श्री दत्तात्रेय स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तुति है, जो भगवान दत्तात्रेय की महिमा का वर्णन करती है। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त रूप के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें आदि गुरु तथा नाथ संप्रदाय के मूल स्तंभ माना जाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ साधक को आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और जीवन की विभिन्न बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है।
भगवान दत्तात्रेय को आदि गुरु माना जाता है, जो नाथ संप्रदाय की मूलधारा के प्रेरणास्रोत हैं। यह स्तोत्र साधक के लिए एक दिव्य कवच की तरह कार्य करता है, जो उसे तामसिक शक्तियों, ग्रह दोषों और तंत्र बाधाओं से सुरक्षित रखता है। कार्य सिद्धि और आत्मिक रक्षा के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली और अमोघ माना गया है।
“स्मरण मात्र से ही सिद्ध होते हैं दत्तात्रेय, जो स्वयं जगत के गुरु हैं।”
दत्तात्रेय स्तोत्र (Dattatreya Stotra)
दिगंबरं भस्मसुगन्धलेपनं
चक्रं त्रिशूलं डमरुं गदां च ।
पद्मासनस्थं ऋषिदेववन्दितं
दत्तात्रेयध्यानमभीष्टसिद्धिदम् ॥
मूलाधारे वारिजपद्मे सचतुष्के
वंशंषंसं वर्णविशालैः सुविशालैः ।
रक्तं वर्णं श्रीभगवतं गणनाथं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
स्वाधिष्ठाने षट्दलपद्मे तनुलिंगे
बालान्तैस्तद्वर्णविशालैः सुविशालैः ।
पीतं वर्णं वाक्पतिरूपं द्रुहिणं तं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
नाभौ पद्मे पत्रदशांके डफवर्णे
लक्ष्मीकान्तं गरूढारूढं मणिपूरे ।
नीलवर्णं निर्गुणरूपं निगमाक्षं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
हृत्पद्मांते द्वादशपत्रे कठवर्णे
अनाहतांते वृषभारूढं शिवरूपम् ।
सर्गस्थित्यंतां कुर्वाणं धवलांगं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
कंठस्थाने चक्रविशुद्धे कमलान्ते
चंद्राकारे षोडशपत्रे स्वरवर्णे ।
मायाधीशं जीवशिवं तं भगवंतं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
आज्ञाचक्रे भृकुटिस्थाने द्विदलान्ते
हं क्षं बीजं ज्ञानसमुद्रं गुरूमूर्तिं ।
विद्युत्वर्णं ज्ञानमयं तं निटिलाक्षं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
मूर्ध्निस्थाने वारिजपद्मे शशिबीजं
शुभ्रं वर्णं पत्रसहस्रे ललनाख्ये ।
हं बीजाख्यं वर्णसहस्रं तूर्यांतं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
ब्रह्मानन्दं ब्रह्ममुकुन्दं भगवन्तं
ब्रह्मज्ञानं ज्ञानमयं तं स्वयमेव ।
परमात्मानं ब्रह्ममुनीद्रं भसिताङ्गं
दत्तात्रेयं श्रीगुरूमूर्तिं प्रणतोऽस्मि ॥
॥ इति दत्तात्रेय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
दत्तात्रेय स्तोत्र हिंदी अनुवाद
जो दिगंबर हैं, जिनके शरीर पर भस्म लगी है, जिनके हाथों में चक्र, त्रिशूल, डमरू और गदा हैं; जो पद्मासन में स्थित हैं और ऋषियों व देवताओं द्वारा वंदित हैं — ऐसे दत्तात्रेय का ध्यान सभी मनोकामनाओं की सिद्धि देने वाला है।
जो मूलाधार चक्र में चतुर्भुज कमल में स्थित हैं, “वं”, “षं”, “षं”, “सं” वर्णों के साथ शोभित हैं, रक्तवर्ण के हैं, भगवान गणनाथ स्वरूप हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो स्वाधिष्ठान चक्र के षट्दल कमल में निवास करते हैं, बाल वर्ण के अक्षरों से युक्त हैं, पीत वर्णधारी हैं, वाक् के स्वामी ब्रह्मा स्वरूप हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो नाभि स्थित मणिपुर चक्र में दशदल कमल में “ड” वर्ण से युक्त हैं, लक्ष्मी के पति विष्णुरूप हैं, गरुड़ पर आरूढ़ हैं, नीलवर्णधारी हैं, निर्गुण एवं वेदस्वरूप हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो हृदयस्थ अनाहत चक्र में द्वादशदल कमल में “क” वर्ण से स्थित हैं, वृषभ पर आरूढ़ हैं, शिवरूप हैं, सृष्टि, स्थिति और संहार के कर्ता हैं, धवलवर्णधारी हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो कंठ में स्थित विशुद्ध चक्र के षोडशदल चंद्राकार कमल में स्वर वर्णों से युक्त हैं, मायाधीश हैं, जीव और शिव के रूप में प्रकट हैं — ऐसे भगवंत श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो आज्ञा चक्र में भृकुटि के मध्य द्विदल कमल में स्थित हैं, “हं” और “क्षं” बीजमंत्रों से युक्त हैं, ज्ञान के समुद्र हैं, विद्युत के समान दीप्तिमान हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मस्तिष्क स्थित सहस्रार कमल में “हं” बीजध्वनि सहित शुभ्र वर्णधारी हैं, सहस्रदल पद्म में स्थित हैं, जो ललना शक्ति में प्रतिष्ठित हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो स्वयं ब्रह्मानंद स्वरूप, मुक्तिदाता, ब्रह्मज्ञानस्वरूप, ज्ञानमय, परमात्मा, ब्रह्मर्षियों में श्रेष्ठ, भस्मधारी हैं — ऐसे श्रीगुरु दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
॥ इति दत्तात्रेय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits)
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र के नियमित पाठ से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति: यह स्तोत्र ग्रह दोष, तंत्र बाधा, और अन्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
- शारीरिक और मानसिक रोगों से राहत: इसका पाठ करने से रोगों का नाश होता है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- शत्रुओं पर विजय: यह स्तोत्र शत्रुओं को परास्त करने में सहायक होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: साधक को ज्ञान, भक्ति, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- धन और समृद्धि: यह स्तोत्र आर्थिक समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करता है।
विधि (Vidhi)
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ करने की विधि इस प्रकार है:
- स्नान और शुद्धता: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल की तैयारी: पूजा के लिए एक साफ स्थान पर लाल या पीले वस्त्र बिछाएं और उस पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक और धूप: घी का दीपक और धूप जलाएं।
- पुष्प और नैवेद्य: भगवान को पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
- स्तोत्र पाठ: श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- मंत्र जाप: पाठ के बाद निम्नलिखित बीज मंत्र का 108 बार जाप करें:
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः
- प्रार्थना और समर्पण: अंत में भगवान से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
उपयुक्त समय (Auspicious Time)
श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ करने के लिए निम्नलिखित समय उपयुक्त माने जाते हैं:
- गुरुवार: गुरुवार का दिन भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है, इसलिए इस दिन पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
- पूर्णिमा तिथि: पूर्णिमा के दिन, विशेषकर मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा (दत्तात्रेय जयंती) पर पाठ करना अत्यंत शुभ होता है।
- प्रातःकाल या संध्या समय: सूर्योदय के समय या संध्या के समय पाठ करना श्रेष्ठ माना जाता है।
इस प्रकार, श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का नियमित और विधिपूर्वक पाठ साधक को आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक सभी प्रकार के लाभ प्रदान करता है। यह स्तोत्र जीवन में शांति, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।