श्री मयूरेश्वर स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करने वाला एक दिव्य स्तोत्र है, जिसकी रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी। “मयूरेश्वर” भगवान गणेश का ही एक नाम है, जो उन्हें उनके मयूर वाहन (मोर) के कारण मिला। यह स्तोत्र विघ्नहर्ता गणपति को समर्पित है और इसे श्रद्धा से पढ़ने पर साधक को सभी कार्यों में सफलता, जीवन में शांति, समृद्धि, और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र घर-परिवार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और समस्त जीवन क्षेत्रों में अनुकूलता लाने में समर्थ माना गया है।
श्री मयूरेश्वर स्तोत्र
।। श्रीगणेशाय नम: ।।
ब्रह्मोवाच –
1. पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 1 ।।
2. परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 2 ।।
3. सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 3 ।।
4. नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 4 ।।
5. इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 5 ।।
6. सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 6 ।।
7. पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 7 ।।
8. मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 8 ।।
9. सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 9 ।।
10. अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ।। 10 ।।
11. इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् ।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ।। 11 ।।
12. कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ।। 12 ।।
।। इति श्री मयूरेश्वर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
श्री मयूरेश्वर स्तोत्र – हिंदी अनुवाद सहित
।। श्रीगणेशाय नम: ।।
ब्रह्मा जी बोले –
1.
जो देवता पुरातन पुरुष हैं,
जो विभिन्न लीलाओं से प्रसन्नता प्रदान करते हैं,
जो माया से युक्त और विचार से परे हैं —
ऐसे मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
2.
जो परात्पर, चिदानंद स्वरूप और विकार रहित हैं,
जो हृदय में स्थित हैं,
जो गुणों से परे होकर भी गुणमय हैं —
उस मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
3.
जो इच्छा से सृजन, पालन और संहार करते हैं,
जो समस्त विघ्नों का नाश करने वाले देवता हैं —
उस मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
4.
जो अनेक असुरों का वध करने वाले हैं,
जो अनेक रूप धारण करते हैं,
जो अनेक आयुधों को धारण करते हैं —
उन्हें मैं भक्ति से नमन करता हूँ।
5.
जिनकी इंद्र आदि देवता दिन-रात स्तुति करते हैं,
जो साकार और निराकार दोनों रूपों में हैं —
उस मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
6.
जो सर्वशक्तिमान और सर्वरूपधारी विभु हैं,
जो समस्त विद्याओं के ज्ञाता और प्रचारक हैं —
ऐसे मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
7.
जो पार्वती के पुत्र हैं और शिव के आनंद को बढ़ाने वाले हैं,
जो भक्तों को सदा आनंद देने वाले हैं —
उन्हें मैं नमन करता हूँ।
8.
जो मुनियों द्वारा ध्यान किये जाते हैं,
जिनकी मुनिजन स्तुति करते हैं,
जो मुनियों की कामनाओं को पूर्ण करते हैं,
जो समष्टि और व्यष्टि दोनों रूपों में स्थित हैं —
ऐसे मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
9.
जो समस्त अज्ञान को नष्ट करने वाले हैं,
जो समस्त ज्ञान देने वाले और पवित्र हैं,
जो सत्यस्वरूप ज्ञानमय और सत्यरूप हैं —
मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
10.
जो अनेक कोटि ब्रह्मांडों के नायक हैं,
जो समस्त जगत के ईश्वर हैं,
जो अनंत ऐश्वर्य से युक्त विष्णु स्वरूप हैं —
ऐसे मयूरेश्वर को मैं नमन करता हूँ।
11.
यह स्तोत्र ब्रह्मस्वरूप है,
जो समस्त पापों का नाश करने वाला है,
जो मनुष्यों की समस्त कामनाएं पूर्ण करता है,
जो सभी संकटों को नष्ट करता है।
12.
जो कारागृह (जेल) में बंद लोगों की
सात दिन में मुक्ति करा सकता है,
जो शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश करता है,
जो भक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करता है —
ऐसा यह शुभ स्तोत्र है।
।। इस प्रकार श्री मयूरेश्वर स्तोत्र पूर्ण हुआ ।।
श्री मयूरेश्वर स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- समस्त प्रकार के विघ्न-बाधाओं का नाश करता है।
- रोग, दुःख और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।
- इच्छित कार्यों में सफलता मिलती है।
- घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- बच्चों के रोगों से रक्षा करता है।
- यह स्तोत्र “अंगारक चतुर्थी” को विशेष फलदायक होता है।
पाठ विधि (How to Recite):
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- चंदन, फूल, दूर्वा, और मोदक चढ़ाएं।
- शांत मन से श्री मयूरेश्वर स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र से गणेश जी की आरती करें।
पाठ का उत्तम समय (Best Time to Chant):
- प्रतिदिन प्रातः या संध्या काल में
- विशेष रूप से मंगलवार, बुधवार या चतुर्थी तिथि पर
- “अंगारक चतुर्थी” को पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।