दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र एक शक्तिशाली वैदिक मंत्र है जो आत्मरक्षा, यज्ञ रक्षा, और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से पूजा, यज्ञ, तंत्र-साधना, या किसी भी आध्यात्मिक कार्य के प्रारंभ में सुरक्षा कवच के रूप में उपयोग किया जाता है।
दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र (Digbandhan Raksha Stotra)
स्वयं की तथा यज्ञ की रक्षा के लिए, निम्न मंत्र का पाठ करते हुए जल, सरसों या पीले चावलों को चारों ओर छिड़कें।
मूल मन्त्र:
ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः।
दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः।
उत्तरे श्रीपति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः॥
ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु।
अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु॥
अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक्।
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया।
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम्।
सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे॥
॥ इति दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र (हिंदी अनुवाद सहित)
स्वयं की तथा यज्ञ की रक्षा के लिए, निम्न मंत्र का पाठ करते हुए जल, सरसों या पीले चावलों को चारों ओर छिड़कें।
मूल मंत्र:
पूर्व दिशा की रक्षा भगवान वराह करें,
आग्नेय दिशा की रक्षा गरुड़ध्वज (भगवान विष्णु) करें।
दक्षिण दिशा की रक्षा पद्मनाभ (भगवान विष्णु) करें,
नैऋत्य दिशा की रक्षा मधुसूदन (भगवान विष्णु) करें॥
पश्चिम दिशा की रक्षा गोविंद करें,
वायव्य दिशा की रक्षा जनार्दन करें।
उत्तर दिशा की रक्षा लक्ष्मीपति (भगवान विष्णु) करें,
और सभी दिशाओं की रक्षा महेश्वर (भगवान शिव) करें॥
ऊर्ध्व (ऊपर) की रक्षा धाता (ब्रह्मा) करें,
नीचे की रक्षा अनंत (शेषनाग) करें।
जो स्थान विशेष रूप से नहीं बताए गए,
उनकी भी रक्षा प्रभु करें॥
जो भी स्थान बताए नहीं गए हैं,
उनकी भी रक्षा मेरे ईश्वर करें, जो पर्वत को धारण करते हैं (भगवान शिव)।
जो भी भूत-प्रेत इस धरती पर स्थित हैं, वे दूर हो जाएं॥
जो भूत या प्रेत विघ्न उत्पन्न करते हैं,
वे भगवान शिव की आज्ञा से चले जाएं।
सभी दिशाओं से जो भी पिशाच या भूत हैं,
वे पीछे हट जाएं।
जब यज्ञ या शुभ कार्य प्रारंभ हो रहा हो,
तो उन सभी विघ्नों का नाश हो॥
॥ इस प्रकार दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits)
- दिशाओं की सुरक्षा: यह स्तोत्र साधक के चारों दिशाओं में एक दिव्य सुरक्षा कवच बनाता है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं।
- भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति: यह स्तोत्र भूत-प्रेत, पिशाच, और अन्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
- यज्ञ और पूजा की रक्षा: यज्ञ, हवन, या किसी भी आध्यात्मिक अनुष्ठान के दौरान उत्पन्न होने वाले विघ्नों को दूर करता है।
- मानसिक शांति: यह स्तोत्र मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है, जिससे साधक ध्यान और साधना में एकाग्र रह सकता है।
विधि (Method)
- स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आसन पर बैठना: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शांत स्थान पर बैठें।
- सामग्री तैयार करना: जल, सरसों के दाने, या पीले चावल की एक छोटी मात्रा लें।
- मंत्र का उच्चारण: नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए जल, सरसों, या पीले चावल को अपने चारों ओर छिड़कें: ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः ।
दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।
उत्तरे श्रीपति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥
ऊर्ध्वं रक्षतु धाता च अधः अनन्तश्च रक्षतु ।
अनुक्तमपि यत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ॥
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ।
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ॥
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।
सर्वेषां विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥ - ध्यान और भावना: मंत्र का उच्चारण करते समय भगवान विष्णु और भगवान शिव का ध्यान करें और उनसे सुरक्षा की प्रार्थना करें।
- समापन: स्तोत्र के अंत में “॥ इति दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥” कहकर समापन करें।
जप का समय (Recommended Time)
- प्रातःकाल: सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के समय।
- यज्ञ या पूजा से पहले: किसी भी यज्ञ, हवन, या पूजा अनुष्ठान के प्रारंभ में।
- रात्रि में: विशेष रूप से अमावस्या या पूर्णिमा की रात को, जब नकारात्मक शक्तियाँ सक्रिय होती हैं।
- विशेष अवसरों पर: ग्रहण, संक्रांति, या किसी भी आध्यात्मिक साधना के समय।