श्री नाग स्तोत्र, जिसे अक्सर नव नाग स्तोत्र कहा जाता है, नाग देवताओं की आराधना हेतु रचा गया है। यह स्तोत्र गुरुओं जैसे अगस्त्य, पुलस्त्य, वैशम्पायन, सुमंतु और जैमिनि द्वारा प्रख्यात किया गया था, और इसमें आठ प्रमुख नाग—अनंत, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख—का स्मरण होता है
श्री नाग स्तोत्र (Naag Stotra)
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥ १ ॥
मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥ २ ॥
अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥ ३ ॥
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥ ४ ॥
॥ इति श्री नागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री नाग स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
1.
(अगस्त्य, पुलस्त्य, वैशम्पायन सहित)
और सुमंतु, जयमिनि इत्यादि पाँचों नाग वरगज्ञानी नागों का वर्णन करते हैं।
2.
मुनीष्वरों (ऋषियों) में से कल्याणमित्र और जैमिनि ने भी इन नागों की कीर्तन से महिमा की—
उनके चरणों के नीचे विद्युद्-समान तेज उत्पन्न होता है और घर मंडल (परिसर) में भय का कोई स्थान नहीं रहता।
3.
अनंत, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख ये आठ नाग सदा प्रसिद्ध हैं।
4.
जहाँ अहिशायी (सर्प-भक्षक) भगवान या हरि-ईश्वर विराजमान हैं—
वहाँ वज्र (इन्द्र का हथियार) टूट जाता है, तो श्री नाग स्तोत्र से शूल (त्रिशूल) का क्या प्रभाव? वहाँ उनका क्या महत्व?
॥ इति श्री नागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ
- नाग दोष, कालसर्प दोष, राहु‑केतु दोष, सर्प दोष जैसे दोषों का निवारण होता है ।
- शत्रु-विघ्न निवारण, प्रतिस्पर्धा में विजय पाने की शक्ति मिलती है ।
- रक्षा एवं सकारात्मक ऊर्जा, जैसे की बुरी नजर, नींददोष से सुरक्षा मिलती है।
- आत्मिक संतुलन, मानसिक दृढ़ता और आत्म–विश्वास बढ़ता है ।
विधि (पाठ/पूजा विधि)
- प्रतिष्ठित स्थान (घर, मंदिर, खेत-खलिहान) पर स्नान करके बैठें।
- ॐ अनन्त वासुकिं… यह स्तोत्र सुगठित रूप से पढ़ें।
- इसे 108 या 1008 बार जपने से विशेष प्रभाव मिलता है
जप करने का उचित समय
- सुबह पूर्वाह्न और संध्याकाल, जब वातावरण शांत हो — सबसे प्रभावशाली समय।
- नागपंचमी जैसे विशेष अवसर पर इसका पाठ विशेष फलदायक होता है


























































