सनातन धर्म में तुलसी (Holy Basil) को मात्र एक पौधा नहीं, बल्कि एक दिव्य देवी के रूप में पूजा जाता है। तुलसी माता को भगवान विष्णु की प्रियतम और महालक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। जहां तुलसी का वास होता है, वहां सभी देवताओं का वास होता है और पापों का नाश होता है।
तुलसी स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तुति है, जिसमें तुलसी माता के गौरव, गुण, प्रभाव और कृपा का सुंदर वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र महर्षि पुण्डरीक द्वारा रचित माना जाता है, जो भगवान विष्णु की आराधना में तुलसी पत्र अर्पण करते हुए गाया गया था।
तुलसी स्तोत्र का पाठ न केवल भक्तों को भक्ति, मोक्ष, और सुख प्रदान करता है, बल्कि यह घर को भी पवित्र और ऊर्जा-युक्त बनाता है। यह स्तोत्र बताता है कि तुलसी माता के पत्तों का अर्पण करने मात्र से भी मनुष्य को दिव्य पुण्य की प्राप्ति होती है।
यदि आप जीवन में शांति, भक्ति, स्वास्थ्य, और समृद्धि की कामना करते हैं, तो तुलसी स्तोत्र का नित्य पाठ एक अमोघ साधन है। यह न केवल भगवान विष्णु को प्रसन्न करता है, बल्कि आपकी आत्मा को भी शुद्ध करता है।
तुलसी स्तोत्र (Tulsi Stotra)
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः॥ (1)
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके॥ (2)
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम्॥ (3)
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम्।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात्॥ (4)
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम्।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः॥ (5)
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे॥ (6)
तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः॥ (7)
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके॥ (8)
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन्॥ (9)
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके॥ (10)
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः॥ (11)
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया॥ (12)
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः॥ (13)
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया॥ (14)
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये॥ (15)
॥ इति तुलसी स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
तुलसी स्तोत्र का सरल अर्थ
हे तुलसी देवी! आप संपूर्ण जगत की पालनकर्ता हैं और भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं। आप ही से ब्रह्मा आदि देवताओं को सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति प्राप्त होती है। (1)
हे शुभ, मोक्ष देने वाली, लक्ष्मी स्वरूपा देवी! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप सम्पत्ति और कल्याण प्रदान करती हैं। (2)
हे तुलसी! आप मुझे सदैव सभी संकटों से बचाएं। आपका स्मरण भी मनुष्य को पवित्र कर देता है। (3)
मैं सिर झुकाकर उस उज्ज्वल रूप वाली तुलसी देवी को नमन करता हूँ, जिनकी मात्र दृष्टि से पापी भी सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। (4)
यह पूरा जगत तुलसी द्वारा संरक्षित है। उनकी दृष्टि मात्र से भी पाप नष्ट हो जाते हैं। (5)
जो लोग कलियुग में तुलसी को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं, वे सुखों की प्राप्ति करते हैं – स्त्रियाँ, वैश्य और अन्य लोग भी। (6)
तुलसी जैसा कोई और देवता इस पृथ्वी पर नहीं है। जैसे वैष्णव जन विष्णु से पवित्र हो जाते हैं, वैसे ही तुलसी भी पावन हैं। (7)
जो तुलसी का पत्ता भगवान विष्णु के मस्तक पर अर्पित करता है, वह सभी श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है। (8)
तुलसी में सभी देवता वास करते हैं। अतः उनकी पूजा से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है। (9)
हे सर्वज्ञ तुलसी, हे पुरुषोत्तम भगवान की प्रिय! आप मुझे सभी पापों से बचाएं और सम्पत्ति प्रदान करें। (10)
यह स्तोत्र महर्षि पुण्डरीक द्वारा भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों से गाया गया था। (11)
तुलसी, श्री, लक्ष्मी, विद्या, धर्म, यश और सभी गुणों से सम्पन्न देवी हैं। वे देवताओं की भी प्रिय हैं। (12)
तुलसी देवी लक्ष्मी जी की सखी हैं। जो व्यक्ति इनके 16 नामों का कीर्तन करता है, उसे महान भक्ति प्राप्त होती है। (13)
तुलसी की भक्ति से अंत में भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है। (14)
हे शुभ तुलसी! पाप नाश करने वाली, पुण्य देने वाली, नारद द्वारा पूजित, नारायण को प्रिय – आपको बारंबार प्रणाम। (15)
तुलसी स्तोत्र पाठ के लाभ (Benefits)
- पापों से मुक्ति:
शुद्ध मन से तुलसी स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं। - मोक्ष और वैकुण्ठ प्राप्ति:
तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। उनकी उपासना से वैकुण्ठ प्राप्ति का मार्ग बनता है। - धन और समृद्धि:
तुलसी देवी महालक्ष्मी का ही स्वरूप हैं। इनका पूजन सुख, संपत्ति और समृद्धि देता है। - मानसिक शांति:
नियमित स्तोत्र पाठ से मन शांत, एकाग्र और सात्त्विक बनता है। - घर में पवित्रता और सुख-शांति:
तुलसी का पूजन घर में नकारात्मक ऊर्जा हटाकर पवित्रता और शांति लाता है।
तुलसी स्तोत्र पाठ विधि (How to Chant Tulsi Stotra)
- समय:
प्रातः सूर्योदय के बाद या संध्या समय (शाम को)। - स्थान:
तुलसी के पौधे के पास या पूजन स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। - साफ वस्त्र पहनें और मन को शांत करें।
- दीपक जलाएं और थोड़ी सी जल अर्पित करें तुलसी माता को।
- तुलसी के पौधे पर हल्का जल चढ़ाकर पुष्प या अक्षत अर्पण करें।
- तुलसी स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- अंत में प्रार्थना करें:
“हे तुलसी माता! मेरे घर, मन और जीवन को पवित्र कर दीजिए।” - तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पित करें यदि संभव हो तो।