
रामायण के सुंदरकांड में एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा मिलती है — इंद्रपुत्र जयंत की। यह कथा केवल एक घटना नहीं, बल्कि अहंकार के परिणाम और श्रीराम की करुणा का अद्भुत उदाहरण है। आइए जानते हैं इस रोमांचक कथा को विस्तार से —
शनि देव: न्याय के देवता और कर्मफल दाता
चित्रकूट का पावन प्रसंग (The Holy Episode of Chitrakoot)
वनवास के दिनों में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण चित्रकूट पर्वत पर निवास कर रहे थे। एक दिन जब श्रीराम माता सीता के लिए पुष्प लाकर उनका श्रृंगार कर रहे थे, तब यह दृश्य आकाशलोक से इंद्रपुत्र जयंत देख रहा था।
उसे यह देखकर संदेह हुआ कि क्या यह वास्तव में परमवीर श्रीराम ही हैं? अहंकार ने उसके मन में स्थान ले लिया —
“देखते हैं, इनका बल और संयम कितना है।”
चौंसठ योगिनियाँ — दिव्य शक्तियों का अद्भुत संसार
कौवे का रूप और अहंकार का प्रहार (Jayant Takes the Form of a Crow)
अपने अहंकार और जिज्ञासा में जयंत ने कौवे का रूप धारण किया और सीता माता के समीप उड़कर जा पहुंचा। उसने खेल-खेल में अपनी चोंच से सीता माता के पैर पर हल्की चोट कर दी। परंतु उस चोट से माता के पैर से रक्त बहने लगा।
श्रीराम यह दृश्य देखकर क्रोधित हो उठे। जिस क्षण प्रभु को यह ज्ञात हुआ कि किसी ने उनकी सीता को पीड़ा पहुंचाई है, उनके नेत्रों में अग्नि-सी ज्वाला चमक उठी।
समय के सेतु: काकभुशुण्डि — वह अमर ऋषि जो समय को पार करता है
श्रीराम का तिनका बना ब्रह्मास्त्र (A Straw Became the Brahmastra)

भगवान ने एक सामान्य तिनका उठाया और उसे अपने तप, तेज और संकल्प से ब्रह्मास्त्र बना दिया। यह दिव्य अस्त्र कौवे रूपी जयंत की ओर छोड़ा गया।
यह देखकर समस्त लोक काँप उठे। देवताओं को भी लगा कि अब जयंत का अंत निश्चित है।
देवताओं के द्वार-द्वार पर शरण (Jayant Seeks Refuge Across the Heavens)
जब जयंत ने देखा कि वह ब्रह्मास्त्र से नहीं बच सकता, तो वह भागता हुआ पहले अपने पिता इंद्र के पास गया। परंतु इंद्र ने भय से कहा —
“पुत्र! यह ब्रह्मास्त्र स्वयं श्रीहरि का संकल्प है, इससे कोई नहीं बचा सकता।”
जयंत ने ब्रह्मा, शिव, वरुण, वायु — सभी देवताओं से शरण मांगी, पर किसी ने भी उसे आश्रय नहीं दिया। ब्रह्मास्त्र उसके पीछे-पीछे चलता रहा, जैसे धर्म पापी के पीछे चलता है।
भगवान राम ने बाली को छिपकर क्यों मारा?
नारद मुनि का सन्देश (Narada’s Divine Advice)
भटकते-भटकते जब जयंत थककर गिर पड़ा, तब नारद मुनि प्रकट हुए। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा —
“जयंत! ब्रह्मास्त्र से नहीं बच सकते, केवल राम की शरण ही तुझे बचा सकती है। वही करुणामूर्ति हैं जो अपने शत्रु तक को क्षमा करते हैं।”
जयंत की शरणागति (Jayant Seeks Forgiveness)
नारद मुनि की बात मानकर जयंत पुनः पृथ्वी पर आया और श्रीराम के चरणों में गिर पड़ा।
वह रोते हुए बोला —
“प्रभु! मुझसे अहंकारवश गलती हो गई। मुझे क्षमा करें।”
श्रीराम का हृदय करुणा से भर उठा। उन्होंने ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को समाप्त न करते हुए भी कहा —
“तेरी जान तो मैं बख्श देता हूं, परंतु इस अपराध का एक चिह्न तुझे सदैव याद रहेगा।”
उन्होंने ब्रह्मास्त्र को उसकी एक आँख पर प्रहार करने का आदेश दिया, जिससे जयंत काना हो गया। इस प्रकार, मृत्यु के स्थान पर उसे जीवनदान मिला।
भगवान गणेश के दो विवाह का रहस्य: रिद्धि और सिद्धि से जुड़ी अद्भुत कथा
कथा से मिलने वाली सीख (Moral of the Story)
जयंत की कथा हमें यह सिखाती है कि —
- अहंकार हमेशा पतन का कारण बनता है।
- जब कोई गलती हो जाए, तो क्षमा मांगना ही सच्चा समाधान है।
- श्रीराम की करुणा अपार है — वे शरण में आए हुए किसी को भी दंड नहीं देते, केवल शिक्षा देते हैं।
- पाप कितना भी बड़ा क्यों न हो, शरणागति और पश्चात्ताप से मुक्ति संभव है।
भक्ति का संदेश (Message of Devotion)
कौवे रूपी जयंत की यह कथा न केवल रामायण का एक छोटा प्रसंग है, बल्कि यह मनुष्य जीवन का दर्पण है।
जब मनुष्य अहंकार में आकर धर्म से भटकता है, तो परिणाम विनाशकारी होता है। लेकिन जब वह अपनी गलती स्वीकार कर प्रभु की शरण में आता है, तो उसका उद्धार निश्चित है।
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के समय शंख क्यों बजाया जाता है?