“श्री लघु अन्नपूर्णा स्तोत्र” एक छोटा लेकिन अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो माँ अन्नपूर्णा को समर्पित है। अन्नपूर्णा देवी को अन्न, समृद्धि, करुणा और पालन करने वाली माता के रूप में जाना जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों के लिए रचा गया है जो दरिद्रता, भूख, पारिवारिक कष्ट और मानसिक व्याकुलता से मुक्ति पाना चाहते हैं।
इस स्तोत्र के केवल तीन मुख्य श्लोक हैं, परंतु उनमें गहन श्रद्धा, करुणा की याचना, और माँ के चरणों में आत्मसमर्पण की भावना भरी हुई है। इसे पढ़ने से माँ अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में अन्न, धन, संतोष व सुख-शांति का संचार होता है।
शास्त्रों में भी उल्लेख है कि यह स्तोत्र पुण्य, विद्या, यश, धन और मोक्ष देने में समर्थ है। इसे प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक जपने से माँ अन्नपूर्णा अपने भक्तों के जीवन से अभाव और दुःख को दूर कर देती हैं।
यदि आप माता अन्नपूर्णा की कृपा को पाना चाहते हैं और जीवन में स्थिरता व सुख की अनुभूति करना चाहते हैं, तो यह स्तोत्र आपके लिए अत्यंत लाभकारी है।
श्री लघु अन्नपूर्णा स्तोत्र
Sri Laghu Annapurna Stotram
भगवति भवरोगात् पीडितं दुष्कृतोत्यात्।
सुतदुहितृकलत्र उपद्रवेणानुयातम्।
विलसदमृतदृष्ट्या वीक्ष विभ्रान्तचित्तम्।
सकलभुवनमातस्त्राहि माम् ॐ नमस्ते ॥ 1 ॥
माहेश्र्वरीमाश्रितकल्पवल्ली
महंभवोच्छेदकरीं भवानीम्।
क्षुधार्तजायातनयाद्दुपेत
स्त्वान्नपूर्णे शरणं प्रपद्दे ॥ 2 ॥
दारिद्र्यदावानलदह्यमानम्,
पाह्यन्नपूर्णे गिरिराजकन्ये।
कृपाम्बुधौ मज्जय मां त्वदीये,
त्वपादपद्मार्पितचित्तवृतिम् ॥ 3 ॥
दूत्थन्नपूर्णास्तुतिरत्नमेतत्,
श्लोकत्रयं यः पठतीह भक्त्या।
तस्मै ददात्यन्नसमृद्धिमम्बा,
श्रियं च विद्दां च यशश्र्च मुक्तिम् ॥ 4 ॥
॥ इति श्री लघु अन्नपूर्णा स्तोत्र संपूर्णम् ॥
श्री लघु अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Sri Laghu Annapurna Stotram in Hindi Translation
हे भगवती! मैं जन्म-मरण के रोग से पीड़ित हूँ, पापकर्मों के फल से दुःखी हूँ,
पुत्र, पुत्री, पत्नी तथा अन्य संकटों से घिरा हूँ।
आप अपनी अमृतमयी दृष्टि से मेरी ओर कृपापूर्वक देखें,
हे सम्पूर्ण संसार की माता! भ्रमित मन को शांति दें – मुझे बचाइए। आपको नमस्कार है॥ 1 ॥
मैं महेश्वरी स्वरूपिणी, कल्पवृक्ष के समान इच्छाओं को पूर्ण करने वाली,
संसार-बंधन को काटने वाली भवानी देवी की शरण लेता हूँ।
जो भूख से पीड़ित स्त्री, पुत्र और परिवार सहित आया है,
हे अन्नपूर्णा! मैं आपकी शरण में आता हूँ॥ 2 ॥
जो व्यक्ति दरिद्रता रूपी अग्नि से जल रहा है,
उसकी रक्षा कीजिए हे अन्नपूर्णा! हे हिमालय-पुत्री!
मुझे आपकी कृपा रूपी समुद्र में डुबो दीजिए,
मेरा चित्त सदा आपके चरणकमलों में ही लगा रहे॥ 3 ॥
जो भक्त इस तीन श्लोकों वाले अन्नपूर्णा स्तुति रत्न का
श्रद्धा पूर्वक पाठ करता है,
उसे माँ अन्नपूर्णा अन्न की समृद्धि,
श्री (ऐश्वर्य), विद्या, यश और मोक्ष प्रदान करती हैं॥ 4 ॥
॥ इति श्री लघु अन्नपूर्णा स्तोत्र संपूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
- अन्न व धन की प्राप्ति – यह स्तोत्र माँ अन्नपूर्णा की कृपा से जीवन में अन्न और धन की कभी कमी नहीं आने देता।
- दरिद्रता का नाश – जो व्यक्ति आर्थिक संकट या दरिद्रता से जूझ रहा हो, उसे इससे मुक्ति मिलती है।
- पारिवारिक सुख में वृद्धि – संतान, पत्नी, परिवार आदि से संबंधित कष्टों का निवारण होता है।
- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांति – पीड़ित हृदय और भ्रमित मन को स्थिरता और शांति मिलती है।
- विद्या, यश और मोक्ष – स्तोत्र का नियमित जप व्यक्ति को ज्ञान, प्रतिष्ठा और अंततः आत्मिक कल्याण भी प्रदान करता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं।
- पीले या सफेद पुष्प अर्पित करें और “ॐ अन्नपूर्णायै नमः” मंत्र से ध्यान करें।
- फिर शुद्ध मन से पूरे श्रद्धा और भाव से यह स्तोत्र पाठ करें।
- अंत में माँ अन्नपूर्णा से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कभी अन्न का अभाव न हो।
जाप का समय (Jaap Time):
- प्रातःकाल (सुबह 5 से 7 बजे) – सर्वश्रेष्ठ समय, जब वातावरण शांत और सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है।
- सायंकाल (शाम 6 से 8 बजे) – यदि सुबह समय न मिले तो शाम को भी इसका पाठ किया जा सकता है।
- प्रतिदिन केवल 5–10 मिनट का समर्पित पाठ जीवन में स्थिरता और संतुलन लाता है।










































