षोडशी हृदय स्तोत्र” एक अत्यंत रहस्यमय और प्रभावशाली स्तोत्र है, जो श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी के परम दिव्य स्वरूप “षोडशी” की स्तुति में रचा गया है। इस स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताई थी, जब उन्होंने कलियुग में धर्म-कर्म से विमुख हो चुके लोगों के उद्धार का उपाय पूछा। तब भगवान शिव ने इसे त्रैलोक्य में दुर्लभ बताते हुए कहा कि केवल इसका पाठ ही दुख, दरिद्रता, और सांसारिक क्लेशों को दूर करने में समर्थ है।
“षोडशी” का अर्थ है सोलह वर्षीय युवती, जो माँ त्रिपुरसुंदरी का अत्यंत सौंदर्यपूर्ण, करुणामयी, और पूर्णज्ञानयुक्त रूप है। इस स्तोत्र में न केवल देवी के सौंदर्य, शक्ति और करुणा का वर्णन है, बल्कि यह भी बताया गया है कि वे त्रिगुणातीत, सर्वदोष विनाशिनी और भक्तों को मोक्ष देने वाली हैं।
यह स्तोत्र केवल साधना का साधन नहीं, बल्कि कलियुग में जीवन की विकट परिस्थितियों में आश्रय लेने योग्य साक्षात् आत्मिक मार्गदर्शक है। यह साधकों को न केवल भौतिक सुख, समृद्धि और शांति देता है, बल्कि अध्यात्मिक उन्नति और चैतन्य की अनुभूति भी कराता है।
विशेष बात: यह स्तोत्र अत्यंत गोपनीय माना गया है और केवल संयमी, भक्तिपरायण और योग्य साधकों को ही इसका पाठ या अध्ययन करना चाहिए।
यदि आप माँ त्रिपुरसुंदरी की कृपा चाहते हैं तो श्रद्धा, नियम और एकाग्रता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करें।
षोडशी हृदय स्तोत्र
Shodashi Hridaya Stotra
॥ अथ श्रीषोडशीहृदयप्रारम्भः ॥
कैलासे करुणाक्रान्ता परोपकृतिमानसा
पप्रच्छ करुणासिन्धुं सुप्रसन्नं महेश्वरम् ॥1॥
॥ श्रीपार्वत्युवाच ॥
आगामिनि कलौ ब्रह्मन् धर्मकर्मविवर्जिताः ।
भविष्यन्ति जनास्तेषां कथं श्रेयो भविष्यति ॥2॥
॥ श्रीशिव उवाच ॥
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि तव स्नेहान्महेश्वरि ।
दुर्लभं त्रिषु लोकेषु सुन्दरीहृदयस्तवम् ॥3॥
ये नरा दुःखसन्तप्ता दारिद्रयहतमानसाः ।
अस्यैव पाठमात्रेण तेषां श्रेयो भविष्यति ॥4॥
॥ विनियोगः ॥
ॐ अस्य श्रीमहाषोडशीहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य आनन्दभैरव ऋषिः ।
देवी गायत्री छन्दः । श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता। ऐं बीजम् । सौः शक्तिः । क्लीं कीलकम् ।
धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे (पाठे) विनियोगः ।
॥ ऋष्यादिन्यासः ॥
ॐ आनन्दभैरवऋषये नमः शिरसि ।
देवी गायत्री छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमहात्रिपुरसुन्दरीदेवतायै नमः हृदये ।
ऐं बीजाय नमः नाभौ ।
सौः शक्तये नमः स्वाधिष्ठाने ।
क्लीं कीलकाय नमः मूलाधारे ।
विनियोगाय नमः पादयोः ॥
॥ करन्यासः ॥
ऐं ह्रीं क्लीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
क्लीं श्रीं सौः ऐं तर्जनीभ्यां नमः ।
सौः ॐ ह्रीं श्रीं मध्यमाभ्यां नमः ।
ऐं कएलह्रीं हसकलह्रीं अनामिकाभ्यां नमः ।
क्लीं सकल कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
सौः सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
॥ हृदयादिषडङ्गन्यासः ॥
ऐं ह्रीं क्लीं हदयाय नमः ।
क्लीं श्रीं सौः ऐं शिरसे स्वाहा ।
सौः ॐ ह्रीं श्रीं शिखायै वषट् ।
ऐं कएलह्रीं हसकलह्रीं कवचाय हुम् ।
क्लीं सकल नेत्रत्रयाय वौषट् ।
सौः सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट् ॥
॥ ध्यानम् ॥
बालव्यक्तविभाकरामितनिभां भव्यप्रदां भारतीम्
ईषत्फुल्लमुखाम्बुजस्मितकरैराशाभवान्धापहाम् ।
पाशं साभयमङ्कुशं च वरदं सम्बिभ्रतीं भूतिदां
भ्राजन्तीं चतुरम्बुजाकृतकरैर्भक्त्या भजे षोडशीम् ॥5॥
॥ श्री षोडशी ललितात्रिपुरसुन्दरी हृदय स्तोत्रम् ॥
सुन्दरी सकलकल्मषापहा कोटिकञ्जकमनीयकान्तिभृत् ।
कोटिकल्पकृतपुण्यकर्मणा पूजनीयपदपुण्यपुष्करा ॥6॥
शर्वरीशसमसुन्दरानना श्रीशशक्तिसुकृताश्रयाश्रिता ।
सज्जनानुशरणीयसत्पदा सङ्कटे सुरगणैः सुवन्दिता ॥7॥
या सुरासुररणे जवान्विता आजघान जगदम्बिकाऽजिता ।
तां भजामि जननीं जगज्जनिं युद्धयुक्तदितिजान्सुदुर्जयान् ॥8॥
योगिनां हृदयसङ्गतां शिवां योगयुक्तमनसां यतात्मनाम् ।
जाग्रतीं जगति यत्नतो द्विजा यां जपन्ति हृदि तां भजाम्यहम् ॥9॥
कल्पकास्तु कलयन्ति कालिकां यत्कला कलिजनोपकारिका ।
कौलिकालिकलितान्घ्रिपङ्कजां तां भजामि कलिकल्मषापहाम् ॥10॥
बालार्कानन्तशोचिर्न्निजतनुकिरणैर्द्दीपयन्तीं दिगन्तान्
दीप्तैर्द्देदीप्तमानां दनुजदलवनानल्पदावानलाभाम् ।
दान्तोदन्तोग्रचितां दलितदितिसुतां दर्शनीयां दुरन्तां
देवीं दीनार्द्रचित्तां हृदि मुदितमनाः षोडशीं संस्मरामि ॥11॥
धीरान्धन्यान्धरित्रीधवविधृतशिरो धूतधूल्यब्जपादां
घृष्टान्धाराधराधो विनिधृतचपलाचारुचन्दप्रभाभाम् ।
धर्म्यान्धूतोपहारान्धरणिसुरधवोद्धारिणीं ध्येयरूपां
धीमद्धन्यातिधन्यान्धनदधनवृतां सुन्दरीं चिन्तयामि ॥12॥
जयतु जयतु जल्पा योगिनी योगयुक्ता
जयतु जयतु सौम्या सुन्दरी सुन्दरास्या ।
जयतु जयतु पद्मा पद्मिनी केशवस्य
जयतु जयतु काली कालिनी कालकान्ता ॥13॥
जयतु जयतु खर्वा षोडशी वेदहस्ता
जयतु जयतु धात्री धर्मिणी धातृशान्तिः ।
जयतु जयतु वाणी ब्रह्मणो ब्रह्मवन्द्या
जयतु जयतु दुर्गा दारिणी देवशत्रोः ॥14॥
देवि त्वं सृष्टिकाले कमलभवभृता राजसी रक्तरूपा
रक्षाकाले त्वमम्बा हरिहृदयधृता सात्विकी श्वेतरूपा ।
भूरिक्रोधा भवान्ते भवभवनगता तामसी कृष्णरूपा
एताश्चान्यास्त्वमेव क्षितमनुजमला सुन्दरी केवलाद्या ॥15॥
सुमलशमनमेतद्देवि गोप्यं गुणज्ञे
ग्रहणमननयोग्यं षोडशीयं खलघ्नम् ।
सुरतरुसमशीलं सम्प्रदं पाठकानां
प्रभवति हृदयाख्यं स्तोत्रमत्यन्तमान्यम् ॥16॥
इदं त्रिपुरसुन्दर्याः षोडश्याः परमाद्भुतम् ।
यः श्रृणोति नरः स्तोत्रं स सदा सुखमश्नुते ॥17॥
न शूद्राय प्रदातव्यं शठाय मलिनात्मने ।
देयं दान्ताय भक्ताय ब्राह्मणाय विशेषतः ॥18॥
॥ इति षोडशी हृदय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
षोडशी हृदय स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
अथ श्रीषोडशीहृदयप्रारम्भः
- कैलास पर्वत पर करुणा से भरपूर एक देवी, जो दूसरों की सहायता में लगी रहती थीं, उन्होंने करुणा के सागर, प्रसन्नचित्त महेश्वर से पूछा।
- श्रीपार्वती ने कहा: हे ब्रह्मन्! आने वाले कलियुग में जब धर्म और कर्म लुप्त हो जाएंगे, तब लोग मोक्ष कैसे प्राप्त करेंगे?
- श्रीशिव बोले: हे देवी! तुम्हारे स्नेहवश मैं तुम्हें वह दुर्लभ स्तोत्र बताता हूँ, जो तीनों लोकों में नहीं पाया जाता—यह सुंदरिका (षोडशी) का हृदय स्तोत्र है।
- जो मनुष्य दुःख और दरिद्रता से पीड़ित हैं, उनके लिए केवल इसका पाठ ही कल्याणकारी सिद्ध होगा।
विनियोग और न्यास:
- यह स्तोत्र आनंद भैरव द्वारा रचित है। इसका छंद गायत्री है और देवी त्रिपुरसुंदरी ही इसकी अधिष्ठात्री देवी हैं।
- इसमें ऐं, सौः और क्लीं बीज मंत्र हैं, और इसका प्रयोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि हेतु किया जाता है।
- ऋष्यादि न्यास और करन्यास में हाथ और शरीर के विभिन्न भागों पर मंत्रों का स्पर्श कर उनका आह्वान किया जाता है।
- ध्यान में देवी षोडशी को चतुर्भुजा, पाश, अंकुश और वर मुद्रा से युक्त, करुणामयी और तेजस्विनी रूप में ध्यान किया जाता है।
स्तोत्र का भावानुवाद:
- वह सुंदरिका देवी सभी पापों को हरने वाली, करोड़ों कमलों जैसी सुंदरता वाली हैं। वे करोड़ों जन्मों के पुण्य से पूजनीय हैं।
- उनकी सुंदरता शिव की शक्ति के समान है। वे सज्जनों का मार्गदर्शन करती हैं और संकट में देवताओं द्वारा भी वंदनीय हैं।
- जिन्होंने असुरों के युद्ध में विजय पाई, वे जगदम्बा अजेय हैं—मैं ऐसी जननी को प्रणाम करता हूँ।
- योगियों के हृदय में स्थित, शांतचित्त, जाग्रत और जप करने योग्य देवी को मैं भजता हूँ।
- जिनकी कला कलियुग में भी कल्याणकारी है, जो कालिकाओं की रचना करने वाली हैं, उन्हें मैं स्मरण करता हूँ।
- जिनके शरीर से तेज सूर्य समान किरणें निकलती हैं, जो दैत्यों का विनाश करती हैं, जो दुर्गम हैं, वे षोडशी देवी मेरी वंदनीय हैं।
- जिनके चरणों की धूल को भी देवता अपने मस्तक पर रखते हैं, जो धर्म और वैभव देती हैं, ऐसी देवी को मैं स्मरण करता हूँ।
- जय हो! योगिनी, योगयुक्त, सौम्या, सुंदर, कमल जैसी, केशव की रानी, काल की कान्ति—आपको बार-बार नमन है।
- जय हो! वेदधारी षोडशी, धर्मिणी, वाणी, ब्रह्मवंदिता, दुर्गा—जो दैत्य का नाश करती हैं।
- सृष्टिकाल में रजोगुण से युक्त, रक्षणकाल में सतोगुण से युक्त, और संहारकाल में तमोगुण से युक्त देवी, सभी रूपों में आप ही हैं।
- हे देवी! यह स्तोत्र अत्यंत गोपनीय है, इसे गुणी और भक्तिपूर्ण मन से ग्रहण करें। यह कलियुग में खल-विनाशक है।
- जो व्यक्ति इसका श्रवण करता है, उसे सदा सुख की प्राप्ति होती है।
- इसे शूद्रों, दुष्टों या अशुद्ध अंतःकरण वाले को न दें—बल्कि संयमी, भक्त और विशेषकर ब्राह्मण को ही दें।
॥ इति षोडशी हृदय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits of Shodashi Hridaya Stotra)
- सांसारिक क्लेशों का नाश: इसका नियमित पाठ दरिद्रता, मानसिक पीड़ा, और दुःखों का नाश करता है।
- माँ त्रिपुरसुंदरी की कृपा: षोडशी रूप में देवी की कृपा से साधक को सिद्धियाँ, ऐश्वर्य और आत्मबल की प्राप्ति होती है।
- भय एवं शत्रुओं से रक्षा: यह स्तोत्र साधक को नकारात्मक शक्तियों, शत्रुओं, और ग्रहबाधाओं से सुरक्षा देता है।
- आध्यात्मिक जागृति: यह स्तोत्र ध्यान, साधना और कुंडलिनी जागरण में अत्यंत सहायक होता है।
- कर्मफल नाश: पुराने पापों का क्षय होकर पुण्य का संचय होता है।
- मंत्र सिद्धि में सहायक: षोडशी मन्त्र की सिद्धि में यह स्तोत्र एक हृदयस्थ शक्ति का काम करता है।
विधि (Vidhi – पाठ करने की विधि)
- स्थान: एक शांत और पवित्र स्थान चुनें (माँ की तस्वीर या यंत्र के सामने)।
- स्नान एवं शुद्धता: पाठ से पूर्व स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आसन: कुश, ऊन या कम्बल के आसन पर बैठें।
- संकल्प: “मैं अमुक कार्य के लिए/माँ की कृपा हेतु षोडशी हृदय स्तोत्र का पाठ कर रहा/रही हूँ।”
- दीपक व धूप: घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं, चंदन/कपूर की धूप दें।
- न्यास करें: ऋष्यादि, कर, हृदय आदि न्यास करें जैसा स्तोत्र में वर्णित है।
- ध्यान: ध्यान श्लोक से माँ षोडशी का ध्यान करें।
- स्तोत्र पाठ: पूरे स्तोत्र को श्रद्धा और शुद्ध उच्चारण से पढ़ें।
- अंत में प्रार्थना करें: अपनी कामना व्यक्त करें और देवी को कृतज्ञता अर्पित करें।
जाप का समय (Best Time for Jaap or Recitation)
- प्रातःकाल (Brahma Muhurta – सुबह 4:00 से 6:00): सबसे श्रेष्ठ समय माना गया है।
- प्रदोष काल (सांझ के समय सूर्यास्त से पूर्व): तांत्रिक साधकों के लिए उपयुक्त।
- नवमी, पूर्णिमा, अष्टमी: विशेष फलदायी तिथियाँ।
- नित्य साधना: प्रतिदिन सुबह या संध्या को पाठ करना अत्यंत कल्याणकारी है।
- नवरात्रि: विशेष रूप से षष्ठी से नवमी के मध्य इसका पाठ महाफलदायक होता है।