‘प्रपन्न’ शब्द संस्कृत का है, जिसका अर्थ होता है – पूर्णतः समर्पित व्यक्ति। वैदिक और भक्ति परंपराओं में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से ईश्वर के चरणों में पूरी तरह समर्पित हो जाता है, वही सच्चा प्रपन्न कहलाता है। श्री रामानुजाचार्य जैसे महान आचार्यों ने भी इस ‘प्रपत्ति मार्ग’ को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन बताया है।
‘श्री प्रपन्न गीतम्’ को ‘पांडव गीता’ भी कहा जाता है। यह भक्ति से परिपूर्ण स्तुति-संग्रह है, जिसमें पांडवों सहित अनेक ऋषि-मुनियों व भक्तों के ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाया गया है। इसमें कुल 83 श्लोक हैं, और प्रत्येक श्लोक भक्त की अंतरात्मा से निकली ईश्वर के प्रति प्रार्थना की तरह प्रतीत होता है।
इस गीत में प्रह्लाद, नारद, पराशर, व्यास, अम्बरीष, शुकदेव, भीष्म, वशिष्ठ, विभीषण, यहाँ तक कि दुर्योधन जैसे पात्रों की भी स्तुतियाँ हैं, जिनमें उनके ईश्वर-प्रेम की झलक मिलती है, चाहे उनका स्वभाव जैसा भी रहा हो। यह गीत दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों की निष्ठा को ही मुख्य मानते हैं, उनके दोषों को नहीं।
श्री प्रपन्न गीतम्
(पंचमस्वर एकताल भजन, विहागराग में गाया जाता है)
परमसखे श्रीकृष्ण भयंकर भवार्णवेऽव्यय विनिमग्नम् ।
मामुद्धर ते श्रीकरलालित चरणकमल परिधौ लग्नम् ॥ 1 ॥
गुणमृगतृष्णा चलितधियं, विषयार्थ समुत्सुक दशकरणम् ।
परिभूतं दुर्मति नरनिकरैः, मतिभ्रमार्जित गुणशरणम् ॥ 2 ॥
सततं सभयमनो निवहन्तं, षड्रिपुभिर्निखिलेडयगुरुम् ।
कालिन्दी हृदयप्रिय विष्णोः, चरणकमल रजसो विधुरम् ॥ 3 ॥
मनः शोक मति मोह क्षतये, अभिकांक्षन्तमजमुखपदम् ।
मामुद्धर ते श्रीकरलालित चरणकमल परिधौ लग्नम् ॥ 4 ॥
कालिन्दी रुक्मिणी राधिकासत्या, जाम्बवती सुहृदम् ।
निजशरणागत भक्तजनेभ्यः, कृपया गत भवभय वरदम् ॥ 5 ॥
गोपीजन वल्लभ रासेश्वर, गोवर्धनधर मधुमथनम् ।
वन्देऽहं निखिलाधिपतिं त्वाम्, अतिशय सुन्दर गुणभवनम् ॥ 6 ॥
कृष्णलाल जी द्विजाधिपं हे, मनोऽनिशं त्वं भज यज्ञम् ।
मामुद्धर ते श्रीकरलालित चरणकमल परिधौ लग्नम् ॥ 7 ॥
॥ इति श्री प्रपन्न गीतम् सम्पूर्णम् ॥
श्री प्रपन्न गीतम् (हिंदी अनुवाद) (Sri Prapanna Geetam (Hindi translation))
(पंचम स्वर एकताल भजन, विहागराग में गाया जाता है)
हे परम सखा श्रीकृष्ण! मैं इस भयंकर संसार-सागर में डूबा हुआ हूँ, जो विनाशरहित है।
कृपा कर मुझे उद्धार दीजिए, क्योंकि मैं आपके सुंदर चरणकमलों की शरण में लगा हुआ हूँ। ॥ 1 ॥
मेरी बुद्धि गुणों की मृगतृष्णा से विचलित हो चुकी है, और इंद्रिय विषयों में व्याकुल दश इंद्रियाँ चंचल हो गई हैं।
मैं दुष्ट लोगों द्वारा अपमानित हूँ और भ्रमित बुद्धि से ही गुणों की शरण ग्रहण की है। ॥ 2 ॥
मैं निरंतर भयभीत मन से चल रहा हूँ, और छह शत्रुओं (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य) द्वारा पीड़ित हूँ।
हे कालिंदी तट प्रिय विष्णु! आपके चरणों की धूलि से मैं वंचित हूँ। ॥ 3 ॥
मेरे मन, शोक, भ्रम और मोह से पीड़ित हैं, और मैं अजमुख (ब्रह्मा) के पद की कामना करता हूँ।
कृपा कर मुझे उद्धार दीजिए, क्योंकि मैं आपके सुंदर चरणकमलों की शरण में लगा हूँ। ॥ 4 ॥
जो कालिंदी, रुक्मिणी, राधिका, सत्यभामा और जाम्बवती जैसे प्रियजनों से सुशोभित हैं।
जो अपने शरणागत भक्तों को कृपा से भवभय से मुक्त करते हैं। ॥ 5 ॥
जो गोपीजनों के प्रिय हैं, रासेश्वर हैं, गोवर्धन को धारण करनेवाले हैं, और मधु का वध करनेवाले हैं।
मैं उस सम्पूर्ण जगत के अधिपति, अत्यंत सुंदर और गुणों के भंडार आपके चरणों में वंदन करता हूँ। ॥ 6 ॥
हे कृष्णलालजी! आप द्विजों के स्वामी हैं। हे मन! तू निरंतर यज्ञस्वरूप उस प्रभु का भजन कर।
कृपा कर मुझे उद्धार दीजिए, क्योंकि मैं आपके सुंदर चरणकमलों की शरण में लगा हूँ। ॥ 7 ॥
॥ इस प्रकार श्री प्रपन्न गीत का हिंदी अनुवाद पूर्ण हुआ ॥
श्री प्रपन्न गीतम् के लाभ (Benefits of Sri Prapanna Geetam):
- यह गीत पूर्ण समर्पण का प्रतीक है, जिससे भगवान प्रसन्न होते हैं।
- इसके नियमित पाठ से पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
- यह मन को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
किन्हें इसका पाठ करना चाहिए (Who should read it)?
- जो व्यक्ति भगवान की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं।
- जो अपने जीवन में भक्ति, शांति और आध्यात्मिक उन्नति लाना चाहते हैं।
- यह गीत विशेष रूप से उन साधकों के लिए है, जो ‘शरणागति’ को अपनाकर प्रभु के चरणों में लीन होना चाहते हैं।