माँ शैलपुत्री नवदुर्गा के प्रथम स्वरूप हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है। “शैल” का अर्थ होता है पर्वत और “पुत्री” अर्थात बेटी — इस प्रकार शैलपुत्री का अर्थ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री। यह देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो पूर्व जन्म में सती थीं और अगले जन्म में शैलराज हिमालय की कन्या बनकर शैलपुत्री के रूप में प्रकट हुईं।
माँ शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवारी करती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल होता है। ये मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं और साधना की प्रथम सीढ़ी भी। इनकी पूजा से आत्मबल, स्थिरता और आध्यात्मिक ऊर्जा का जागरण होता है।
माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र एक भक्तिपूर्ण रचना है जिसमें माँ की स्तुति, स्वरूप, गुण, शक्तियाँ और उनके वरदानों का सुंदर वर्णन किया गया है। ध्यान और स्तोत्र के माध्यम से माँ शैलपुत्री का ध्यान करके भक्त अपने जीवन से अज्ञान, रोग, दुख और विपत्तियों का नाश कर सकते हैं।
इस स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में विशेष फलदायी माना गया है, परंतु इसे सामान्य दिनों में भी श्रद्धा से पढ़ा जाए तो माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Shailputri Devi Stotram
माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र
।। ध्यान ।।
वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूर्णेन्दुनिभांगौरी मूलाधारस्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानां रत्नकिरीटां नानालंकारभूषिताम्॥
प्रफुल्लवदनां पल्लवाधरां कान्तकपोलां तुंगकुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्मेरमुखीं क्षीणमध्यां नितंबिनीम्॥
।। स्तोत्र ।।
प्रथम दुर्गा त्वं हि भवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोकजननी त्वं हि परमानंद प्रदायिनीम्।
सौभाग्य आरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वं हि महा मोह विनाशिनीम्।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
।। इति माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र
Shailputri Devi Stotram (Hindi Translation)
।। ध्यान ।।
मैं उन माता को वंदन करता हूँ जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली हैं,
जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र है,
जो वृषभ (बैल) पर सवार हैं, त्रिशूल धारण करती हैं
और जो यशस्विनी शैलपुत्री देवी हैं।
जो पूर्ण चंद्रमा के समान गौर वर्ण की हैं, मूलाधार चक्र में स्थित हैं,
नवदुर्गाओं में प्रथम हैं, तीन नेत्रों वाली हैं,
पीतांबर धारण करती हैं, रत्नों से जड़े हुए मुकुट से शोभायमान हैं,
विभिन्न आभूषणों से सुसज्जित हैं।
जिनका मुख प्रसन्न है, होंठ कोमल पुष्प जैसे हैं, कपोल सुंदर हैं,
स्तन उच्च और आकर्षक हैं, शरीर लावण्य से पूर्ण है,
मुस्कराता हुआ मुख है, कमर पतली है और नितंब सुंदर हैं।
।। स्तोत्र ।।
हे प्रथम दुर्गा! आप ही संसार रूपी समुद्र से पार लगाने वाली नौका हैं।
धन और वैभव देने वाली माँ शैलपुत्री! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आप तीनों लोकों की जननी हैं, परम आनंद प्रदान करने वाली देवी हैं।
सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य देने वाली माँ शैलपुत्री! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आप चर और अचर जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं,
मोह और अज्ञान का नाश करने वाली हैं।
भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी शैलपुत्री! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
।। इस प्रकार माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।
माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र के लाभ (Benefits)
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार:
स्तोत्र पाठ से मूलाधार चक्र सक्रिय होता है जिससे शरीर और मन में स्थिरता, आत्मबल और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। - रोगों और भय का नाश:
माँ शैलपुत्री की उपासना से शरीर के रोग, मानसिक चिंता और अनावश्यक भय समाप्त होते हैं। - मन की स्थिरता और एकाग्रता:
विद्यार्थियों, साधकों और ध्यान करने वालों के लिए यह स्तोत्र विशेष लाभकारी है। - वैवाहिक सुख और पारिवारिक समृद्धि:
गृहस्थ जीवन में सौहार्द, सुख और सम्मान बनाए रखने में यह स्तोत्र सहायक होता है। - कुंडली दोष और ग्रह पीड़ा में राहत:
विशेष रूप से यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा पीड़ित हो, तो माँ शैलपुत्री का स्तोत्र जप बहुत फलदायक होता है। - नवरात्रि आराधना में प्रथम सफलता:
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना पूरे पर्व की सफलता की नींव रखती है।
पाठ विधि (How to Chant Shailputri Stotra)
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
सफेद या गुलाबी वस्त्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। - पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- माँ शैलपुत्री का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
उनको सफेद फूल, चंदन, अक्षत (चावल), बेलपत्र या दूर्वा अर्पित करें। - घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
- ध्यान श्लोक का पाठ करें
(जैसे: “वंदे वांच्छितलाभाय…” आदि) - फिर स्तोत्र का पाठ करें।
कम से कम 1 बार, और संभव हो तो 3, 5, या 11 बार। - अंत में प्रार्थना करें और आरती करें।
जप या पाठ का समय (Best Time to Chant)
- नित्य पाठ के लिए:
सुबह ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे के बीच) सर्वोत्तम है। - नवरात्रि में:
पहले दिन (प्रतिपदा) माँ शैलपुत्री की विशेष पूजा की जाती है।
इस दिन सूर्योदय के बाद या रात्रि के समय (संध्याकाल) भी स्तोत्र पढ़ा जा सकता है। - विशेष तिथियों में:
सोमवार, पूर्णिमा, और शरद/चैत्र नवरात्र के पहले दिन यह पाठ विशेष फलदायी होता है।