“श्री शिव रुद्राष्टकम” एक अति प्रसिद्ध और प्रभावशाली स्तुति है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान शिव की आराधना में की थी। यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में रचा गया है और इसमें आठ श्लोक होते हैं — इसलिए इसे “अष्टकम” कहा जाता है।
इस रचना में भगवान शिव के अद्वितीय स्वरूप, उनके सौंदर्य, तेज, करुणा, निराकार ब्रह्मभाव, तात्त्विक स्वरूप और उनके भक्तवत्सल स्वभाव का अद्भुत वर्णन है। श्री शिव रुद्राष्टकम भक्त के हृदय में शिव के प्रति प्रेम, श्रद्धा और आत्मसमर्पण की भावना को प्रकट करता है।
यह स्तोत्र इतना प्रभावशाली है कि इसकी नियमित उपासना से साधक को शिव कृपा सहज प्राप्त होती है। यह केवल भक्ति की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जिसमें शिव को निर्गुण-निराकार से लेकर सगुण-साकार रूप में पूजा जाता है।
श्री शिव रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं,
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,
चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥ 1
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं,
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं,
गुणागार संसारपारं नतो हं॥ 2
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं,
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा,
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ 3
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥ 4
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं,
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं,
भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥ 5
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी,
सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥ 6
न यावद् उमानाथ पादारविंदं,
भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥ 7
न जानामि योगं जपं नैव पूजां,
नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो॥ 8
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥ 9
॥ इति श्री शिव रुद्राष्टकम संपूर्णम् ॥
श्री शिव रुद्राष्टकम — हिंदी अनुवाद सहित
1
मैं परमेश्वर ईशान रूप, मोक्षस्वरूप, सर्वव्यापक,
ब्रह्म और वेदस्वरूप,
स्वभाव से निर्गुण, विकल्प रहित, इच्छारहित,
चित्ताकाश में स्थित, आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले शिव को नमस्कार करता हूँ।
2
जो निराकार हैं, ओंकार के मूल हैं, चतुर्थ अवस्था (तुरीय) हैं,
वाणी, ज्ञान और इंद्रियों से परे हैं,
गिरिराज (पर्वतों के स्वामी) हैं,
भयंकर, कालों के भी काल, कृपालु,
सद्गुणों के आगार, और संसार से पार कराने वाले हैं —
मैं उन्हें नमन करता हूँ।
3
जो बर्फ जैसे उज्ज्वल, गंभीर स्वरूप के हैं,
जिनके शरीर की कान्ति करोड़ों कामदेवों से बढ़कर है,
जिनके मस्तक पर गंगा की सुंदर लहरें लहराती हैं,
जिनके ललाट पर चंद्रमा सुशोभित है और गले में सर्प है।
4
जिनके कानों में कुंडल हिलते रहते हैं, भौहें सुंदर और नेत्र विशाल हैं,
जिनका मुख प्रसन्न है, गला नील है, और जो अत्यंत दयालु हैं,
जिनका वस्त्र सिंह की खाल है, और जो मुण्डों की माला धारण करते हैं,
ऐसे प्रिय शंकर, सर्वनाथ शिव की मैं वंदना करता हूँ।
5
जो अत्यंत प्रचंड, श्रेष्ठ, निर्भीक, परमेश्वर,
अखंड, अजन्मा और करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं,
जिनके हाथ में त्रिशूल है और जो समस्त दुखों को नष्ट करते हैं —
ऐसे भवानीपति भावगम्य शिव की मैं पूजा करता हूँ।
6
जो समय और कला से परे, कल्याण स्वरूप, सृष्टि के अंत करने वाले हैं,
सज्जनों को सदा आनंद देने वाले और त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले हैं,
जिनकी चेतना आनंदमयी है और जो मोह का नाश करते हैं —
हे मन्मथ (कामदेव) को जीतने वाले प्रभो! प्रसन्न होइए।
7
जब तक मनुष्य इस लोक में या परलोक में
उमापति (शिव) के चरणकमलों का भजन नहीं करता,
तब तक उसे न सुख, न शांति, न संताप का नाश प्राप्त होता है।
हे सर्वभूतों में निवास करने वाले प्रभु! कृपा करें।
8
न तो मैं योग जानता हूँ, न जप, न पूजा की विधि।
मैं तो सदा-ही सदा आपको प्रणाम करता हूँ, हे शंभु!
मैं जन्म-मरण के दुःखों से अत्यंत पीड़ित हूँ —
हे प्रभु! मुझे बचाइए — मैं आपकी शरण में हूँ, हे ईश्वर शंभो!
9
यह रुद्राष्टक एक ब्राह्मण द्वारा
भगवान हर (शिव) को प्रसन्न करने के लिए कहा गया है।
जो भी श्रद्धा से इसका पाठ करता है,
उन पर भगवान शंभु अवश्य प्रसन्न होते हैं।
॥ इस प्रकार श्री शिव रुद्राष्टकम संपूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits):
- शिव कृपा की प्राप्ति:
रुद्राष्टकम का पाठ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इससे शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। - मन को शांति और शक्ति:
इसका नियमित जप मानसिक तनाव, भय और क्रोध को दूर करता है तथा आंतरिक शांति देता है। - विघ्नों और संकटों से रक्षा:
जीवन के कष्ट, रोग, आर्थिक समस्याओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। - मोक्ष प्राप्ति का मार्ग:
यह स्तोत्र भगवान शिव के तात्त्विक स्वरूप को समझाता है, जिससे साधक मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है। - संतान सुख और विवाह में सफलता:
विवाहित जीवन में सुख और संतान की प्राप्ति के लिए भी यह फलदायी माना गया है।
पाठ / जप की विधि (Vidhi):
- प्रारंभ:
सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान पर शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति/चित्र स्थापित करें। - साधन-सामग्री:
– जल, बिल्वपत्र, सफेद फूल, अक्षत, धूप, दीप, रुद्राक्ष माला (यदि उपलब्ध हो)
– गाय का घी या तिल का तेल का दीपक - ध्यान:
सबसे पहले भगवान शिव का ध्यान करें —
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र से कुछ समय तक ध्यान करें। - पाठ विधि:
– फिर “श्री शिव रुद्राष्टकम” का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
– पाठ के बाद “ॐ नमः शिवाय” मंत्र से 108 बार जप करें (रुद्राक्ष माला से उत्तम)।
– अंत में भगवान शिव से अपनी प्रार्थना करें और क्षमा याचना करें। - विशेष:
सोमवार, प्रदोष व्रत, शिवरात्रि जैसे पावन अवसरों पर इसका पाठ विशेष फल देता है।
पाठ / जप का उचित समय (Best Time):
| समय | लाभ |
|---|---|
| प्रातःकाल (सुबह 4:00–6:00) | ब्रह्ममुहूर्त का समय सबसे श्रेष्ठ है। मन एकाग्र रहता है और शिव तत्त्व को आसानी से आत्मसात किया जा सकता है। |
| संध्याकाल (शाम 6:00–8:00) | दिन भर की थकान को दूर करके मानसिक शांति प्राप्त होती है। |
| प्रदोष काल (शिव के पूजन का श्रेष्ठ समय) | सोमवार या त्रयोदशी तिथि की संध्या को रुद्राष्टकम का पाठ विशेष फलदायी होता है। |
| शिवरात्रि पर रात्रि जागरण के दौरान | रात्रि के हर प्रहर में एक बार रुद्राष्टकम पढ़ना श्रेष्ठ फल देता है। |


























































