“श्री सूर्य प्रातः स्मरण स्तोत्रम्” एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है जो प्रातःकाल सूर्य भगवान के ध्यान, स्तुति और वंदन हेतु रचा गया है। इस स्तोत्र में भगवान सूर्य के तेज, स्वरूप, शक्तियों और उनके लोकहितकारी गुणों का सुंदर वर्णन किया गया है। इसे प्रातःकाल स्मरण करने से मनुष्य को स्वास्थ्य, शुद्धता, शक्ति, सफलता और आत्मिक जागृति की प्राप्ति होती है।
भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है, जो जीवनदायी ऊर्जा, ज्ञान और अनुशासन के प्रतीक हैं। यह स्तोत्र उनके ब्रह्मस्वरूप, तीनों गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त स्वरूप और त्रिलोकी के नियंता रूप की स्तुति करता है। इसे श्रद्धा व नियमितता से जपने वाला साधक रोग, भय, शत्रु, और पापों से मुक्त होकर चिरकालिक सुख एवं आरोग्यता को प्राप्त करता है।
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक माना गया है जो दिन की शुरुआत आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता के साथ करना चाहते हैं।
श्री सूर्य प्रातः स्मरण स्तोत्रम्
(Shri Surya Pratah Smaran Stotram)
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं
रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि ।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ॥ १ ॥
प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाङ्मनोभि-
र्ब्रह्मेन्द्रपूर्वकसुरैर्नतमर्चितं च ।
वृष्टिप्रमोचनविनिग्रहहेतुभूतं
त्रैलोक्यपालनपरं त्रिगुणात्मकं च ॥ २ ॥
प्रातर्भजामि सवितारमनन्तशक्तिं
पापौघशत्रुभयरोगहरं परं च ।
तं सर्वलोककलनात्मककालमूर्तिं
गोकण्ठबन्धनविमोचनमादिदेवम् ॥ ३ ॥
श्लोकत्रयमिदं भानोः प्रातः प्रातः पठेत्तु यः ।
स सर्वव्याधिनिर्मुक्तः परं सुखमवाप्नुयात् ॥ ४ ॥
॥ इति श्री सूर्य प्रातः स्मरण स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सूर्य प्रातः स्मरण स्तोत्रम्
(हिंदी अनुवाद सहित)
Shri Surya Morning Remembrance Stotram
(including Hindi translation)
प्रातः मैं उस अद्भुत, पूजनीय सविता सूर्यदेव का स्मरण करता हूँ, जिनका स्वरूप तेजस्वी मण्डल है, जिनकी देह यजुर्वेद है, जिनकी किरणें सामवेद हैं, और जो सम्पूर्ण सृष्टि के प्रकट होने का कारण हैं। उनका रूप अलक्ष्य (दृश्य से परे), चिन्तनातीत और ब्रह्ममय है। ॥1॥
प्रातः मैं सूर्यदेव को वाणी, मन और शरीर से नमस्कार करता हूँ, जिनकी पूजा ब्रह्मा, इन्द्र और अन्य देवता भी करते हैं। वे वर्षा लाने और रोकने में समर्थ हैं, तीनों लोकों की रक्षा में रत रहते हैं और सत्व, रज, तम – तीनों गुणों से युक्त हैं। ॥2॥
प्रातः मैं उस सविता (सूर्यदेव) की भक्ति करता हूँ, जिनकी शक्ति अनंत है, जो पापों, शत्रुओं, भय और रोगों का नाश करने वाले हैं। वे सभी लोकों के समय और क्रियाओं के अधिष्ठाता हैं, और गोकर्ण तीर्थ में जो पाशबन्ध से मुक्त करने वाले आदि देव हैं। ॥3॥
जो मनुष्य इस सूर्य स्तोत्र के इन तीन श्लोकों का प्रातःकाल प्रतिदिन पाठ करता है, वह सभी रोगों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। ॥4॥
॥ श्री सूर्य प्रातः स्मरण स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: सूर्य देवता को आरोग्य के देवता माना गया है। यह स्तोत्र नियमित रूप से पढ़ने से शरीर में ऊर्जा, तेज और प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
- नकारात्मकता का नाश: इससे मानसिक शुद्धि होती है, और आलस्य, भय, और नकारात्मक विचार दूर होते हैं।
- विद्या और बुद्धि की वृद्धि: विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और ज्ञान के मार्ग पर चलने वालों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
- कर्मों में सफलता: जो व्यक्ति नियमित रूप से इस स्तोत्र का जाप करता है, उसे अपने कार्यों में सफलता मिलती है।
- सूर्य ग्रह के दोषों की शांति: कुंडली में सूर्य से संबंधित दोषों और पीड़ा के निवारण में यह स्तोत्र सहायक होता है।
विधि (Puja & Jaap Vidhi):
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, सूर्य को ध्यान में रखें।
- चाहें तो सूर्य देव को जल अर्पित करें (अर्घ्य देना), जिसमें लाल फूल, रोली या कुमकुम डाल सकते हैं।
- अब शांत चित्त से स्तोत्र का पाठ करें। पाठ के समय सूर्य देव का तेजस्वी रूप ध्यान में रखें।
- अंत में “ॐ सूर्याय नमः” या “ॐ घृणि सूर्याय नमः” का 11, 21 या 108 बार जप करें।
जप का समय (Best Time for Recitation):
- प्रातःकाल (सुबह 5:30 से 7:30 के बीच) यह स्तोत्र पढ़ना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
- खासकर सूर्योदय से ठीक पहले या सूर्योदय के समय, जब सूर्य की किरणें तन व मन को स्पर्श करती हैं।
- रविवार को विशेष फलदायी होता है, क्योंकि यह सूर्य देव का दिन माना जाता है।


























































