“श्री विश्व शांति स्तोत्र” एक दिव्य और प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना का उद्देश्य सर्वव्यापी शांति, सुरक्षा, साधना-संरक्षण और धर्म की रक्षा करना है। यह स्तोत्र मुख्य रूप से तंत्र, योग, और साधना मार्ग के अनुयायियों को समर्पित है, जो दुष्ट शक्तियों, विघ्नों, द्वेष और पापवृत्तियों से रक्षा प्राप्त करने के लिए इसका पाठ करते हैं।
इस स्तोत्र में मातृशक्तियों, योगिनियों, सिद्धियों, देवताओं, ग्रहों और तत्वों का आह्वान कर उन्हें प्रसन्न करने की प्रार्थना की जाती है ताकि विश्व में शांति, साधकों में सिद्धि, और जीवन में शुभता बनी रहे। साथ ही इसमें उन निंदकों, कुत्सित भावनाओं और विनाशकारी प्रवृत्तियों का नाश करने की कामना की जाती है, जो धर्म, साधना और सत्पथ से विमुख हैं।
“विश्व शांति स्तोत्र” शिवभक्ति और शक्तिपूजा की गहराइयों से जुड़ा है तथा यह श्री भैरव की कृपा से सम्पन्न माना जाता है। इसका पाठ करने से साधक के जीवन में सभी बाधाएँ समाप्त होती हैं, नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं, और सर्वतोमुखी शांति और सिद्धि प्राप्त होती है।
श्री विश्व शांति स्तोत्र हिंदी पाठ
Vishwa Shanti Stotra in Hindi
नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नरा:।
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम ॥ 1 ॥
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः।
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः ॥ 2 ॥
जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये।
समयाचार संपन्ना जयन्ति पूजका नराः ॥ 3 ॥
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः।
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवतः ॥ 4 ॥
चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः।
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये ॥ 5 ॥
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः।
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः ॥ 6 ॥
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिम कुर्वन्तु सर्वदा।
स्तुता मे विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः ॥ 7 ॥
ये ये पापधियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने।
वेदाचार विमर्द नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः ॥ 8 ॥
दृष्ट्वा चक्रम्पूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषकास्ते।
ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवास्याज्ञया ॥ 9 ॥
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः।
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः ॥ 10 ॥
ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः।
सर्वस्मादखिले सुराधिपमजं सेव्यं सुरै संततम ॥ 11 ॥
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्धया च ये।
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते ॥ 12 ॥
शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये।
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।
तत्परं पठेत स्तोत्रमानंदस्तोत्रमुत्तमम।
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति ॥ 13 ॥
॥ इति श्री विश्व शांति स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री विश्व शांति स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Vishwa Shanti Stotra – Hindi Translation
प्रेत, कूष्माण्ड और अशुभ विचारों वाले मनुष्य नष्ट हों।
साधकों और वेदमार्ग के रक्षकों के लिए कल्याणकारी स्थितियाँ बनी रहें। ॥ 1 ॥
सभी मातृशक्तियाँ विजयी हों, योगिनी गण सफल हों।
सिद्धाएँ, डाकिनियाँ और गुरु परंपराएँ सदा विजयी हों। ॥ 2 ॥
सभी शुद्ध साधक विजयी हों।
जो समय के अनुसार आचरण करते हैं, ऐसे पूजकजन भी विजयी हों। ॥ 3 ॥
आणिमा सिद्धियाँ प्रसन्न हों, कुल देवता प्रसन्न रहें।
इन्द्र आदि समस्त देवता, वास्तुदेव भी तृप्त हों। ॥ 4 ॥
चंद्रमा, सूर्य आदि देवता मेरी भक्ति से संतुष्ट हों।
नक्षत्र, ग्रह, योग, करण और राशियाँ सब तृप्त हों। ॥ 5 ॥
सभी जीव सुखी रहें, सांप और दुष्ट पक्षी नष्ट हों।
पशु, घोड़े, पर्वत, गुफाएँ और कंदराएँ भी शांत रहें। ॥ 6 ॥
ऋषि और ब्राह्मण सदा शांति की कामना करें।
जो स्तुति किए गए हैं, वे सिद्ध और पूजक स्थिर रहें। ॥ 7 ॥
जो पापयुक्त, अपवित्र, निंदा में रत हैं,
जो वेदाचार को नष्ट करते हैं और जिनका हृदय दूषित है, ऐसे साधक भी नष्ट हों। ॥ 8 ॥
जो पूर्व में चक्र देखकर भी मंदबुद्धि बने रहे,
ऐसे कौल मार्ग के विरोधी श्री भैरव की आज्ञा से विनष्ट हों। ॥ 9 ॥
साधकों से द्वेष करने वाले और वेदमार्ग को दूषित करने वाले,
वे डाकिनी के मुख में चले जाएँ और डाकिनी उनके मांस से तृप्त हो। ॥ 10 ॥
जो शक्ति, शिव, विष्णु, कृष्ण या बुद्ध में आस्था रखते हैं,
ऐसे भक्तजन त्रिपुरेश्वरी की उपासना करते हुए सदा पूजनीय हों। ॥ 11 ॥
जो भक्त शिव को विष्णुबुद्धि से, विष्णु को शिवबुद्धि से,
और श्रीकृष्ण को समत्वबुद्धि से पूजते हैं — वे मुक्ति को प्राप्त करें। ॥ 12 ॥
जो मेरे विरोधी, निंदा करने वाले हैं,
जो साधकों से द्वेष रखते हैं — वे भगवान शिव की आज्ञा से नष्ट हो जाएँ।
जो इस आनंददायक स्तोत्र का पाठ करता है —
उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और सभी हानियाँ समाप्त होती हैं। ॥ 13 ॥
॥ इति श्री विश्व शांति स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री विश्व शांति स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- विश्व में शांति की स्थापना:
यह स्तोत्र देवताओं, योगिनियों, ग्रहों, ऋषियों और तत्वों को तृप्त करता है, जिससे संपूर्ण वातावरण में शांति और संतुलन बना रहता है। - साधकों की रक्षा:
साधकों को द्वेष, निंदा, विघ्न, कुत्सित शक्तियों और शत्रुओं से बचाता है। यह विशेष रूप से तांत्रिक मार्ग या साधना में लगे लोगों के लिए प्रभावी है। - वास्तु और ग्रह दोष निवारण:
इस स्तोत्र के माध्यम से वास्तु देव, नक्षत्र, ग्रह आदि को प्रसन्न किया जाता है, जिससे ग्रह दोष और वास्तु बाधाएं दूर होती हैं। - नकारात्मक ऊर्जा का नाश:
यह स्तोत्र नकारात्मक शक्तियों, प्रेत, कूष्मांड आदि का विनाश करता है और वातावरण को पवित्र बनाता है। - शिव कृपा और सिद्धि प्राप्ति:
पाठक को शिव, शक्तियों और सभी शुभ तत्वों का आशीर्वाद मिलता है। साधना में सफलता, मन की स्थिरता और आत्मिक बल बढ़ता है। - शत्रु और निंदकों का विनाश:
जो लोग धार्मिक साधना का विरोध करते हैं या साधकों की निंदा करते हैं, उनके प्रभाव से रक्षा करता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्थान और समय:
शांत, स्वच्छ और शुद्ध वातावरण में बैठकर करें। यदि संभव हो तो मंदिर या साधनास्थल में करें। - आसन और दिशा:
कुश, ऊन या कंबल का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। - पूजन सामग्री:
- जल से भरा कलश
- धूप-दीप
- सफेद पुष्प
- अक्षत
- चंदन या भस्म
- गणेश, शिव, देवी, ग्रहों या वास्तु देवताओं का चित्र/प्रतिमा
- शुद्धिकरण:
हाथ में जल लेकर संकल्प करें — “शांति, रक्षा और सिद्धि के लिए मैं श्री विश्व शांति स्तोत्र का पाठ करता हूँ।” - पाठ क्रम:
- प्रारंभ में “ॐ गणेशाय नमः” कहकर गणपति का ध्यान करें
- फिर पूर्ण मनोयोग से स्तोत्र का पाठ करें
- अंत में “यदक्षरं पदं भ्रष्टं…” श्लोक बोलकर क्षमा प्रार्थना करें
जाप/पाठ का श्रेष्ठ समय (Best Time for Jaap):
- प्रातःकाल (5:00 – 7:00 बजे):
यह समय मानसिक शुद्धता और आत्मिक एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम होता है। - पूर्णिमा, अमावस्या, और चतुर्दशी:
इन तिथियों पर विशेष फलदायी माना गया है। - विशेष अवसरों पर:
ग्रहदोष निवारण, वास्तु शुद्धि, पूजा के बाद, यज्ञ/हवन से पूर्व, या साधना प्रारंभ करते समय इसका पाठ करें। - नित्य पाठ की संख्या:
- सामान्य पाठ: 1 बार
- विशेष कार्य सिद्धि हेतु: 3, 5 या 11 बार
- 21 दिनों तक नियमपूर्वक करें तो अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है।
विशेष सुझाव:
- स्तोत्र पाठ के बाद गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, अथवा “ॐ नमः शिवाय” का जप करें।
- स्तोत्र का पाठ श्रद्धा, भक्ति और समर्पण के साथ करें — तभी पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।