
मध्यप्रदेश के दमोह ज़िले की जबेरा तहसील के छोटे से गाँव नोहटा में स्थित नोहलेश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है। यह मंदिर नर्मदा अंचल के प्राचीन शैव परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यहाँ आने वाला हर यात्री एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करता है। मंदिर का नाम इसकी पौराणिकता और ऐतिहासिकता दोनों को दर्शाता है। नर्मदा तट की शांति और चारों ओर फैली प्राकृतिक सुंदरता इसे और भी रहस्यमय बना देती है।
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इतिहास (History)

नोहलेश्वर मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के आसपास कलचुरी वंश के समय हुआ था। कहा जाता है कि राजा युयराजदेव प्रथम की पत्नी रानी नोहला देवी ने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इसी कारण इस गाँव का नाम “नोहटा” और मंदिर का नाम “नोहलेश्वर” पड़ा।
इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थान नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र भी था, जहाँ धार्मिक अनुष्ठान, सभाएँ और विभिन्न उत्सव आयोजित होते थे। अंग्रेज पुरातत्वविदों ने 19वीं शताब्दी के अंत में इस मंदिर को खंडहर अवस्था में पाया। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसका संरक्षण और आंशिक पुनर्निर्माण कर इसे फिर से जीवित किया।
नोहटा जैन मंदिर – आस्था, इतिहास और चमत्कार का संगम
इस मंदिर से संबंधित एक मान्यता यह भी है कि यह कभी “108 शिवालयों की नगरी” का हिस्सा था। समय के साथ अधिकतर मंदिर नष्ट हो गए, लेकिन नोहलेश्वर आज भी अपनी भव्यता के साथ खड़ा है।
वास्तुकला (Architecture)
नोहलेश्वर मंदिर नागर शैली में बना है, जो मध्यभारत की प्राचीन मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- मंदिर एक ऊँचे चबूतरे (जगती) पर बना है, जिसकी ऊँचाई लगभग 6 फीट और लंबाई करीब 100 फीट है।
- मंदिर का शिखर (शिखर शैली) आकाश को छूता हुआ प्रतीत होता है, जो इसे दूर से ही भव्य बनाता है।
- इसमें मुखमंडप, सभा मंडप, अंतराल और गर्भगृह चारों भाग प्रमुख हैं।
- दीवारों और स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है, जिनमें देवी-देवताओं, अप्सराओं, मिथकीय पात्रों और विभिन्न कथाओं के दृश्य अंकित हैं।
- मंदिर की दीवारों पर नटराज, अंधकासुर वध, सप्तमातृकाएँ, गजलक्ष्मी, दिक्पाल, गंगा-यमुना आदि की सुंदर मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
- मूर्तिकला इतनी जीवंत है कि लगता है मानो पात्र अभी जीवित होकर सामने आ जाएँ।
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मंदिर के अंदर देखने योग्य स्थल (Places to see inside the temple)
- विशाल शिवलिंग – गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण है।
- सप्तमातृकाओं की मूर्तियाँ – सात मातृ शक्तियों का अद्भुत चित्रण, जो शक्तिपूजा की परंपरा को दर्शाता है।
- नटराज की प्रतिमा – भगवान शिव का तांडव रूप यहाँ भव्य और शक्तिशाली रूप में प्रदर्शित है।
- नवग्रह और गजलक्ष्मी की मूर्तियाँ – मंदिर के कोनों और दीवारों पर बनी मूर्तियाँ धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं को प्रकट करती हैं।
- गंगा-यमुना की प्रतिमाएँ – मंदिर के प्रवेश द्वार पर इनका अंकन पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है।
मंदिर में स्थापित देवी-देवता (Deities installed in the temple)
- मुख्य देवता: भगवान शिव (नोहलेश्वर महादेव)
- अन्य प्रतिमाएँ: गणेशजी, सप्तमातृकाएँ, गजलक्ष्मी, नवग्रह, गंगा, यमुना, दिक्पाल आदि।
यह मंदिर केवल शैव परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि वैष्णव, शाक्त और सौर परंपराओं का भी अद्भुत संगम है।
मंदिर की विशेषताएँ (Temple Features)
- यह मंदिर राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक है।
- स्थापत्य कला में कलचुरी काल की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
- मंदिर की दीवारों की नक्काशी मध्यकालीन मूर्तिकला की समृद्ध परंपरा का प्रमाण है।
- यहाँ शिवजी के अलावा कई अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं, जो इसे बहुधार्मिक सांस्कृतिक केंद्र बनाती हैं।
- नर्मदा अंचल के धार्मिक महत्व से जुड़ा होने के कारण यहाँ विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है।
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मंदिर की आरतियाँ और त्योहार (Temple Aartis and Festivals)
- यहाँ प्रतिदिन सुबह और शाम की आरती होती है, जिसमें स्थानीय भक्त और ग्रामीण शामिल होते हैं।
- महाशिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है। इस दिन दूर-दूर से हजारों भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं।
- सावन मास में भी यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।
- इसके अलावा नवरात्रि और दीपावली जैसे पर्वों पर भी मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है।
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आसपास घूमने योग्य स्थल (Places to visit nearby)
नोहलेश्वर मंदिर दर्शन के बाद आसपास कई अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल भी देखे जा सकते हैं।
- नोहटा जैन मंदिर (आदिश्वरगिरि) – जैन धर्म का प्राचीन तीर्थ।
- सिंगौरगढ़ किला – वीरता और इतिहास से जुड़ा किला, जो जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित है।
- दमोह शहर – यहाँ कई प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल हैं।
- घुघवा फॉसिल पार्क – यदि आप प्रकृति और इतिहास प्रेमी हैं, तो यह जीवाश्म पार्क देखने योग्य है।
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मंदिर कब जाएँ (When to go to temple)
अक्टूबर से फरवरी तक का समय सबसे उपयुक्त है। इस दौरान मौसम ठंडा और यात्रा के लिए आरामदायक रहता है। यदि आप धार्मिक उत्सव का अनुभव करना चाहते हैं, तो महाशिवरात्रि या सावन मास में जाएँ।
मंदिर कैसे पहुँचे (How to reach the temple)
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर (~94 किमी)।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन दमोह (~25 किमी)।
- सड़क मार्ग: दमोह और जबलपुर से सड़क द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। नोहटा बस स्टैंड से मंदिर लगभग 1 किमी दूर है।
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मंदिर का पता (Temple address)
नोहलेश्वर महादेव मंदिर, नोहटा गाँव, जबेरा तहसील, दमोह जिला, मध्य प्रदेश, भारत
नोहेश्वर मंदिर, नोहटा की तस्वीरें (Images of Noheshwar Temple, Nohta)
निष्कर्ष (Conclusion)
नोहलेश्वर मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यहाँ की हर दीवार, हर मूर्ति और हर पत्थर प्राचीन काल की एक कहानी सुनाता है। चाहे आप श्रद्धालु हों, इतिहास प्रेमी हों या कला के विद्यार्थी—यह मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।