विज्ञान है।
मनुष्य योनि में आने के बाद ही आत्मा को यह अवसर मिलता है कि वह अपने कर्मों को सुधारकर मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करे।
जो अपने जीवन में धर्म, करुणा और सत्य का पालन करता है, वह आत्मा के इस अनंत चक्र से मुक्त हो जाता है।
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