भारतीय संस्कृति में विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि आत्मा के स्तर पर एक गहरा और पवित्र बंधन है। हिंदू धर्म में इसे संस्कार माना गया है — जहाँ दूल्हा और दुल्हन सात वचनों के साथ जीवनभर की जिम्मेदारियों, कर्तव्यों और प्रेम की शपथ लेते हैं। इसी संदर्भ में षट्पदी — यानि छह पंक्तियों से युक्त यह स्तोत्र — न केवल एक वैदिक प्रार्थना है, बल्कि आत्म-समर्पण, वैराग्य, भक्ति और मोक्ष का भी सुंदर मार्ग है।
इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी, और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। इसमें मन को वश में करने, संसार के मोह से उबारने और प्रभु चरणों में शरण लेने की प्रार्थना की गई है। भले ही यह वैराग्य की ओर ले जाता हो, लेकिन इसमें पति-पत्नी के बीच के भावनात्मक और आत्मिक संबंध की झलक भी मिलती है।
षट्पदी स्तोत्र
Shatpadi Stotra
अविनयमपनय विष्णो, दमय मनः शमय विषयमृगतृष्णाम्।
भूतदयां विस्तारय, तारय संसारसागरतः ॥१॥
दिव्यधुनीमकरन्दे, परिमलपरिभोगसच्चिदानन्दे।
श्रीपतिपदारविन्दे, भवभयखेदच्छिदे वन्दे ॥२॥
सत्यपि भेदापगमे, नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वम्।
सामुद्रो हि तरंगः, क्वचन समुद्रो न तारंगः ॥३॥
उद्धृतनग नगभिदनुज, दनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्टे।
दृष्टे भवति प्रभवति, न भवति किं भवतिरस्कारः ॥४॥
मत्स्यादिभिरवतारैरवतारवतावता सदा वसुधाम्।
परमेश्वर परिपाल्यो, भवता भवतापभीतोऽहम् ॥५॥
दामोदर गुणमन्दिर, सुंदरवदनारविन्द गोविन्द।
भवजलधिमथनमंदर, परमं दरमपनय त्वं मे ॥६॥
नारायण करूणामय, शरणं करवाणि तावकौ चरणौ।
इति षट्पदी मदीये, वदनसरोजे सदा वसतु ॥७॥
।। इति षट्पदी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
षट्पदी स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Shatpadi Stotra in Hindi Meaning
हे विष्णु! मेरी अविनयता (अभिमान व उद्दंडता) को दूर करो, मन को वश में करो और विषयों की मृगतृष्णा को शांत करो।
सभी प्राणियों पर दया का विस्तार करो और मुझे इस संसार रूपी सागर से तार दो। ॥१॥
जो दिव्य गंगा के समान अमृत रूपी आनंद में डूबे हैं,
उन श्रीहरि के चरण कमलों में, जो भयानक भय और दुखों को मिटाने वाले हैं – मैं उनका वंदन करता हूँ। ॥२॥
हे नाथ! भले ही भेदभाव का अंत हो चुका है, फिर भी मैं तुम्हारा नहीं हूँ और तुम मेरे नहीं हो — ऐसा मत मानो।
जैसे समुद्र की लहरें समुद्र से अलग नहीं होतीं, वैसे ही मैं तुमसे भिन्न नहीं हूँ। ॥३॥
जो पर्वत को उठाने वाले हैं, जो पर्वत के शत्रु (शंकर) के भाई हैं,
जो दानवों के शत्रु और चंद्रमा की तरह शीतल दृष्टि वाले हैं —
जिन्हें देखने मात्र से सब सिद्ध हो जाता है, फिर उनका तिरस्कार कैसे संभव है? ॥४॥
हे प्रभो! मत्स्य आदि अनेक अवतारों द्वारा, तुमने सदा इस पृथ्वी की रक्षा की है।
हे परमेश्वर! मैं तुम्हारा संरक्षण चाहता हूँ, क्योंकि मैं संसार के ताप से डरा हुआ हूँ। ॥५॥
हे दामोदर! गुणों के मंदिर, सुंदर कमल जैसे मुख वाले गोविंद!
इस भवसागर को मथ डालने वाले मंदर पर्वत जैसे, मेरी महान पीड़ा को दूर करो। ॥६॥
हे नारायण! करुणामय प्रभु! मैं आपके चरणों को अपनी शरण बनाता हूँ।
यह षट्पदी (छह पंक्तियों का यह स्तोत्र) मेरे मुखकमल में सदा निवास करे। ॥७॥
।। इति षट्पदी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
षट्पदी स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shatapadi Stotra):
- वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और प्रेम बढ़ता है।
- गृहस्थ जीवन में आने वाले मनमुटाव, क्लेश और तनाव कम होते हैं।
- मन, वाणी और कर्म में शुद्धता आती है, जिससे पारिवारिक वातावरण पवित्र बनता है।
- भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में स्थिरता, संतुलन और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
- यह स्तोत्र मोक्ष की दिशा में भी प्रेरित करता है।
कौन करें इस स्तोत्र का पाठ (Who should recite this hymn):
- वे विवाहित दंपति जिनके संबंधों में तनाव या दूरी हो।
- जिनका विवाहिक जीवन प्रेम और समझ की कमी से जूझ रहा हो।
- वे जो भक्ति मार्ग पर हैं और संसार से ऊपर उठकर प्रभु की शरण चाहते हैं।
- यह स्तोत्र भृगुवार (शुक्रवार) अथवा प्रातःकाल में पाठ हेतु विशेष रूप से शुभ माना गया है।