“घालीन लोटांगण” (Ghalin Lotangan) एक प्रसिद्ध मराठी आरती है, जो भगवान विठोबा (विठ्ठल), भगवान पांडुरंग, तथा अन्य देवी-देवताओं की आराधना के समय गाई जाती है। यह आरती अत्यंत भक्ति भाव से भरी हुई है और इसका अर्थ है — “मैं भगवान के चरणों में लोटांगन (साष्टांग दंडवत प्रणाम) करता हूँ।”
घालीन लोटांगण आरती (Ghalin Lotangan Aarti)
मूल मराठी पाठ:
घालीन लोटांगण, वंदीन चरण ।
डोळ्यांनी पाहीन रुप तुझें ।
प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन ।
भावें ओवाळीन म्हणे नामा ।।१।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विध्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव।।२।।
कायेन वाचा मनसेंद्रियेव्रा,
बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात ।
करोमि यध्य्त सकलं परस्मे,
नारायणायेति समर्पयामि ।।३।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्र भजे ।।४।।
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
हिंदी अर्थ (भावार्थ सहित):
१.
मैं साष्टांग दंडवत होकर प्रभु के चरणों की वंदना करता हूँ,
अपनी आँखों से तुम्हारा रूप निहारता हूँ,
प्रेम से तुम्हें आलिंगन करता हूँ,
आनंदपूर्वक तुम्हारी पूजा करता हूँ,
भक्ति भाव से आरती करता हूँ — ऐसा नामदेव कहता है।
२.
आप ही मेरी माता हैं, आप ही पिता हैं,
आप ही मेरे बंधु (भाई) और सखा (मित्र) हैं।
आप ही मेरा ज्ञान हैं, आप ही मेरा धन हैं।
हे देवों के देव, आप ही मेरे सर्वस्व हैं।
३.
मैं जो कुछ भी अपने शरीर, वाणी, मन, इंद्रियों, बुद्धि या स्वभाव से करता हूँ,
वह सब मैं आपको, हे नारायण, समर्पित करता हूँ।
४.
मैं अच्युत, केशव, राम, नारायण, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि,
श्रीधर, माधव, गोपिकावल्लभ और जानकीनायक श्रीराम का भजन करता हूँ।
५.
हे भगवान —
“हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।”
— इस महामंत्र से मैं आपकी आराधना करता हूँ।
महत्त्व (Significance):
- यह आरती महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर भारत के कई भागों में पूजा के समापन पर गाई जाती है।
- यह आरती नामदेव महाराज की भक्ति परंपरा से जुड़ी मानी जाती है।
- इसका उद्देश्य है — ईश्वर को शरीर, मन, और आत्मा से पूर्ण समर्पण।
- “घालीन लोटांगण” का अर्थ है — मैं प्रभु के चरणों में लोट जाता हूँ — अर्थात अहंकार का अंत और पूर्ण भक्ति।
- यह आरती हर किसी देवता की पूजा के अंत में की जा सकती है — चाहे वह विठोबा, श्रीराम, या श्रीकृष्ण हों।





















































