परा पूजा स्तोत्र कथिततः श्री शंकराचार्य द्वारा रचित है और इसे “निर्गुण मानस पूजा” या “ब्रह्म-वित्तमय पूजा” कहा जाता है। इसमें बताया गया है कि कैसे हम परमात्मा की पूजा को बाह्य सामग्री से परे, दृष्टिबोध और कर्मभेद से मुक्त होकर करें — जहाँ हमारा मन, प्राणी और शरीर ईश्वर की पूजा का माध्यम बन Read More
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