स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान शिव के भैरव स्वरूपों में से एक अत्यंत प्रभावशाली और चमत्कारी रूप माने जाते हैं। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है – “स्वर्णाकर्षण”, अर्थात जो सोने (धन) को आकर्षित करते हैं। इनकी आराधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है जो आर्थिक तंगी, दरिद्रता या व्यापारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि स्वर्णाकर्षण भैरव की साधना करने से साधक को पारद (पारा) बाँधने की विद्या, स्वर्ण निर्माण की प्रक्रिया, तथा तांत्रिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना रात्रिकाल में विशेष फलदायी मानी जाती है, विशेषकर अर्द्धरात्रि से प्रातः तीन बजे तक के समय में।
स्वर्णाकर्षण भैरव लाल वर्ण के होते हैं, उनके वस्त्र भी लाल होते हैं और उनके चार हाथ होते हैं। उनके सिर पर चंद्र का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्वरूप महर्षि मार्कंडेय की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुआ था।
इस स्तोत्र का उल्लेख ‘रुद्र यामल तंत्र’ जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि यह स्तोत्र दरिद्रता के विनाश और धन-लाभ हेतु अत्यंत प्रभावशाली है। जिनकी कुंडली में धनभाव से संबंधित दोष हों या जिनके जीवन में आर्थिक बाधाएं बार-बार आ रही हों, वे इस स्तोत्र का नियमित रूप से 41 दिनों तक पाठ करके आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र
Swarnakarshan Bhairav Stotra
मूल-मन्त्रः-
“ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूंसः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धायलोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय ममदारिद्र्य-विद्वेषणायश्रींमहा-भैरवायनमः ।”
।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।
भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम ।
पूर्वमुक्तस्त्वयामन्त्रं, भैरवस्यमहात्मनः ।।
इदानींश्रोतुमिच्छामि, तस्यस्तोत्रमनुत्तमं ।
तत्केनोक्तंपुरास्तोत्रं, पठनात्तस्यकिंफलम् ।।
तत्सर्वंश्रोतुमिच्छामि, ब्रूहिमेनन्दिकेश्वर ।।
।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।
इदंब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक ।
स्तोत्रंवटुक-नाथस्य, दुर्लभंभुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनंपुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदंनृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदंचैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदंस्तोत्रं, भैरवस्यमहात्मनः ।
नवक्तव्यंनिराचारे, हिपुत्रायचसर्वथा ।।
शुचयेगुरु-भक्ताय, शुचयेऽपितपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेवितेनिर्धनायच ।।
निज-भक्तायवक्तव्यमन्यथाशापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत्भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्वब्रूहितोब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।
विनियोगः-
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे ।
ॐअस्यश्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्यब्रह्माऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रींबीजं, क्लींशक्ति, सःकीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थेपाठेविनियोगः ।
ध्यानः-
मन्दार-द्रुम-मूल-भाजिविजितेरत्नासनेसंस्थिते ।
दिव्यंचारुण-चञ्चुकाधर-रुचादेव्याकृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यःकर-रत्न-पात्र-भरितंस्वर्णदधानोभृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवोभवतुमेस्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।
।। स्तोत्र-पाठ ।।
ॐनमस्तेऽस्तुभैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमःत्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदायपरात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसेनमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवेनमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्तायतेनमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवायतेनमः ।।
नमोदारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशायतेनमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशायनमोनमः ।
नमोऽस्तुदैत्य-कालाय, पाप-कालायतेनमः ।।
सर्वज्ञायनमस्तुभ्यं, नमस्तेदिव्य-चक्षुषे ।
अजितायनमस्तुभ्यं, जितामित्रायतेनमः ।।
नमस्तेरुद्र-पुत्राय, गण-नाथायतेनमः ।
नमस्तेवीर-वीराय, महा-वीरायतेनमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोरायतेनमः ।
नमस्तेघोर-घोराय, विश्व-घोरायतेनमः ।।
नमःउग्रायशान्ताय, भक्तेभ्यःशान्ति-दायिने ।
गुरवेसर्व-लोकानां, नमःप्रणव-रुपिणे ।।
नमस्तेवाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामायतेनमः ।
नमस्तेकाम-राजाय, योषित्कामायतेनमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पतेनमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गायसम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणायच ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणायते ।।
नमोनमोभैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्यासर्वदानमः ।।
नमोलोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहितायते ।
नमःश्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमोमहा-भैरवाय, श्रीरुपायनमोनमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्यायनमोनमः ।।
नमःप्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवायतेनमः ।
नमस्तेमन्त्र-रुपाय, नमस्तेरत्न-रुपिणे ।।
नमस्तेस्वर्ण-रुपाय, सुवर्णायनमोनमः ।
नमःसुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्यायतेनमः ।।
नमःशुद्धायबुद्धाय, नमःसंसार-तारिणे ।
नमोदेवायगुह्याय, प्रबलायनमोनमः ।।
नमस्तेबल-रुपाय, परेषांबल-नाशिने ।
नमस्तेस्वर्ग-संस्थाय, नमोभूर्लोक-वासिने ।।
नमःपाताल-वासाय, निराधारायतेनमः ।
नमोनमःस्वतन्त्राय, ह्यनन्तायनमोनमः ।।
द्वि-भुजायनमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्तायतेनमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्तेस्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमःस्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभायचतेनमः ।
नमस्तेस्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादायतेनमः ।
नमःस्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्तेस्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्तेस्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमोब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालायभक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमोहेमादि-कर्षाय, भैरवायनमोनमः ।।
स्तवेनानेनसन्तुष्टो, भवलोकेश-भैरव ।
पश्यमांकरुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल ।
श्रीभैरवधनाध्यक्ष, शरणंत्वांभजाम्यहम् ।
प्रसीदसकलान्कामान्, प्रयच्छममसर्वदा ।।
।। फल-श्रुति ।।
श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्रसूक्तंसु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकंमहा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यःपठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैःसविमुच्यते ।
लभतेचामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुंकल्पतरुंध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेवसमानवः ।।
संध्याययःपठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्यानरोत्तमैः ।
स्वप्नेश्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद्भूतोजगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशिददात्येव, तत्क्षणान्नास्तिसंशयः ।
सर्वदायःपठेत्स्तोत्रं, भैरवस्यमहात्मनः ।।
लोक-त्रयंवशीकुर्यात्, अचलांश्रियंचाप्नुयात् ।
नभयंलभतेक्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्तेशत्रवोऽवश्यमलक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयंलभतेसौख्यं, सर्वदामानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजःप्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
ययेनसंजपेत्धीमान्, स्तोत्रवाप्रपठेत्सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-कालेभवेद्ध्रुवं ।।
।। इति स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र के लाभ (Benefits of Swarnakarshan Bhairav Stotra):
- आर्थिक तंगी, कर्ज और दरिद्रता दूर होती है।
- अष्ट दरिद्रता (आठ प्रकार की निर्धनता) का नाश होता है।
- साधक के जीवन में स्थिरता, समृद्धि और धन का प्रवाह बना रहता है।
- व्यापार में बाधाएं दूर होती हैं और आय के नए स्रोत खुलते हैं।
किन्हें करना चाहिए यह स्तोत्र (Who should do this Stotra):
- जो व्यक्ति आर्थिक रूप से परेशान हैं या धन की कमी से संघर्ष कर रहे हैं।
- जिनके व्यापार या नौकरी में लगातार नुकसान हो रहा हो।
- जिनकी कुंडली में धन-संबंधी दोष मौजूद हों।