श्रीकृष्ण कीलक स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है जो साधक को मानसिक शांति, आत्मिक बल और जीवन में शुभ फल प्रदान करता है। इसे श्रद्धा और नियमपूर्वक पढ़ने से भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ 31 बार करने से मन एकाग्र होता है, विचारों में सकारात्मकता आती है और जीवन में आत्मविश्वास का संचार होता है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले भगवान गणेश जी के किसी सरल मंत्र का जप करना चाहिए, जिससे समस्त विघ्न समाप्त हो जाएँ और स्तोत्र का पूर्ण फल प्राप्त हो।
शास्त्रों में मान्यता है कि जो साधक इस स्तोत्र का पाठ नियमपूर्वक करता है, उसे अन्य साधनाओं या मंत्रों की आवश्यकता नहीं रहती। केवल श्रद्धा और विश्वास से यह स्तोत्र सिद्धि व कल्याण प्रदान करता है। अनेक बार समाज में इस स्तोत्र को लेकर भ्रम फैलाया जाता है कि यदि विधि से न किया जाए तो हानि हो सकती है, परंतु यदि श्रद्धा से और उचित भावना से किया जाए तो यह केवल लाभदायक ही होता है।
श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र
Shree Krishna Keelak Stotra
ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम् ।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम् ।।
विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो ।
ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन ।।
भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर ।
हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम ।।
जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात् ।
कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम् ।।
शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय ।
देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम् ।।
वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक ।
ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम् ।।
निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः ।
इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम् ।
यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत् ।
सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे ।।
शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः ।
दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः ।।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा ।।
।। इति श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्रीकृष्ण कीलक स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Shree Krishna Keelak Stotra – हिन्दी में अर्थ सहित
गोपियों के समूह के मध्य स्थित,
रासलीला के मंडल में रमण करने वाले,
थके हुए लोगों को विश्राम देने वाले,
कमल के समान सुंदर प्रभु श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ।
हे प्रभु! जल और स्थल में स्थित
महाशत्रुओं को नष्ट कर दो,
और मुझे मेरे मनचाहे वरदान प्रदान करो,
हे कमलनयन श्रीहरि!
हे प्राणनाथ! मुझे संसार रूपी समुद्र से बचाओ,
हे कृपालु प्रभु, कृपा करो,
मेरे सभी पापों को हर लो,
और मेरी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष बनो।
जल में, स्थल में – हर जगह मेरी रक्षा करो,
मुझे संसार-सागर से बचाओ।
कूष्माण्ड, भूत-प्रेत आदि को कुचल डालो,
और महान भय को नष्ट करो।
हे शंखध्वनि करने वाले प्रभु,
अपने शंख की ध्वनि से शत्रुओं के हृदय को हिला दो।
हे प्रभु! मुझे महान ऐश्वर्य दो,
और वह सम्पत्ति दो जो सब कुछ प्रदान करने वाली हो।
हे वंशीधारी, माया के स्वामी,
गोपियों के चित्त को आकर्षित करने वाले,
बुखार, जलन, मानसिक संताप
और बंधन से उत्पन्न भय को नष्ट करो।
हे गदाधारी, गदाप्रभु बलराम के अग्रज,
उन्हें (भयों को) तुरंत दबा दो,
यह गोपिकाओं के प्रियतम का
कीलक स्तोत्र कहा गया है।
जो रात्रि में इसका पाँच बार पाठ करता है,
उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
एक बार या पाँच बार,
जो इसे चौराहे पर पढ़े,
उसके शत्रु नष्ट हो जाते हैं,
वे अपने स्थान से हटकर भाग जाते हैं।
दरिद्रता भिक्षुक रूप में भी उसे क्लेश नहीं देती – इसमें कोई संदेह नहीं।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।
।। इस प्रकार श्रीकृष्ण कीलक स्तोत्र समाप्त हुआ ।।
श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Krishna Keelak Stotra):
- मानसिक तनाव और भय समाप्त होता है
- शत्रुओं का नाश होता है
- वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और सुख बढ़ता है
- धन, ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है
- रोग, बाधा, ज्वर, दोष आदि दूर होते हैं
- जीवन में मनोकामनाओं की पूर्ति होती है
किन्हें करना चाहिए इस स्तोत्र का पाठ (Who should recite this stotra):
- जिनके जीवन में पारिवारिक कलह, रिश्तों में दरार या बाधाएँ हों
- जिनको मानसिक रूप से अशांति या भय बना रहता हो
- जो श्रीकृष्ण की भक्ति से जीवन में आनंद, प्रेम और संतुलन लाना चाहते हों
- जिनका भाग्य सोया हुआ हो और वे प्रगति की ओर बढ़ना चाहते हों









































