“श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम्” भगवान श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का भावपूर्ण और प्रभावशाली स्तुति-संग्रह है, जिसमें उनके बाल्यकाल से लेकर ब्रह्मलीन होने तक की दिव्य कथाएँ संक्षेप में वर्णित हैं। यह स्तोत्र श्रीकृष्ण के अवतरण, राक्षसों के संहार, गोपियों संग रासलीला, कंस वध, नरकासुर मर्दन, द्वारका की स्थापना, और महाभारत युद्ध में उनकी भूमिका जैसे अनेक प्रेरणादायक प्रसंगों का स्मरण कराता है।
इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महिमा और उनके द्वारा किए गए कार्यों की अलौकिकता को सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक भावना को जाग्रत करता है, बल्कि श्रद्धालु की भक्ति को भी गहराई प्रदान करता है।
जो भक्त इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जीवन में आने वाले संकट समाप्त होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता, करुणा और लीलामय स्वरूप को हृदय में स्थान देने का श्रेष्ठ माध्यम है।
श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम् (Shri Krishna-Leela Varnana Stotram)
भूपालच्छदि दुष्टदैत्यनिवहैर्भारातुरां दुःखितां,
भूमिं दृष्टवता सरोरुहभुवा संप्रार्थितः सादरं।
देवो भक्त-दयानिधिर्यदुकुलं शेषेण साकं मुदा,
देवक्या: सुकृताङ्कुरः सुरभयन् कृष्णोऽनिशं पातु वः॥1॥
जातः कंसभयाद् व्रजं गमितवान् पित्रा शिशु: शौरिणा,
साकं पूतनया तथैव शकटं वात्यासुरं चार्दयन्।
मात्रे विश्वमिदं प्रदर्श्य वदने निर्मूलयन्नर्जुनौ,
निघ्नन् वत्सबकाघनामदितिजान् कृष्णोऽनिशम् पातु वः॥2॥
ब्रह्माणं भ्रमयंश्च धेनुकरिपुर्निर्मर्दयन् काळियं,
पीत्वाग्निं स्वजनौघघस्मरशिखम् निघ्नन् प्रलम्बासुरम्।
गोपीनां वसनं हरन्द्विजकुलस्त्रीणां च मुक्तिप्रदो,
देवेन्द्रं दमयन्करेण गिरिधृक् कृष्णोऽनिशं पातु वः॥3॥
इन्द्रेणाशुकृताभिषेक उदधेर्नन्दं तथा पालयन्,
क्रीडन् गोपनितम्बिनीभिरहितो नन्दस्य मुक्तिं दिशन्।
गोपी-हारक–शङ्खचूड मदहृन्निघ्नन्नरिष्टासुरं,
केशिव्योमनिशाचरौ च बलिनौ कृष्णोऽनिशम् पातु वः॥4॥
अक्रूराय निदर्शयन्निजवपुर्निर्णेजकं चूर्णयन्,
कुब्जां सुन्दर-रूपिणीं विरचयन् कोदण्डमाखण्डयन्।
मत्तेभम् विनिपात्य दन्तयुगलीं उत्पाटयन्मुष्टिभिः,
चाणूरं सहमुष्टिकं विदलयन्कृष्णोऽनिशं पातु वः॥5॥
नीत्वा मल्लमहासुरान् यमपुरीं निर्वर्ण्य दुर्वादिनं,
कंसं मञ्चगतं निपात्य तरसा पञ्चत्वमापादयन्।
तातं मातरमुग्रसेनमचिरान्निर्मोचयन्बन्धनात्,
राज्यं तस्य दिशन्नुपासितगुरुः कृष्णोऽनिशं पातु वः॥6॥
हत्वा पञ्चजनं मृतं च गुरवे दत्वा सुतं मागधं,
जित्वा तौ च सृगालकालयवनौ हत्वा च निर्मोक्षयन्।
पातालं मुचुकुन्दमाशु महिषीरष्टौ स्पृशन् पाणिना,
तं हंसं डिभकं निपात्य मुदितः कृष्णोऽनिशं पातु वः॥7॥
घण्टाकर्णगतिं वितीर्य कलधौताद्रौ गिरीशाद्वरं,
विन्दन्नङ्गजमात्मजं च जनयन्निष्प्राणयन्पौण्ड्रकम्।
दग्द्ध्वा काशिपुरीं स्यमन्तकमणिं कीर्त्या स्वयं भूषयन्,
कुर्वाणः शतधन्वनोऽपि निधनं कृष्णोऽनिशं पातु वः॥8॥
भिन्दानश्च मुरासुरं च नरकं धात्रीं नयन्स्वस्तरुं,
षट्साहस्रयुतायुतं परिणयन्नुत्पादयन्नात्मजान्।
पार्थेनैव च खण्डवाख्यविपिनं निर्द्दाहयन्मोचयन्,
भूपान्बन्धनतश्च चेदिपरिपुः कृष्णोऽनिशं पातु वः॥9॥
कौन्तेयेन च कारयन्क्रतुवरं सौभं च निघ्नन्नृगं,
खातादाशु विमोचयंश्च द्विविदं निष्पीडयन्वानरम्।
छित्वा बाणभुजान् मृधे च गिरिशं जित्वा गणैरन्वितं,
दत्वा वत्कलमन्तकाय मुदितः कृष्णोऽनिशं पातु वः॥10॥
कौन्तेयैरुपसंहरन्वसुमतीभारं कुचेलोदयं,
कुर्वाणोपि च रुग्मिणं विदलयन्संतोषयन्नारदम्।
विप्रायाशु समर्पयन्मृतसुतान्कालिङ्गकं कालयन्,
मातुः षट्तनयान्प्रदर्श्य सुखयन् कृष्णोऽनिशं पातु वः॥11॥
अद्धा बुद्धिमदुद्धवाय विमलज्ञानं मुदैवादिशन्,
नानानाकिनिकायचारणगणैरुद्बोधितात्मा स्वयम्।
मायां मोहमयीं विधाय विततां उन्मूलयन्स्वं कुलं,
देहं चापि पयस्समुद्रवसतिः कृष्णोऽनिशं पातु वः॥12॥
कृष्णाङ्घ्रिद्वयभक्तिमात्रविगळत्सारस्वतश्लाघकैः,
श्लोकैर्द्वादशभिः समस्तचरितं संक्षिप्य सम्पादितम्।
स्तोत्रं कृष्णकृतावतारविषयं सम्यक्पठन् मानुषो,
विन्दन्कीर्तिमरोगतां च कवितां विष्णोः पदं यास्यति॥12॥
॥ इति श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम् हिंदी अनुवाद
जो पृथ्वी दुष्ट राजाओं और दैत्यों से पीड़ित हो गई थी,
उस भूमि को देखकर कमलनयन ब्रह्मा ने विनम्रता से प्रार्थना की।
तब भक्तों पर दया रखने वाले भगवान विष्णु ने हर्षपूर्वक
शेषनाग के साथ यदुकुल में अवतार लिया — वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥1॥
कंस के भय से, शिशु कृष्ण को उनके पिता वसुदेव ने
व्रज में नन्द के यहाँ पहुँचाया।
वहाँ उन्होंने पूतना, शकट, और वायु-असुर को नष्ट किया।
माँ को अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड दिखाया और अर्जुन व अन्य दैत्यों का संहार किया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥2॥
ब्रह्मा को भ्रमित किया, धेनुकासुर को मारा,
कालिया नाग को दमन किया,
अग्नि को पीकर अपने प्रियजनों को सुरक्षित किया,
प्रलंबासुर का भी अंत किया।
गोपियों के वस्त्र हरण कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया,
और देवराज इन्द्र के अहंकार का दमन कर गोवर्धन पर्वत उठाया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥3॥
इन्द्र के अभिषेक से नन्द बाबा की रक्षा की,
गोपियों के साथ विहार किया और नन्द को मोक्ष दिया।
शंखचूड़, अरिष्टासुर, केशी और व्योमासुर जैसे राक्षसों का वध किया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥4॥
अक्रूर को अपना दिव्य रूप दिखाया,
कुब्जा को सुंदरता प्रदान की, कोदंड (धनुष) तोड़ा।
मत्त हाथी को पछाड़ा, दांत उखाड़े,
चाणूर और मुष्टिक राक्षसों का अंत किया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥5॥
महाबली मल्लों को यमलोक भेजा,
कंस का वध मंच पर कर दिया।
अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया,
उग्रसेन को राजसिंहासन सौंपा और गुरु की सेवा की —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥6॥
पंचजन नामक असुर का वध किया,
उसके शंख को गुरु को समर्पित किया।
कालयवन और जरासंध को हराया,
पाताल में मुचुकुंद को दर्शन दिए,
आठ रानियों को स्पर्श किया और दैत्य हंस और डिभक का वध किया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥7॥
घण्टाकर्ण राक्षस को पराजित किया,
शिवजी से वर प्राप्त किए,
कामदेव को पुत्र रूप में पाया,
पौंड्रक का वध किया और काशी नगरी को जलाया।
स्यामंतक मणि को प्राप्त कर कीर्ति से अलंकृत हुए,
शतधन्वा को मारा —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥8॥
मुर और नरकासुर जैसे राक्षसों को मारा,
अपनी 16,000 रानियों से संतान उत्पन्न की।
अर्जुन के साथ खांडव वन को जलाया,
राजाओं को बंधन से मुक्त किया —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥9॥
अर्जुन से महान यज्ञ करवाया,
सौभ नामक राक्षस और नरकासुर को हराया।
द्विविद नामक वानर को कुचला,
बाणासुर के भुजाओं को काटा,
शिवजी को भी विजय किया,
और यम को वस्त्र दान दिए —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥10॥
पांडवों के साथ मिलकर पृथ्वी का भार उतारा,
सुदामा को सम्मानित किया,
रुक्मिणी को विवाह में सुखी किया,
नारद जी को प्रसन्न किया।
ब्राह्मण को उसके मृत पुत्र लौटाए,
कालिंग और काल को पराजित किया,
माँ देवकी के छह पुत्रों को दर्शन करवाए —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥11॥
बुद्धिमान उद्धव को शुद्ध ज्ञान दिया,
अनेक देवगणों व ऋषियों से आत्मज्ञान की चर्चा की।
अपनी माया को फैलाकर यदुकुल का अंत किया,
और समुद्र तट पर अपने शरीर को त्यागा —
वह श्रीकृष्ण सदा आपकी रक्षा करें।॥12॥
केवल श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति से प्रेरित
इन बारह श्लोकों द्वारा सम्पूर्ण लीलाओं का संक्षेप में वर्णन किया गया।
जो भी मनुष्य इसे श्रद्धापूर्वक पढ़ता है —
उसे कीर्ति, आरोग्यता, काव्यशक्ति प्राप्त होती है
और वह भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है।॥12॥
॥ श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम् समाप्त ॥
पाठ के लाभ (Benefits):
- संकटों से रक्षा:
जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन से भय, बाधाएँ और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। - भक्ति और मोक्ष प्राप्ति:
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के स्मरण से मन निर्मल होता है और भक्ति भाव बढ़ता है। यह स्तोत्र मोक्ष प्राप्ति में सहायक है। - परिवारिक सुख-सौहार्द:
इस पाठ से गृह कलह दूर होता है और पारिवारिक रिश्तों में प्रेम एवं सामंजस्य आता है। - आरोग्यता और यश की प्राप्ति:
व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य, समाज में मान-सम्मान और कीर्ति प्राप्त होती है। - काव्यशक्ति और वाणी का विकास:
इस स्तोत्र के पाठ से वाणी मधुर होती है और लेखन, वाणी व कला में निपुणता आती है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- श्रीकृष्ण को पीले फूल, तुलसी दल और माखन-मिश्री अर्पित करें।
- ‘ॐ श्रीकृष्णाय नमः’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र से ध्यान करें।
- अब “श्री कृष्णलीला वर्णन स्तोत्रम्” का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- पाठ के पश्चात श्रीकृष्ण चालीसा या आरती करें।
जप या पाठ का समय (Best Time to Recite):
- प्रातःकाल (सुबह 4 से 7 बजे के बीच) – उत्तम फलदायी समय है।
- शाम को संध्या वंदन के पश्चात – भी यह स्तोत्र फलदायक माना गया है।
- विशेष रूप से:
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, एकादशी, द्वादशी के दिन पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
- बाल गोपाल की पूजा करने वालों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत उपयोगी है।