श्री हनुमत स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य संस्कृत स्तुति है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य जैसे महान संत और दार्शनिक ने की थी। यह स्तोत्र परम भक्त श्री हनुमान जी की महिमा का गान करता है, जो अपने आराध्य भगवान श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं। वे राम नाम का निरंतर जप करते हैं और उसी से उन्हें असाधारण बल, बुद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है।
हनुमान जी केवल बलशाली ही नहीं, बल्कि अत्यंत बुद्धिमान भी हैं। कांची के परमाचार्य ने कहा है कि हनुमान जी की उपासना करने से मनुष्य को आठ प्रमुख वरदान प्राप्त होते हैं — बुद्धि, बल, कीर्ति, पराक्रम, निडरता, उत्तम स्वास्थ्य, संकल्पशक्ति और वाकपटुता।
फलश्रुति (श्री हनुमत स्तोत्र का परिणाम):
जो भी भक्त श्री हनुमत स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करता है, वह इस संसार में सभी सुख-सुविधाओं का आनंद उठाकर अंततः श्रीराम के चरणों का भक्त बन जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से तब उपयोग में लाया जाता है जब जीवन में अत्यंत गहन संकट उपस्थित हो।
इस स्तोत्र के प्रभाव से जीवन की भीषण कठिनाइयाँ दूर होती हैं, सभी प्रकार की बाधाएँ शांत होती हैं और व्यक्ति सुख-समृद्धि की ओर अग्रसर होता है। चाहे वह शत्रु की चाल हो, किसी तंत्र-मंत्र का प्रभाव हो या मानसिक अशांति — श्री हनुमत स्तोत्र का नियमित जप सबका समाधान करता है।
हनुमान जी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बातें:
हनुमान जी की आराधना में पूर्ण पवित्रता और सात्त्विकता आवश्यक है। तन, मन और विचारों की स्वच्छता अनिवार्य मानी गई है। पूजा के समय किसी भी प्रकार के अपवित्र विचार, क्रोध, वासनात्मक या हिंसक प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।
सदैव नारी का सम्मान करें, निर्बल, विकलांग, पशु-पक्षियों और बच्चों पर किसी प्रकार का अत्याचार न करें। यही सच्चे भक्ति का मार्ग है।
श्री हनुमत स्तोत्र
Shri Hanumat Stotra
लांगूलमृष्टवियदम्बुधिमध्यमार्गमुत्प्लुत्य
यान्तममरेन्द्रमुदो निदानम् ।
आस्फालितस्वकभुजस्फुटिताद्रिकाण्डं
द्रांगमैथिलीनयननन्दनमद्य वन्दे ।। 1 ।।
मध्येनिशाचरमहाभयदुर्विषह्रां
घोराद्भुतव्रतमियं यददश्चचार ।
पत्ये तदस्य बहुधापरिणामदूतं
सीतापुरस्कृततनुं हनुमन्तमीडे ।। 2 ।।
य: पादपंकजयुगं रघुनाथपत्न्या
नैराश्यरूषितविरक्तमपि स्वरागै: ।
प्रागेव रागि विदधे बहु वन्दमानो
वन्देऽञ्जनाजनुषमेष विशेषतुष्ट्यै ।। 3 ।।
ताञ्जानकीविरहवेदनहेतुभूतान्
द्रागाकलय्य सदशोकवनीयवृक्षान् ।
लंकालकानिव घनानुदपाटयद्स्तं
हेमसुंदरकपिं प्रणमामि पुष्ट्यै ।। 4 ।।
घोषप्रतिध्वनितशैलगुहासहस्त्र
सम्भ्रान्तनादितवलन्मृगनाथयूथम् ।
अक्षक्षयक्षणविलक्षितराक्षसेन्द्रमिन्द्रं
कपीन्द्रप्रतनावलयस्य वन्दे ।। 5 ।।
हेलाविलन्घितमहार्णवमप्यमन्दं
घूर्णद्गदाविहतिविक्षतराक्षसेषु ।
स्वम्मोदवारिधिमपारमिवेक्षमाणं
वन्देऽहमक्षयकुमारकमारकेशम् ।। 6 ।।
जम्भारिजित्प्रसभलम्भितपाशबन्धं
ब्रह्मानुरोधमिव तत्क्षणमुद्वहन्तम् ।
रौद्रावतारमपि रावणदीर्घदृष्टिसं
कोचकारणमुदारहरिं भजामि ।। 7 ।।
दर्पोन्नमन्निशिचरेश्वरमूर्धचञ्चत्कोटीरचुम्बि
निजबिम्बमुदीक्ष्य ह्रष्टम् ।
पश्यन्तमात्मभुजयंत्रणपिष्यमाण
तत्कायशोणितनिपातमपेक्षि वक्ष: ।। 8 ।।
अक्षप्रभृत्यमरविक्रमवीरनाशक्रोधादिव
द्रुतमुदञ्चितचन्द्रहासाम् ।
निद्रापिताभ्रघनगर्जनघोरघोषै:
संस्तम्भयन्तमभिनौमि दशास्यमूर्तिम् ।। 9 ।।
आशंस्यमानविजयं रघुनाथधाम
शंसन्तमात्मकृतभूरिपराक्रमेण ।
दौत्ये समागमसमन्वयमादिशन्तं वन्दे
हरे: क्षितिभृत: पृतनाप्रधानम् ।। 10 ।।
यस्यौचितीं समुपदिष्टवतोऽधिपुच्छं
दम्भान्धितां धियमपेक्ष्य विवर्धमान: ।
नक्तञ्चराधिपतिरोषहिरण्यरेता लंका
दिधक्षुरपतत्तमहं वृणोमि ।। 11 ।।
क्रन्दन्निशाचरकुलां ज्वलनावलीढै:
साक्षाद्ग्रहैरिव बहि: परिदेवमानाम् ।
स्तब्धस्वपुच्छतटलग्नक्रपीट
योनिदंदह्रामाननगरीं परिगाहमानाम् ।। 12 ।।
मूर्तैर्ग्रहासुभिरिव द्युपुरं व्रजद्भिव्र्योम्नि
क्षणं परिगतं पतगैज्र्वलद्भि: ।
पीताम्बरं दधतमुच्छ्रितदीप्ति पुच्छं
सेनां वहद्विहगराजमिवाहमीडे ।। 13 ।।
स्तम्भीभवत्स्वगुरुवालधिलग्नवहिन
ज्वालोल्ललद्ध्वजपटामिव देवतुष्ट्यै ।
वन्दे यथोपरि पुरो दिवि दर्शयन्तमद्यैव
रामविजयाजिकवैजयन्तीम् ।। 14 ।।
रक्षश्चयैकचितकक्षकपूश्चितौ य:
सीताशुचो निजविलोकनतो मृताया: ।
दाहं व्यधादिव तदन्त्यविधेयभूतं
लांगगूलदत्तदहनेन मुदे स नोऽस्तु ।। 15 ।।
आशुद्धये रघुपतिप्रणयैकसाक्ष्ये
वैदेहराजदुहितु: सरिदीश्वराय ।
न्यासं ददानमिव पावकमापतन्तमब्धौ
प्रभञ्जनतनूजनुषं भजामि ।। 16 ।।
रक्षस्स्वतृप्तिरुडशान्तिविशेषशोणमक्ष
क्षयक्षणविधानुमितात्मदाक्ष्यम् ।
भास्वत्प्रभातरविभानुभरावभासं
लंकाभयंकरममुं भगवन्तमीडे ।। 17 ।।
तित्र्वोदधिं जनकजार्पितमाप्य
चूडारत्नं रिपोरपि पुरं परमस्य दग्ध्वा ।
श्रीरामहर्षगलदश्र्वभिषिच्यमानं तं
ब्रह्मचारिवरवानरमाश्रयेऽहम् ।। 18 ।।
य: प्राणवायुजनितो गिरिशस्य शांत:
शिष्योऽपि गौतमगुरुर्मुनिशंकरात्मा ।
ह्रदयो हरस्य हरिवद्धरितां गतोऽपि
धीधैर्यशास्त्रविभवेऽतुलमाश्रये तम् ।। 19 ।।
स्कन्धेऽधिवाह्रा जगदुत्तरगीतिरीत्या
य: पार्वतीश्वरमतोषयदाशुतोषम् ।
तस्मादवाप च वरानपरानवाप्यान् तं
वानरं परमवैष्णवमीशमीडे ।। 20 ।।
उमापते: कविपते: स्तुतिर्बाल्यविज्रम्भिता ।
हनूमतस्तुष्टयेऽस्तु वीरविंशतिकाभिधा ।।
।। इति श्री हनुमत स्तोत्र संपूर्णम् ।।
श्री हनुमत स्तोत्र का केवल हिंदी अनुवाद (Only Hindi translation of Shri Hanuman Stotra)
मैं उस हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ जो अपनी पूँछ से आकाश और समुद्र के बीच मार्ग बनाकर उड़ते हुए स्वर्ग के राजा इन्द्र के पास पहुँचे, जिनकी भुजाओं के प्रहार से पर्वत खंड-खंड हो गए, और जो जानकी माता की आंखों के लिए आनंद का कारण बने।
मैं उस हनुमान जी की स्तुति करता हूँ जिन्होंने भयानक राक्षसों के बीच कठिन कार्य करते हुए सीता माता के लिए एक सच्चे दूत का रूप निभाया और अनेक प्रकार के परिणामों का संकेत देते हुए कार्य को सिद्ध किया।
जो अंजनी पुत्र हैं, जिन्होंने रघुनाथ जी की पत्नी के चरणों के प्रति, उनके निराशा में डूबे होने पर भी, पहले ही प्रेम भाव दिखाया और श्रद्धा से पूजन किया — मैं ऐसे विशेष रूप से संतुष्ट करने वाले हनुमान जी को नमन करता हूँ।
जिन्होंने जानकी जी के विरह से दुखी होकर अशोकवाटिका के वृक्षों को बादलों की तरह उखाड़ दिया, ऐसे सुंदर स्वर्ण कान्तिवान कपि को मैं बल, बुद्धि और समृद्धि के लिए प्रणाम करता हूँ।
मैं उस वानर वीर को प्रणाम करता हूँ जिसकी गर्जना से पर्वतों की हजारों गुफाएँ गूंज उठीं, जिससे हिंसक पशु भयभीत हो गए, जिसने अक्षकुमार और अन्य राक्षसों का नाश किया।
मैं उस हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने खेल-खेल में ही समुद्र को पार कर लिया, गदा से राक्षसों को मार गिराया, और जो अति प्रसन्नचित्त होकर अपने कार्य की ओर देख रहे थे जैसे कोई समुद्र की लहरों में आनंद ले रहा हो।
मैं उस अद्भुत हनुमान जी की स्तुति करता हूँ जिन्होंने रौद्र रूप धारण करके रावण को चुनौती दी, बंधन में बंधे हुए भी ब्रह्मा के आदेश के अनुसार शांति बनाए रखी, और जो राक्षसों के संहारक हैं।
मैं उस हनुमान जी की वंदना करता हूँ जिन्होंने राक्षसों के राजा के मुकुट को अपने तेज से स्पर्श किया, और जो अपने बलशाली भुजाओं से शत्रुओं को कुचलते हुए गर्व से भरे हुए दिखाई दिए।
मैं उन हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने अपने क्रोध से चंद्रहास (तलवार) उठाई, राक्षसों को गहन गर्जना से भयभीत किया और दस सिर वाले रावण को भी स्तब्ध कर दिया।
मैं उस हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ जो रघुनाथ जी की विजय का संकेत देने वाले, अपने पराक्रम से युक्त, और रामकाज के हेतु दूत रूप में समर्पित हुए।
जो उचित मार्ग दिखाने के बावजूद अहंकारवश उसे न मानने वाले रावण की लंका को दग्ध करने के लिए गए, ऐसे पूंछ से अग्नि फैलाने वाले हनुमान जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जो अग्नि की लपटों से राक्षसों के नगर को घेरते हुए घूमते रहे, मानो भयंकर ग्रहों की तरह दहकते हों, और पूंछ में अग्नि बांध कर लंका को जला रहे हों, उन हनुमान जी को प्रणाम।
जो अग्नि में लिपटे, आकाश में उड़ते हुए, पीतांबर धारण किए हुए प्रतीत होते हैं जैसे कोई गरुड़ देवता सेना को लेकर आकाश में जा रहे हों, ऐसे तेजस्वी हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।
जिनकी पूंछ में लगी अग्नि ध्वज की तरह ऊपर लहरा रही थी, जिन्होंने आकाश में राम की विजय पताका दिखाकर देवताओं को संतुष्ट किया, ऐसे हनुमान जी को मैं नमन करता हूँ।
जिन्होंने सीता जी को मृत जानकर जलती चिता की ओर दौड़ने का अभिनय किया, और अपनी पूंछ में लगी अग्नि से लंका को भस्म कर दिया — ऐसे हनुमान जी हमें कल्याण प्रदान करें।
जो रघुनाथ जी के प्रेम की साक्षी बनकर सीता जी की अंगूठी समुद्र में फेंकते हुए मानो अपनी शुद्धता प्रमाणित कर रहे थे — ऐसे वायु के पुत्र को मैं भजता हूँ।
जो राक्षसों के विनाश में निपुण हैं, जिनकी बुद्धि और युक्ति से अक्षकुमार का अंत हुआ, जो रात्रि के अंधकार को सूर्य के समान प्रकाशमान करते हैं — उन हनुमान जी की मैं स्तुति करता हूँ।
जिन्होंने समुद्र पार कर जनकसुता की खोज की, रावण की लंका को जलाया, और श्रीराम की आँखों में आनंद के आँसू भर दिए — उस ब्रह्मचारी श्रेष्ठ वानर को मैं शरण लेता हूँ।
जो वायु से उत्पन्न हैं, शिव के शांतस्वरूप, गौतम ऋषि के शिष्य, ज्ञान और धैर्य में अतुलनीय हैं — मैं ऐसे हनुमान जी को नमस्कार करता हूँ।
जिन्होंने अपने कंधे पर संपूर्ण सृष्टि को उठा कर शिव-पार्वती को संतुष्ट किया और उनसे अनुपम वरदान पाए — मैं उस परम वैष्णव वानर भगवान की स्तुति करता हूँ।
श्री हनुमत स्तोत्र से लाभ (Benefits of Shri Hanuman Stotra):
- जीवन के संकट, मानसिक तनाव, और शत्रु बाधा से रक्षा करता है।
- साधक को आत्मिक बल, मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
किसे करना चाहिए श्री हनुमत स्तोत्र का पाठ (Who should recite Shri Hanuman Stotra):
- जो व्यक्ति लगातार शारीरिक रोगों से ग्रसित हैं या बार-बार बीमार होते हैं।
- जिन्हें जीवन में बार-बार रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
- जो किसी भय, बाधा या नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति चाहते हैं।