श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम् भगवान परशुराम जी के 108 पवित्र नामों से युक्त एक दिव्य स्तोत्र है, जिसमें उनके तेजस्वी, पराक्रमी, ब्रह्मतेजयुक्त और भक्तवत्सल स्वरूप का गुणगान किया गया है। यह स्तोत्र न केवल भगवान परशुराम के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन करता है, बल्कि उनके जीवन के महान कार्यों – जैसे क्षत्रियों के अहंकार का विनाश, माता-पिता की सेवा, गुरु भक्ति और धर्म की स्थापना – को भी उजागर करता है।
भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं, जिनका स्वरूप तपस्वी ब्राह्मण और पराक्रमी क्षत्रिय का अनूठा संगम है। वे न्याय, तप, शौर्य और धर्मरक्षा के प्रतीक हैं। उनके नामों का स्मरण कर साधक शक्ति, साहस, क्रोध नियंत्रण, पितृ भक्ति, ब्रह्मचर्य और आत्मबल की प्राप्ति कर सकते हैं।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से —
- शत्रु भय समाप्त होता है,
- न्यायप्रियता और आत्मबल की वृद्धि होती है,
- और व्यक्ति अपने जीवन में साहसी, नीतिवान और धर्मपरायण बनता है।
यह स्तोत्र विशेष रूप से अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती, या अन्य पुण्य तिथियों पर श्रद्धा पूर्वक जपा जाता है।
श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम्
रामो राजाटवीवह्नि रामचन्द्रप्रसादकः।
राजरक्तारुणस्नातो राजीवायतलोचनः॥ १ ॥
रैणुकेयो रुद्रशिष्यो रेणुकाच्छेदनो रयी।
रणधूतमहासेनो रुद्राणीधर्मपुत्रकः॥ २ ॥
राजत्परशुविच्छिन्नकार्तवीर्यार्जुनद्रुमः।
राताखिलरसो रक्तकृतपैतृकतर्पणः॥ ३ ॥
रत्नाकरकृतावासो रतीशकृतविस्मयः।
रागहीनो रागदूरो रक्षितब्रह्मचर्यकः॥ ४ ॥
राज्यमत्तक्षत्त्रबीज भर्जनाग्निप्रतापवान्।
राजद्भृगुकुलाम्बोधिचन्द्रमा रञ्जितद्विजः॥ ५ ॥
रक्तोपवीतो रक्ताक्षो रक्तलिप्तो रणोद्धतः।
रणत्कुठारो रविभूदण्डायित महाभुजः॥ ६ ॥
रमानाधधनुर्धारी रमापतिकलामयः।
रमालयमहावक्षा रमानुजलसन्मुखः॥ ७ ॥
रसैकमल्लो रसनाऽविषयोद्दण्ड पौरुषः।
रामनामश्रुतिस्रस्तक्षत्रियागर्भसञ्चयः॥ ८ ॥
रोषानलमयाकारो रेणुकापुनराननः।
राधेयचातकाम्भोदो रुद्धचापकलापगः॥ ९॥
राजीवचरणद्वन्द्वचिह्नपूतमहेन्द्रकः।
रामचन्द्रन्यस्ततेजा राजशब्दार्धनाशनः॥ १० ॥
राद्धदेवद्विजव्रातो रोहिताश्वाननार्चितः।
रोहिताश्वदुराधर्षो रोहिताश्वप्रपावनः॥ ११ ॥
रामनामप्रधानार्धो रत्नाकरगभीरधीः।
राजन्मौञ्जीसमाबद्ध सिंहमध्यो रविद्युतिः॥ १२ ॥
रजताद्रिगुरुस्थानो रुद्राणीप्रेमभाजनम्।
रुद्रभक्तो रौद्रमूर्ती रुद्राधिकपराक्रमः॥ १३ ॥
रविताराचिरस्थायी रक्तदेवर्षिभावनः।
रम्यो रम्यगुणो रक्तो रातभक्ताखिलेप्सितः॥ १४ ॥
रचितस्वर्णसोपानो रन्धिताशयवासनः।
रुद्धप्राणादिसञ्चारो राजद्ब्रह्मपदस्थितः॥ १५ ॥
रत्नसूनुमहाधीरो रसासुरशिखामणिः।
रक्तसिद्धी रम्यतपा राततीर्थाटनो रसी॥ १६ ॥
रचितभ्रातृहननो रक्षितभातृको रणी।
राजापहृततातेष्टिधेन्वाहर्ता रसाप्रभुः॥ १७ ॥
रक्षितब्राह्म्यसाम्राज्यो रौद्राणेयजयध्वजः।
राजकीर्तिमयच्छत्रो रोमहर्षणविक्रमः॥ १८ ॥
राजशौर्यरसाम्भोधिकुम्भसम्भूतिसायकः।
रात्रिन्दिवसमाजाग्र त्प्रतापग्रीष्मभास्करः॥ १९ ॥
राजबीजोदरक्षोणीपरित्यागी रसात्पतिः।
रसाभारहरो रस्यो राजीवजकृतक्षमः॥ २० ॥
रुद्रमेरुधनुर्भङ्ग कृद्धात्मा रौद्रभूषणः।
रामचन्द्रमुखज्योत्स्नामृतक्षालितहृन्मलः॥ २१ ॥
रामाभिन्नो रुद्रमयो रामरुद्रो भयात्मकः।
रामपूजितपादाब्जो रामविद्वेषिकैतवः॥ २२ ॥
रामानन्दो रामनामो रामो रामात्मनिर्भिदः।
रामप्रियो रामतृप्तो रामगो रामविश्रमः॥ २३ ॥
रामज्ञानकुठारात्त राजलोकमहातमाः।
रामात्ममुक्तिदो रामो रामदो राममङ्गलः॥ २४ ॥
मङ्गलं जामदग्न्याय कार्तवीर्यार्जुनच्छिदे।
मङ्गलं परमोदार सदा परशुराम ते॥ २५ ॥
मङ्गलं राजकालाय दुराधर्षाय मङ्गलं।
मङ्गलं महनीयाय जामदग्न्याय मङ्गलम्॥ २६ ॥
जमदग्नि तनूजाय जिताखिलमहीभृते।
जाज्वल्यमानायुधाय जामदग्न्याय मङ्गलम्॥ २७ ॥
॥ इति श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम्
हिंदी अर्थ सहित पाठ (Shri Parshuram Ashtottara-Shatnam Stotram
text with hindi meaning)
1. रामो राजाटवीवह्नि रामचन्द्रप्रसादकः।
राजरक्तारुणस्नातो राजीवायतलोचनः॥
अर्थ: वे श्रीराम हैं जो राजाओं के जंगल को जलाने वाले अग्नि स्वरूप हैं, श्रीरामचन्द्र के कृपा से पूजित हैं, राजाओं के रक्त से स्नान किए हुए हैं और कमल की तरह विशाल नेत्रों वाले हैं।
2. रैणुकेयो रुद्रशिष्यो रेणुकाच्छेदनो रयी।
रणधूतमहासेनो रुद्राणीधर्मपुत्रकः॥
अर्थ: वे रेणुका के पुत्र हैं, भगवान रुद्र के शिष्य हैं, जिन्होंने अपनी माता रेणुका का वध किया, युद्ध के द्वारा सेनाओं को पराजित किया, और रुद्राणी के धर्म से उत्पन्न पुत्र हैं।
3. राजत्परशुविच्छिन्नकार्तवीर्यार्जुनद्रुमः।
राताखिलरसो रक्तकृतपैतृकतर्पणः॥
अर्थ: जिन्होंने अपने परशु (कुल्हाड़ी) से कार्तवीर्य अर्जुन जैसे राजाओं को नष्ट किया, रक्त के द्वारा अपने पितरों का तर्पण किया।
4. रत्नाकरकृतावासो रतीशकृतविस्मयः।
रागहीनो रागदूरो रक्षितब्रह्मचर्यकः॥
अर्थ: समुद्र (रत्नाकर) के तट पर निवास करने वाले, कामदेव को भी चकित करने वाले, रागद्वेष से रहित, और ब्रह्मचर्य की रक्षा करने वाले हैं।
5. राज्यमत्तक्षत्त्रबीज भर्जनाग्निप्रतापवान्।
राजद्भृगुकुलाम्बोधिचन्द्रमा रञ्जितद्विजः॥
अर्थ: जो राजसत्ता के अभिमान से युक्त क्षत्रियों को नष्ट करने वाले अग्नि के समान हैं, जो भृगुकुल रूपी समुद्र के चंद्रमा हैं और ब्राह्मणों को प्रसन्न करने वाले हैं।
6. रक्तोपवीतो रक्ताक्षो रक्तलिप्तो रणोद्धतः।
रणत्कुठारो रविभूदण्डायित महाभुजः॥
अर्थ: जो रक्तवस्त्रधारी, रक्त नेत्रों वाले, रक्त में लिप्त हैं, युद्ध में उग्र हैं, रण में उनकी कुल्हाड़ी गूंजती है, और विशाल भुजाओं से सूर्य के समान प्रकाशमान हैं।
7. रमानाधधनुर्धारी रमापतिकलामयः।
रमालयमहावक्षा रमानुजलसन्मुखः॥
अर्थ: जो लक्ष्मीपति विष्णु के धनुष को धारण करते हैं, उनके अंश रूप हैं, विशाल वक्षस्थल वाले हैं और लक्ष्मणजी (राम के अनुज) के सम्मुख खड़े रहते हैं।
8. रसैकमल्लो रसनाऽविषयोद्दण्ड पौरुषः।
रामनामश्रुतिस्रस्तक्षत्रियागर्भसञ्चयः॥
अर्थ: जो वीरता रूपी रस के एकमात्र मल्ल हैं, जिनका बल शब्दों से वर्णन से परे है, और जिनके रामनाम स्मरण से क्षत्रियों की संतति नष्ट हो जाती है।
9. रोषानलमयाकारो रेणुकापुनराननः।
राधेयचातकाम्भोदो रुद्धचापकलापगः॥
अर्थ: जिनका स्वरूप क्रोधाग्नि के समान है, जिन्होंने अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित किया, कर्ण जैसे भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करने वाले हैं और धनुष चलाने में निष्णात हैं।
10. राजीवचरणद्वन्द्वचिह्नपूतमहेन्द्रकः।
रामचन्द्रन्यस्ततेजा राजशब्दार्धनाशनः॥
अर्थ: जिनके चरण कमल के समान हैं और महेन्द्र (इन्द्र) भी जिनकी चरण वंदना से पावन होते हैं, जिन्होंने रामचन्द्र को अपनी तेज प्रदान की, और ‘राजा’ शब्द के अहंकार को नष्ट कर दिया।
11. राद्धदेवद्विजव्रातो रोहिताश्वाननार्चितः।
रोहिताश्वदुराधर्षो रोहिताश्वप्रपावनः॥
अर्थ: वे जो पूज्य देवताओं और ब्राह्मणों के समूहों से पूजित हैं, जिनकी पूजा रोहिताश्व (उनके पुत्र) ने की, जिन्हें रोहिताश्व भी परास्त नहीं कर सके, और जो रोहिताश्व को पवित्र करने वाले हैं।
12. रामनामप्रधानार्धो रत्नाकरगभीरधीः।
राजन्मौञ्जीसमाबद्ध सिंहमध्यो रविद्युतिः॥
अर्थ: जिनका अर्धभाग राम नाम से ओतप्रोत है, जिनकी बुद्धि समुद्र की गहराई जैसी है, जिन्होंने ब्रह्मचारी रूप से मौञ्जी धारण की है, जो सिंहों के मध्य सिंह हैं और सूर्य के समान चमकते हैं।
13. रजताद्रिगुरुस्थानो रुद्राणीप्रेमभाजनम्।
रुद्रभक्तो रौद्रमूर्ती रुद्राधिकपराक्रमः॥
अर्थ: जो रजत पर्वत (हिमालय) में स्थित गुरु के समान हैं, रुद्राणी (पार्वती) के प्रेम पात्र हैं, भगवान रुद्र के भक्त हैं, रौद्र स्वरूप हैं और रुद्र से भी अधिक पराक्रमी हैं।
14. रविताराचिरस्थायी रक्तदेवर्षिभावनः।
रम्यो रम्यगुणो रक्तो रातभक्ताखिलेप्सितः॥
अर्थ: जो सूर्य और तारों की भांति सदा विद्यमान रहते हैं, देवताओं और ऋषियों के पूजनीय हैं, मन को आनंद देने वाले हैं, श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं और भक्तों की हर इच्छा पूर्ण करने वाले हैं।
15. रचितस्वर्णसोपानो रन्धिताशयवासनः।
रुद्धप्राणादिसञ्चारो राजद्ब्रह्मपदस्थितः॥
अर्थ: जिन्होंने स्वर्ण की सीढ़ियाँ बनाई हैं, जिनकी इच्छाएँ और वासनाएँ समाप्त हो चुकी हैं, जिनकी प्राण ऊर्जा स्थिर है, और जो ब्रह्मपद में स्थित हैं।
16. रत्नसूनुमहाधीरो रसासुरशिखामणिः।
रक्तसिद्धी रम्यतपा राततीर्थाटनो रसी॥
अर्थ: जो रत्न के समान पुत्र हैं, अत्यंत धैर्यवान हैं, रसासुरों के बीच श्रेष्ठ हैं, जिनकी सिद्धियाँ रक्त के समान शक्तिशाली हैं, जो सुंदर तपस्वी हैं और तीर्थों में रमण करने वाले हैं।
17. रचितभ्रातृहननो रक्षितभातृको रणी।
राजापहृततातेष्टिधेन्वाहर्ता रसाप्रभुः॥
अर्थ: जिन्होंने अपने भाई का वध किया था, एक अन्य भाई की रक्षा की थी, योद्धा हैं, जिन्होंने पितृयज्ञ के लिए ले जाई गई गाय को वापस पाया, और रस का स्वामी हैं।
18. रक्षितब्राह्म्यसाम्राज्यो रौद्राणेयजयध्वजः।
राजकीर्तिमयच्छत्रो रोमहर्षणविक्रमः॥
अर्थ: जिन्होंने ब्राह्मणों के राज्य की रक्षा की, जो रौद्र रूप में विजय ध्वज हैं, जिनकी कीर्ति छत्र के समान छाई हुई है, और जिनके पराक्रम से रोमांच होता है।
19. राजशौर्यरसाम्भोधिकुम्भसम्भूतिसायकः।
रात्रिन्दिवसमाजाग्र त्प्रतापग्रीष्मभास्करः॥
अर्थ: जो राजाओं के शौर्य रूपी समुद्र से उत्पन्न बाणों को नष्ट करते हैं, जो दिन-रात जागरूक रहते हैं, और जिनका प्रताप ग्रीष्म के सूर्य की तरह प्रखर है।
20. राजबीजोदरक्षोणीपरित्यागी रसात्पतिः।
रसाभारहरो रस्यो राजीवजकृतक्षमः॥
अर्थ: जिन्होंने क्षत्रिय वंश रूपी बीज को पृथ्वी से समाप्त कर दिया, रसों के स्वामी हैं, रस का भार हरने वाले हैं, और कमलवत कोमल क्षमाशील हैं।
21. रुद्रमेरुधनुर्भङ्ग कृद्धात्मा रौद्रभूषणः।
रामचन्द्रमुखज्योत्स्नामृतक्षालितहृन्मलः॥
अर्थ: जिन्होंने रुद्र समान क्रोधित होकर मेरु पर्वत समान बलशाली धनुष को तोड़ा, जो रौद्र रूप के आभूषण हैं, और जिनका हृदय रामचंद्र के मुख की चंद्रिका रूपी अमृत से शुद्ध है।
22. रामाभिन्नो रुद्रमयो रामरुद्रो भयात्मकः।
रामपूजितपादाब्जो रामविद्वेषिकैतवः॥
अर्थ: जो श्रीराम के अभिन्न हैं, रुद्रस्वरूप हैं, श्रीराम और रुद्र दोनों के भय का कारण हैं, जिनके चरणकमल श्रीराम ने पूजे हैं, और जो रामविरोधियों के छल को नष्ट करते हैं।
23. रामानन्दो रामनामो रामो रामात्मनिर्भिदः।
रामप्रियो रामतृप्तो रामगो रामविश्रमः॥
अर्थ: जो राम के आनंद स्वरूप हैं, राम नाम के ही रूप हैं, स्वंय श्रीराम हैं, राम के आत्मतत्त्व से एक हैं, राम के प्रिय हैं, राम में ही संतुष्ट रहते हैं, राम के संग चलने वाले हैं और राम में ही विश्राम करने वाले हैं।
24. रामज्ञानकुठारात्त राजलोकमहातमाः।
रामात्ममुक्तिदो रामो रामदो राममङ्गलः॥
अर्थ: जो रामज्ञान रूपी कुल्हाड़ी से अज्ञान का नाश करते हैं, जो राजलोक के अंधकार को दूर करते हैं, जो आत्मा को मोक्ष देने वाले हैं, जो स्वयं श्रीराम हैं, राम को देने वाले हैं और राम के समान मंगलकारी हैं।
25. मङ्गलं जामदग्न्याय कार्तवीर्यार्जुनच्छिदे।
मङ्गलं परमोदार सदा परशुराम ते॥
अर्थ: हे जामदग्न्य (परशुराम), जो कार्तवीर्य अर्जुन का वध करने वाले हैं, आपको सदा शुभ और मंगल हो, आप परोपकारी और उदार हैं।
26. मङ्गलं राजकालाय दुराधर्षाय मङ्गलं।
मङ्गलं महनीयाय जामदग्न्याय मङ्गलम्॥
अर्थ: हे राजाओं को दंड देने वाले परशुराम, हे अप्रतिहत पराक्रमी, आपको मंगल हो। हे महान और पूज्य जामदग्न्य, आपको बारम्बार शुभकामनाएँ।
27. जमदग्नि तनूजाय जिताखिलमहीभृते।
जाज्वल्यमानायुधाय जामदग्न्याय मङ्गलम्॥
अर्थ: हे जमदग्नि के पुत्र, जिन्होंने समस्त पृथ्वी के क्षत्रियों को पराजित किया, जिनका अस्त्र-शस्त्र प्रज्वलित रहता है, हे परशुराम जी — आपको बार-बार प्रणाम और मंगल हो।
॥ इति श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits)
- धैर्य, साहस और आत्मबल में वृद्धि:
भगवान परशुराम तप और पराक्रम के प्रतीक हैं। उनका यह स्तोत्र जपने से मनोबल मजबूत होता है। - क्रोध और आवेग पर नियंत्रण:
यह स्तोत्र साधक को शांति, विवेक और संतुलित सोच प्रदान करता है। - शत्रु बाधा से रक्षा:
शत्रु भय, कोर्ट-कचहरी, विवाद या अन्य मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। - पितृभक्ति और गुरु सेवा का भाव जागृत होता है:
परशुराम जी की भक्ति से परिवार के प्रति कर्तव्यों का भाव सशक्त होता है। - कर्म और निर्णयों में स्पष्टता:
ये 108 नाम जीवन में सही दिशा, निर्णय और दृढ़ निष्ठा की प्रेरणा देते हैं। - भूमि विवाद और संपत्ति रक्षा में सहायक:
भूमि देवता से जुड़े भगवान परशुराम का स्मरण भूमि संबंधित समस्याओं के समाधान में सहायक होता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान और समय:
शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान चुनें। पूजन कक्ष, मंदिर या ध्यान स्थल उपयुक्त होता है। - स्नान और स्वच्छ वस्त्र:
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पुरुष सफेद या पीला वस्त्र, महिलाएँ लाल या पीला वस्त्र पहन सकती हैं। - पूजन सामग्री:
- दीपक (घी या तिल के तेल का)
- धूप, पुष्प, चंदन, तुलसी पत्र
- भगवान परशुराम की मूर्ति/चित्र/पारंपरिक कुल्हाड़ी (परशु) की पूजा
- जल से भरा पात्र, नैवेद्य (फल या मिश्री)
- आरंभिक प्रार्थना:
गणेश जी, गुरु, एवं अपने इष्टदेव को प्रणाम करें। फिर परशुराम जी का ध्यान करें। - 108 नामों का उच्चारण:
स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें। प्रत्येक नाम का उच्चारण स्पष्ट और श्रद्धायुक्त हो। - समापन:
अंत में परशुराम जी की आरती करें, और उनकी कृपा हेतु प्रार्थना करें। - संकल्प और आशीर्वाद:
जो भी उद्देश्य लेकर पाठ कर रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए फल की कामना करें।
जप का उपयुक्त समय (Best Jaap Time)
- प्रातःकाल (सुबह 4:30 बजे – 7:00 बजे):
ब्रह्ममुहूर्त में पाठ करने से उत्तम फल मिलता है। - अक्षय तृतीया या परशुराम जयंती पर:
विशेष लाभकारी समय होता है। इस दिन यह पाठ अवश्य करना चाहिए। - गुरुवार एवं रविवार:
अध्यात्म व पराक्रम से जुड़े इन दिनों पर जप विशेष फलदायी होता है। - कठिन निर्णय लेने से पहले:
जीवन में कोई कठिन निर्णय, संघर्ष या मानसिक द्वंद्व हो तो यह स्तोत्र अवश्य पढ़ें।