विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र, भगवान विष्णु के एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसे वेद व्यास द्वारा रचा गया है। इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के 1000 नामों का वर्णन किया गया है और इन नामों की मदद से भगवान की महिमा, शक्ति और गुणों का वर्णन किया गया है।
यह स्तोत्र भगवान विष्णु के भक्तों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है और इसे जानने और अध्ययन करने से भगवान के कृपालु स्वरूप का अनुभव होता है। सहस्त्रनाम स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से मन की शांति, सुख, धैर्य और शक्ति प्राप्त होती है।
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ (Vishnu Sahasranamam Stotram)
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।।
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।।
योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः ।
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।।
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।।
स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।।
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।।
अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं ।। 7।।
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः ।। 8 ।।
ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान ।। 9 ।।
सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ।। 10 ।।
अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः ।
वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः ।। 11 ।।
वसु:वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ।। 12 ।।
रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।। 13 ।।
सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।। 14 ।।
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।। 15 ।।
भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ।। 16 ।।
उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ।। 17 ।।
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।। 18 ।।
महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।। 19 ।।
महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः ।। 20 ।।
मरीचि:दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ।। 21 ।।
अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ।। 22 ।।
गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः ।
निमिषो-अ-निमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार-धीः ।। 23 ।।
अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः ।
सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात ।। 24 ।।
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः ।। 25 ।।
विष्णु सहस्रनाम पाठ सर्वप्रथम कब हुआ था.
इस स्तोत्र का प्रारंभ अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच दिए गए महाभारत के ‘विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र’ अध्याय में हुआ था। अर्जुन ने पूछा था कि किस प्रकार भगवान की उपासना की जाए, और भगवान ने उत्तर देते हुए इस स्तोत्र का उद्घाटन किया था।
विष्णु सहस्रनाम मंत्र जाप के फायदे
विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के अंतःकरण का शुद्धिकरण होता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। इसके पाठ से दुःख, भय और संकटों का नाश होता है और जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से मन की शांति, आत्मिक सम्पन्नता और दैविक आनंद का अनुभव होता है।
कब करें विष्णु सहस्रनाम पाठ मंत्र का जाप.
विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र को पढ़ने या सुनने का सर्वोत्तम समय सुबह और संध्या काल होता है। इसे ध्यानपूर्वक और श्रद्धा से पढ़ने पर इसका अधिकारी फल मिलता है। यदि व्यक्ति रोज़ाना इसे पढ़ने की आदत डाल ले तो उसे जीवन में आनंद, शांति और सफलता की प्राप्ति होती है।
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