“बगला हृदय स्तोत्र” एक अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली स्तोत्र है जो दस महाविद्याओं में से एक देवी श्री बगलामुखी को समर्पित है। यह स्तोत्र उस दिव्य रहस्य को उद्घाटित करता है जो स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बतलाया था। इसमें देवी बगला के हृदय स्वरूप, उनके दिव्य रूप, शक्तियों, तांत्रिक योगिनियों, तथा उनके पीठों का वर्णन किया गया है। इसे तांत्रिक साधना का उच्चतम हृदय-मंत्र कहा जाता है।
देवी बगलामुखी कौन हैं?
देवी बगलामुखी को स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है। वे वाणी, बुद्धि, शत्रुओं की गति को रोकने वाली, अन्याय का विनाश करने वाली और साधक को अपराजेय बना देने वाली देवी हैं। उनका पीला रंग शक्ति, सिद्धि, और विजय का प्रतीक है।
बगला हृदय स्तोत्र (Bagla Hriday Stotra)
इदानीं खलु मे देव, बगला-हृदयं प्रभो।
कथयस्व महा-देव, यद्यहं तव वल्लभा।। 1।।
श्रीईश्वरो वाच:
साधु साधु महा-प्राज्ञे, सर्व-तन्त्रार्थ-साधिके।
ब्रह्मास्त्र-देवतायाश्च, हृदयं वच्मि तत्त्वतः।। 2।।
हृदय स्तोत्रम्
गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वर्ण-कान्ति-सम-प्रभाम्।
चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम्।। 1।।
ऊर्ध्व-केश-जटा-जूटां, कराल-वदनाम्बुजाम्।
मुद्गरं दक्षिणे हस्ते, पाशं वामेन धारिणीम्।। 2।।
रिपोर्जिह्वां त्रिशूलं च, पीत-गन्धानुलेपनाम्।
पीताम्बर-धरां सान्द्र-दृढ़-पीन-पयोधराम्।। 3।।
हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम्।
पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम्।। 4।।
स्वानन्दानु-मयी देवी, सिपु-स्तम्भन-कारिणी।
मदनस्य रतेश्चापि, प्रीति-स्तम्भन-कारिणी।। 5।।
महा-विद्या महा-माया, महा-मेधा महा-शिवा।
महा-मोहा महा-सूक्ष्मा, साधकस्य वर-प्रदा।। 6।।
राजसी सात्त्विकी सत्या, तामसी तैजसी स्मृता।
तस्याः स्मरण-मात्रेण, त्रैलोक्यं स्तम्भयेत् क्षणात्।। 7।।
गणेशो वटुकश्चैव, योगिन्यः क्षेत्र-पालकः।
गुरवश्च गुणास्तिस्त्रो, बगला स्तम्भिनी तथा।। 8।।
जृम्भिणी मोदिनी चाम्बा, बालिका भूधरा तथा।
कलुषा करुणा धात्री, काल-कर्षिणिका परा।। 9।।
भ्रामरी मन्द-गमना, भगस्था चैव भासिका।
ब्राह्मी माहेश्वरी चैव, कौमारी वैष्णवी रमा।। 10।।
वाराही च तथेन्द्राणी, चामुण्डा भैरवाष्टकम्।
सुभगा प्रथमा प्रोक्ता, द्वितीया भग-मालिनी।। 11।।
भग-वाहा तृतीया तु, भग-सिद्धाऽब्धि-मध्यगा।
भगस्य पातिनी पश्चात्, भग-मालिनी षष्ठिका।। 12।।
उड्डीयान-पीठ-निलया, जालन्धर-पीठ-संस्थिता।
काम-रुपं तथा संस्था, देवी-त्रितयमेव च।। 13।।
सिद्धौघा मानवौघाश्च, दिव्यौघा गुरवः क्रमात्।
क्रोधिनी जृम्भिणी चैव, देव्याश्चोभय पार्श्वयोः।। 14।।
पूज्यास्त्रिपुर-नाथश्च, योनि-मध्येऽम्बिका-युतः।
स्तम्भिनी या महा-विद्या, सत्यं सत्यं वरानने।। 15।।
फलश्रुति
एषा सा वैष्णवी माया, विद्यां यत्नेन गोपयेत्।
ब्रह्मास्त्र-देवतायाश्च, हृदयं परि-कीर्तितम्।। 1।।
ब्रह्मास्त्रं त्रिषु लोकेषु, दुष्प्राप्यं त्रिदशैरपि।
गोपनीयं प्रत्यनेन, न देयं यस्य कस्यचित्।। 2।।
गुरु-भक्ताय दातव्यं, वत्सरं दुःखिताय वै।
मातु-पितृ-रतो यस्तु, सर्व-ज्ञान-परायणः।। 3।।
तस्मै देयमिदं देवि, बगला-हृदयं परम्।
सर्वार्थ-साधकं दिव्यं, पठनाद् भोग-मोक्षदम्।। 4।।
।। इति बगला हृदय स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
बगला हृदय स्तोत्र हिंदी अनुवाद
अब हे देव! यदि मैं आपकी प्रिय हूं, तो कृपा करके मुझे बगला हृदय का वर्णन बताइए।
हे महादेव! मुझे उसका विस्तारपूर्वक ज्ञान दीजिए।। 1।।
ईश्वर बोले:
हे महाप्राज्ञे! साधुवाद है। आप जो समस्त तंत्रों के सार को जानने वाली हैं,
अब मैं आपको ब्रह्मास्त्र-देवी बगला मुखी के हृदय का तात्त्विक वर्णन करता हूँ।। 2।।
हृदय स्तोत्र का भावार्थ
जो गंभीर, मदोन्मत्त, स्वर्ण आभा वाली, चार भुजाओं वाली, तीन नेत्रों वाली और कमल के आसन पर स्थित हैं।
ऐसी देवी का मैं ध्यान करता हूँ।। 1।।
जिनके बाल ऊर्ध्वगामी हैं, जिनका मुख उग्र है,
दाहिने हाथ में गदा और बाएँ हाथ में पाश धारण किए हुए हैं।। 2।।
जो शत्रु की जीभ और त्रिशूल को वश में करती हैं, पीले चंदन से सुशोभित हैं,
गाढ़े, दृढ़ और पुष्ट स्तनों वाली हैं, पीले वस्त्रों से सुसज्जित हैं।। 3।।
जो सोने के कुण्डल पहनती हैं, जिनके मस्तक पर पीला अर्धचंद्र है,
जो पीले आभूषणों से अलंकृत हैं और स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं।। 4।।
जो अपने स्वाभाविक आनंद से परिपूर्ण हैं, शत्रु स्तम्भन करने वाली हैं,
कामदेव और रति की प्रीति को भी स्तम्भित करने में सक्षम हैं।। 5।।
जो महान विद्या, महान माया, महान मेधा और शिवा हैं,
महान मोहिनी और अत्यंत सूक्ष्म हैं, तथा साधक को वर देने वाली हैं।। 6।।
जो राजसी, सात्त्विक, तामसी और तेजस्विनी हैं,
जिनका स्मरण मात्र त्रैलोक्य को पल में स्तम्भित कर देता है।। 7।।
गणेश, वटुक, योगिनियां, क्षेत्रपाल, गुरुजन, गुणत्रय, और बगला स्तम्भिनी स्वयं,
ये सब उनके संरक्षण में हैं।। 8।।
जृम्भिणी, मोदिनी, अम्बा, बालिका, भूधरा,
कलुषा, करुणा, धात्री और कालकर्षिणिका – ये भी उनकी शक्तियाँ हैं।। 9।।
भ्रामरी, मन्द गति वाली, भगस्था, भासिका, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, रमा –
ये सभी देवी की विविध रूप हैं।। 10।।
वाराही, इन्द्राणी, चामुण्डा, भैरवाष्टक,
सुभगा प्रथम, द्वितीय भगमालिनी – ये भी देवी की शक्तियाँ हैं।। 11।।
तीसरी भगवाहा, भगसिद्धा जो समुद्र के मध्य स्थित हैं,
फिर भगपातिनी और फिर भगमालिनी छठी हैं।। 12।।
उड्डीयान पीठ में रहने वाली, जालंधर पीठ में स्थित,
कामरूप स्थान में प्रतिष्ठित देवी, ये तीनों पीठों की अधिष्ठात्री हैं।। 13।।
सिद्धों का समुदाय, मनुष्यों का समुदाय, दिव्य समुदाय और गुरुगण,
क्रोधिनी और जृम्भिणी – ये देवी के दोनों पार्श्व में स्थित हैं।। 14।।
त्रिपुरनाथ, जो योनि में स्थित अम्बिका के साथ पूज्य हैं,
स्तम्भिनी ही वह महाविद्या हैं – यह सत्य है हे सुंदरवदने!।। 15।।
फलश्रुति (फल का वर्णन)
यह वैष्णवी माया है – इसे अत्यंत गोपनीय रखा जाए।
यह ब्रह्मास्त्र-देवता का हृदय रूप है जिसे अब मैंने वर्णित किया है।। 1।।
यह ब्रह्मास्त्र तीनों लोकों में दुर्लभ है, देवताओं के लिए भी कठिन है।
इसे हर किसी को नहीं दिया जाना चाहिए – इसे गोपनीय रखा जाए।। 2।।
जो गुरु का भक्त हो, दुःख में हो, माता-पिता का भक्त हो,
और समस्त ज्ञान में रत हो – ऐसे साधक को ही यह दिया जाए।। 3।।
हे देवी! ऐसे पात्र को ही यह परम बगला हृदय स्तोत्र प्रदान किया जाए।
यह स्तोत्र सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है – इसके पठन से भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं।। 4।।
।। इति बगला हृदय स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
लाभ (Benefits)
- देवी के दिल से जुड़ाव एवं दर्शन — इसे स्तोत्र कहा जाता है क्योंकि यह बगलामुखी देवी के ह्रदय का तात्त्विक वर्णन है; जप से साधक देवी के निकट होता है और दिव्य दर्शन होते हैं।
- शर्तालु समस्याओं का नाश — शत्रु, लोक‑संघर्ष, विवाद, परीक्षा, किस्मत, ग्रह दोष आदि से रक्षा और विजय सुनिश्चित करता है।
- आन्तरिक शक्ति एवं मानसिक स्थिरता — भ्रम, नकारात्मक ऊर्जा, मानसिक अस्थिरता को दूर करता है; साहस एवं शांति प्रदान करता है ।
विधि (Method)
- दीक्षा प्राप्त करें
गुरुदेव से मंत्र और स्तोत्र दोनों की दीक्षा लेना श्रेष्ठ होता है, क्योंकि इसका ऊर्जा स्तर उच्च होता है। - विनियोग और आह्वान
शास्त्रों अनुसार हल्दी‑नमक हवन या पीले पुष्प व दीप‑दीपक से यज्ञपूर्वक आह्वान करें। - ध्यान प्रक्रिया
“सौवर्णासन संस्थिता…” ध्यान करते हुए देवी के स्वर्ण-सिंहासन, पीली आभा, गदा-पाश आदि के रूप का ध्यान करें। - अष्टोत्तरनाम/सहस्त्रनाम
अंत में हृदय स्तोत्र के साथ अन्य स्तोत्र जैसे सहस्रनाम या अष्टोत्तरशतनाम भी पढ़े जा सकते हैं।
जप / पाठ का समय (Timing)
समय | विवरण |
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ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4–6 AM) | सबसे अधिक प्रभावी और शुद्ध समय माना जाता है। |
रात्रि 10–4 बजे | शक्तिशाली तांत्रिक प्रभाव के लिए ये आदर्श समय हैं । |
अमावस्या, अश्विन अष्टमी | ग्रह दोष समाधान और विशेष यज्ञों के लिए उत्तम समय । |
जप संख्या:
- साधनार्थ प्रारंभ में 9, 21 या 108 बार।
- गहन साधना या यज्ञ में 100,000 (1 १८५ ०००), 500,000 या 1 २५० ००० बार तक जप विधिसम्मत।