श्री नवनाथ स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और भक्तिपूर्ण प्रार्थना है, जिसमें नौ नाथ गुरुओं — जैसे कि मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, जालंधरनाथ, कानिफनाथ, चर्पटीनाथ, नागनाथ, भर्तृहरिनाथ, रेवणसिद्ध, गहिनीनाथ — को नमन किया गया है।
यह स्तोत्र इन महान योगी गुरुओं के आध्यात्मिक महत्व, योगसिद्धियों और दिव्य गुणों का वर्णन करता है।
इसका पाठ पापों का नाश करने, गुरु कृपा प्राप्त करने और मोक्ष प्राप्ति में अत्यंत सहायक माना जाता है।
श्री नवनाथ स्तोत्र (Navnath Stotra)
॥ नवयोगीन्द्रनाथस्तोत्रम् ॥
वन्दे श्रीभगवद्रूपं कविं योगीन्द्रसंज्ञकम् ।
मच्छेन्द्रनाथं श्रीदत्तशिष्येन्द्रनवनाथकम् ॥१॥
वन्देहं भगवद्रूपं हरिं गोरक्षसंज्ञकम् ।
नाथं द्वितीयं मच्छेन्द्रशिष्येन्द्रं द्वैतवर्जितम् ॥२॥
वन्दे जालन्धरं नाथं योगीन्द्रं चान्तरिक्षकम् ।
तच्छिष्यं कानिफं वन्दे प्रबुद्धं बुद्धिनायकम् ॥३॥
वन्देहं चर्पटीनाथं पिप्पलायनसंज्ञकम् ।
आविर्होत्रं च योगीन्द्रनागनाथं नमाम्यहम् ॥४॥
नमो भर्तरीनाथाय योगीन्द्रद्रुमिलाय च ।
नमो रेवणसिद्धाय चमसाय च योगिने ॥५॥
नमो गहिनीनाथाय करभाजनयोगिने ।
प्रणमामि श्रीनिव्रुत्तिनाथं ज्ञानेश्वरं तथा ॥६॥
सोपानं मुक्तिजननीं दत्तछात्रपरम्पराम् ।
वन्दे दत्तगुरुं वासुदेवं गुरुपरात्परम् ॥७॥
योगिराजावतारं तं योगज्ञानाब्धिनाविकम् ।
मूलप्रकृतिकविष्ण्वीशावतारा: पान्तु न: सदा ॥८॥
इति नवयोगीन्द्रस्तोत्रम्
श्री नवनाथ स्तोत्र के श्लोकों का भावार्थ
१. मत्स्येन्द्रनाथ और गोरक्षनाथ:
पहले श्लोक में भगवद्रूप हरि और गोरक्षसंज्ञक मत्स्येन्द्रनाथ को वंदन किया गया है। ये दोनों नाथ योग और भक्ति मार्ग के आरंभकर्ता माने जाते हैं।
२. जालंधरनाथ और कानिफनाथ:
दूसरे श्लोक में जालंधरनाथ को प्रणाम किया गया है, और उनके शिष्य कानिफनाथ का भी उल्लेख है, जिन्होंने योगमार्ग में बुद्धि और विवेक का प्रचार किया।
३. चर्पटीनाथ और नागनाथ:
तीसरे श्लोक में चर्पटीनाथ (पिप्पलायन) और नागनाथ का नमन किया गया है, जो ध्यान और साधना के प्रतीक हैं।
४. भर्तृहरिनाथ और रेवणसिद्ध:
चौथे श्लोक में भर्तृहरिनाथ और चमसयोगी के रूप में रेवणसिद्ध को वंदन किया गया है, जो भक्ति और त्याग के महान उदाहरण हैं।
५. गहिनीनाथ और निवृत्तिनाथ:
पाँचवें श्लोक में गहिनीनाथ और करभाजनयोगी के रूप में निवृत्तिनाथ को प्रणाम किया गया है, जिन्होंने ज्ञानेश्वर महाराज जैसे महान संतों को दीक्षा दी।
६-७. सोपान और दत्तगुरु:
छठे और सातवें श्लोक में सोपाननाथ और दत्तगुरु वासुदेव का स्मरण किया गया है, जो गुरु परंपरा की दिव्यता और मोक्षमार्ग के मार्गदर्शक हैं।
८. अंतिम श्लोक:
अंतिम श्लोक में योगिराजावतार भगवान दत्तात्रेय को नमन किया गया है और मूलप्रकृति एवं विष्णु अवतार से सदा रक्षा की प्रार्थना की गई है।
श्री नवनाथ स्तोत्र पाठ के लाभ (Benefits of Shri Navnath Stotra)
- यह स्तोत्र पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।
- इसका नियमित पाठ करने से साधक सुख, समृद्धि और वैभव से परिपूर्ण हो जाता है।
- त्रिवारं पाठणेन — तीन बार पाठ करने से भूत-प्रेतादि बाधाएँ समाप्त होती हैं और शिव-सान्निध्य की प्राप्ति होती है।
- नवकमल यंत्र धारण करने और श्री नवनाथ स्तोत्र के नित्य पाठ से साधक त्रिलोक के रक्षक और पूजनीय बन जाते हैं।
- यह स्तोत्र त्रिकाल (प्रातः, मध्यान्ह, सायंकाल) में स्तवन योग्य है — इसमें कोई संशय नहीं।












































