शनि देव को नवग्रहों में सबसे शक्तिशाली और न्यायप्रिय ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव हमारे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि की स्थिति अशुभ हो, या वह साढ़े साती अथवा ढैय्या से गुजर रहा हो, तो जीवन में कष्ट, बाधा और मानसिक तनाव बढ़ सकते हैं। ऐसे में “श्री शनैश्चर स्तोत्र” का नियमित पाठ अत्यंत फलदायी सिद्ध होता है। यह स्तोत्र दशरथ जी द्वारा रचित माना जाता है, जिन्होंने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इसकी रचना की थी।
शनि का अर्थ है – ‘शनि’ = धीरे और ‘चर’ = चलने वाला। यह ग्रह राशि चक्र में सबसे धीमी गति से चलता है और एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है। इसी कारण ‘साढ़े साती’ की अवधि 7½ वर्षों की मानी जाती है। शनि जब प्रतिकूल भाव में होते हैं, तो वे व्यक्ति के जीवन में दुःख, विघ्न और संघर्ष ला सकते हैं।
श्री शनैश्चर स्तोत्र हिंदी पाठ
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।
शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥
शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ॥
॥ दशरथ उवाच ॥
कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 1 ॥
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 2 ॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 3 ॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 4 ॥
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 5 ॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 6 ॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 7 ॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ 8 ॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ 9 ॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ 10 ॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ 11 ॥
॥ इति श्री शनैश्चर स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री शनैश्चर स्तोत्र हिंदी अनुवाद (Shri Shanieshwar Stotra Hindi Translation)
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।
शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥
शनैश्चर की प्रसन्नता के लिए जप में इसका विनियोग है ॥
॥ दशरथ उवाच ॥
जो कोण में स्थित, मृत्युकारक, उग्र, यम के समान, गहरे रंग वाले, काले, तांबे की आंखों वाले, मंद गति से चलने वाले और सूर्यपुत्र शनि हैं —
जो नित्य स्मरण किए जाने पर समस्त पीड़ा हर लेते हैं, ऐसे श्री रविनंदन (सूर्यपुत्र) शनिदेव को नमस्कार है ॥ 1 ॥
देवता, असुर, किन्नर, नागराज, गंधर्व, विद्याधर, पन्नग आदि —
सभी जब शनिदेव की दृष्टि विषम स्थान पर होती है, तब पीड़ित होते हैं। ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 2 ॥
मनुष्य, राजा, पशु, मृगों के राजा, वन के जीव, कीड़े, पतंगे और भ्रमर —
ये सभी विषम स्थिति में शनिदेव की दृष्टि पड़ने पर पीड़ित होते हैं। ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 3 ॥
देश, दुर्ग, वन, सेना के शिविर और नगर आदि —
ये सभी भी विषम दृष्टि के प्रभाव से पीड़ित होते हैं। ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 4 ॥
तिल, जौ, माष, गुड़ और अन्न का दान, लोहे का दान, नीले वस्त्र का दान —
इनसे शनिदेव प्रसन्न होते हैं, विशेषकर उनके दिन (शनिवार) में मंत्रजप करने से। ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 5 ॥
प्रयाग के तट, यमुना के किनारे, सरस्वती के पवित्र जल में या किसी गुफा में —
जहां योगी ध्यान करते हैं, वहां सूक्ष्म रूप में जो शनिदेव स्थित रहते हैं, उन्हें नमस्कार है ॥ 6 ॥
जो व्यक्ति किसी अन्य स्थान से अपने घर शनिदेव के दिन (शनिवार) प्रवेश करता है —
वह सुखी होता है, और जो घर से बाहर जाता है, वह पुनः नहीं लौटता (अनिष्ट होता है)। ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 7 ॥
स्वयंभू ब्रह्मा त्रिलोकी के सृष्टिकर्ता हैं, विष्णु पालक हैं, रुद्र संहारक हैं —
तीनों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद) के रूप में जो एक ही परमात्मा हैं, ऐसे श्री रविनंदन को नमस्कार है ॥ 8 ॥
जो व्यक्ति इस शनि अष्टक का प्रति दिन प्रातःकाल संतान, पशु और संबंधियों सहित पाठ करता है —
वह सुख भोगता है और अंत में निर्वाण पद (मोक्ष) को प्राप्त करता है ॥ 9 ॥
कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्र, अन्तक, यम, सौरी, शनैश्चर, मन्द —
ये शनिदेव के दस नाम हैं, जिनकी स्तुति महर्षि पिप्पलाद ने की थी ॥ 10 ॥
जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर इन दस नामों का पाठ करता है —
उसे शनिदेव द्वारा दी जाने वाली पीड़ा कभी नहीं होती ॥ 11 ॥
॥ इस प्रकार श्री शनैश्चर स्तोत्र समाप्त होता है ॥
श्री शनैश्चर स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Shani Stotra:):
- यह स्तोत्र शनि दोष, साढ़े साती, ढैय्या एवं शनि की महादशा के दुष्प्रभाव को कम करता है।
- यह शनि देव की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ माध्यम है।
- स्तोत्र के नियमित पाठ से मानसिक शांति, आत्मबल और धैर्य की प्राप्ति होती है।
- जीवन में चल रही बाधाओं, आर्थिक संकट, रोग और शत्रु बाधा से छुटकारा मिलता है।
- यह स्तोत्र धर्म, न्याय और संयम की भावना को विकसित करता है।
- जो व्यक्ति शनि से प्रभावित हैं, उनके लिए यह स्तोत्र संजीवनी के समान कार्य करता है।
कौन कर सकता है इसका पाठ (Who can do the lesson):
- जिनकी कुंडली में शनि नीच राशि में हो या अशुभ भाव में हो।
- जो साढ़े साती या शनि की ढैय्या से गुजर रहे हों।
- जो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कष्टों से जूझ रहे हों।
- जो अपने जीवन में स्थिरता, न्याय, और शक्ति की प्राप्ति चाहते हों।