भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश — त्रिदेवों के संयुक्त अवतार के रूप में पूजा जाता है। “दत्तात्रेय” नाम दो शब्दों से मिलकर बना है — “दत्त” अर्थात् दिया हुआ और “आत्रेय” अर्थात् महर्षि अत्रि के पुत्र। भगवान दत्तात्रेय का जन्म महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया के तप से हुआ था। उनके तीन मुख त्रिदेवों की एकता के प्रतीक हैं, और उनका स्वरूप संत, योगी और ज्ञानी पुरुषों की पराकाष्ठा माना जाता है।
विशेषता:
भगवान दत्तात्रेय को ‘गुरुओं के गुरु’ कहा जाता है। वे सभी धर्मों, पंथों और साधनाओं से परे हैं। जीवन में जो भी बाधाएँ आती हैं — विशेषकर पितृ दोष, विवाह में विलंब, संतान-संबंधी समस्याएं या पारिवारिक कलह — उनके निवारण के लिए दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ अचूक उपाय है।
पौराणिक कथा:
कहा जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने देवी अनुसूया की पवित्रता की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने उनसे बिना वस्त्र भोजन परोसने की मांग की। अनुसूया ने अपनी तपस्या से उन्हें शिशु बना दिया और तीनों को मिलाकर एक रूप में लिया — वही रूप भगवान दत्तात्रेय का था।
पूजन परंपरा:
दत्तात्रेय भगवान की पूजा विशेष रूप से महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में प्रचलित है। उन्हें चार कुत्तों (चार वेदों के प्रतीक) और एक गौमाता (धरती माता) के साथ दर्शाया जाता है। उनका स्मरण गुरुवार, पूर्णिमा और विशेष रूप से दत्तात्रेय जयंती पर करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र
Shri Dattatreya Stotra
जटाधरं पाण्डुराङ्गं शूलहस्तं कृपानिधिम्,
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥
अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारदऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः । श्रीदत्तपरमात्मा देवता ।
श्रीदत्तप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहार हेतवे,
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च,
दिगम्बरदयामूर्ते दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च,
वेदशास्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
र्हस्वदीर्घकृशस्थूल-नामगोत्र-विवर्जित,
पञ्चभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
यज्ञभोक्ते च यज्ञाय यज्ञरूपधराय च,
यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
आदौ ब्रह्मा मध्य विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः,
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे,
जितेन्द्रियजितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपध्राय च,
सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
जम्बुद्वीपमहाक्षेत्रमातापुरनिवासिने,
जयमानसतां देव दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे,
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले,
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
अवधूतसदानन्दपरब्रह्मस्वरूपिणे,
विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
सत्यंरूपसदाचारसत्यधर्मपरायण,
सत्याश्रयपरोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
शूलहस्तगदापाणे वनमालासुकन्धर,
यज्ञसूत्रधरब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च,
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
दत्त विद्याढ्यलक्ष्मीश दत्त स्वात्मस्वरूपिणे,
गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम्,
सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥
इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम्,
दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम् ॥
॥ इति श्री दत्तात्रेय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Shri Dattatreya Stotra in Hindi (अनुवाद सहित)
जटाधारी, उजले रंग वाले, हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले,
दया के सागर, समस्त रोगों का नाश करने वाले भगवान दत्तात्रेय को मैं नमस्कार करता हूँ॥
इस दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्र के ऋषि भगवान नारद हैं,
छंद अनुष्टुप है, देवता परमात्मा श्री दत्त हैं,
और यह जप श्री दत्त की प्रसन्नता हेतु किया जाता है॥
हे जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण रूप में स्थित भगवान!
जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त करने वाले दत्तात्रेय, आपको बारंबार नमस्कार॥
जो जरा (बुढ़ापा) और जन्म का नाश करते हैं, शरीर को शुद्ध करने वाले हैं,
दिगम्बर और करुणा की मूर्ति हैं — ऐसे दत्तात्रेय को नमस्कार॥
जिनका शरीर कपूर के समान उज्ज्वल है, जो ब्रह्मस्वरूप हैं,
वेदों और शास्त्रों के ज्ञाता हैं — उन दत्तात्रेय को नमस्कार॥
जो लघु, दीर्घ, कृश, स्थूल, नाम और गोत्र से रहित हैं,
पंचभूतों में ही प्रकाशित हैं — उन दत्तात्रेय को नमस्कार॥
यज्ञ के भोक्ता, यज्ञस्वरूप और यज्ञप्रिय सिद्ध पुरुष हैं,
ऐसे भगवान दत्तात्रेय को मैं नमस्कार करता हूँ॥
जो ब्रह्मा के रूप में सृजन, विष्णु के रूप में पालन और
शिव के रूप में संहार करते हैं — त्रिमूर्ति रूप दत्तात्रेय को नमस्कार॥
जो भोग के स्थान, भोगस्वरूप और योग के लिए योग्य हैं,
जिन्होंने इंद्रियों को जीत लिया है — उन्हें नमस्कार॥
दिगम्बर, दिव्य रूप धारक, सदा प्रकट परमब्रह्म —
ऐसे दत्तात्रेय को मेरा नमस्कार॥
जो जम्बूद्वीप के पुण्य क्षेत्र में मातापुर नगर में निवास करते हैं,
सत्पुरुषों के हृदय में जयकार करने वाले देव — उन्हें नमस्कार॥
जो ग्रामों और घरों में भिक्षा हेतु भ्रमण करते हैं,
जिनके हाथ में स्वर्ण पात्र है और विविध स्वाद वाली भिक्षा प्राप्त होती है — उन्हें नमस्कार॥
जिनकी मुद्रा ब्रह्मज्ञान से पूर्ण है, वस्त्र आकाश तत्व है,
और जो घनबुद्धि के अधिष्ठाता हैं — उन्हें नमस्कार॥
जो अवधूत, सदा आनन्द में लीन, परब्रह्मस्वरूप हैं,
जो शरीर रहते हुए भी देह से परे हैं — उन्हें नमस्कार॥
जो सत्यरूप, सदाचारयुक्त, धर्मपरायण और
सत्य में स्थित हैं — ऐसे दत्तात्रेय को नमस्कार॥
जिनके हाथ में शूल और गदा है, गले में वनमाला है,
जो यज्ञसूत्र धारण करने वाले ब्रह्मवेत्ता हैं — उन्हें नमस्कार॥
जो क्षर और अक्षर स्वरूप हैं, परात्पर हैं,
मुक्ति और भक्ति के श्रेष्ठ स्तोत्र के अधिपति हैं — उन्हें नमस्कार॥
जो ज्ञान, वैभव और लक्ष्मी के स्वामी हैं, आत्मस्वरूप हैं,
गुण और निर्गुण दोनों रूपों में स्थित हैं — उन्हें नमस्कार॥
यह स्तोत्र शत्रुओं का नाश करने वाला, ज्ञान और विज्ञान देने वाला है,
सभी पापों का नाश करता है — ऐसे दत्तात्रेय को नमस्कार॥
यह महान और दिव्य स्तोत्र दत्तात्रेय के साक्षात्कार को देने वाला है,
यह दत्तात्रेय की कृपा से नारद मुनि द्वारा रचित है॥
॥ इस प्रकार श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का हिंदी अनुवाद पूर्ण हुआ ॥
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Dattatreya Stotra):
- यह स्तोत्र पितृ दोष को शांत करने वाला एवं पूर्वजों के कष्टों को दूर करने वाला है।
- स्तोत्र का नित्य पाठ रोग, विवाह में बाधा, संतान न होना आदि समस्याओं को दूर करता है।
- यह जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और आत्मिक उन्नति प्रदान करता है।
- भगवान दत्तात्रेय की कृपा से साधक को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- पितरों की प्रसन्नता से कुल में कल्याण होता है और परिवार में सुखद माहौल बना रहता है।
पाठ विधि (Method):
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- श्री दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
- चंदन, फूल, अक्षत अर्पण करें।
- श्रद्धा से श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में प्रार्थना करें: “हे प्रभु, मेरे सभी ज्ञात-अज्ञात दोषों को क्षमा करें और कृपा करें।”
जप का उपयुक्त समय (Suitable time for chanting):
- विशेष दिन: गुरुवार, पूर्णिमा, या दत्तात्रेय जयंती पर।
- समय: प्रातः काल सूर्योदय के समय सर्वोत्तम है।
- गणना: नित्य कम से कम 11, 21 या 108 बार स्तोत्र का पाठ करें।